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न्यूज़ क्रेडिट : lagatar.in
विविध धर्मों के संग फिजाओं में दशहरा के कई रंग बिखरे पड़े हैं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। विविध धर्मों के संग फिजाओं में दशहरा के कई रंग बिखरे पड़े हैं. संथाली नौ दिनों तक देवी इरा की पूजा करते हैं और इसे अतिप्राचीन प्रजनन पंथ से जुड़ा त्योहार मानते हैं. वहीं बंगाली समाज में लक्ष्मी पूजा तक विजयादशमी मनाने का विधान है. बंगालियों में यह मान्यता है कि विजयादशमी में देवी अपना मायके आ जाती हैं. वहीं सनातन धर्मावलंबी असत्य पर सत्य का विजय के प्रतीक के रूप में दशहरा मनाते हैं.
लंका में रावण पर भगवान श्रीराम के विजयोत्सव को दशहरा मानते हैं. मार्केण्डेय पुराण के अनुसार शुभ शक्ति के रूप में मां दुर्गा के अवतरण की बात कही गई है. नौ दिनों तक नौ रूप धारण कर माता पृथ्वी पर असुरों से मुक्ति दिलाई थीं. विभिन्न जगहों पर भिन्न-भिन्न तरीके से मां दुर्गा की पूजा की जाती है. इतिहास के जानकार शुभाशीष दास बताते हैं कि संथाली दशहरा को 'दस' और 'इरा' के रूप में देखते हैं. 'इरा' संथालों की देवी हैं और दशहरा में देवी 'इरा' के अलग-अलग दस स्वरूपों की पूजा दस दिनों तक की जाती है.
विष्णु पुराण के अनुसार महर्षि कश्यप की कई पत्नियों में एक पत्नी 'इरा' हैं. इसे संथाली सदियों से देवी के रूप में पूजते चले आ रहे हैं. इतिहासकार डीडी कौशांबी के अनुसार नवरात्र का त्योहार अतिप्राचीन प्रजनन पंथ से जुड़ा है. नौ दिनों तक स्थापित कलश मातृगर्भ की निशानी है. नबावगंज निवासी बुबू दास कहती हैं कि बंगालियों में यह मान्यता है कि दशहरा के पहले दिन ही माता अपने मायके आ जाती हैं और लक्ष्मी पूजा में वापस जाती हैं. ऐसे में दशहरा पर्व एक है, लेकिन आस्था अनेक है.
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