झारखंड

खदान लीज मामले में हेमंत सोरेन को चुनाव आयोग ने नहीं दी 4 हफ्ते की मोहलत, JMM ने उठाया यह कदम

Renuka Sahu
11 May 2022 5:50 AM GMT
Election Commission did not give 4 weeks time to Hemant Soren in mine lease case, JMM took this step
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फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को खनन लीज मामले में पक्ष रखने के लिए भारत चुनाव आयोग ने दस दिनों का अतिरिक्त समय दिया है। मुख्यमंत्री ने मां की बीमारी का हवाला देते हुए आयोग से चार हफ्तों का अतिरिक्त समय मांगा था। यह जानकारी झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार सोनू और केंद्रीय समिति सदस्य सुप्रियो भट्टाचार्य ने दी है। आयोग ने सोरेन को 10 मई तक अपना पक्ष रखने को कहा था।

भाजपा के आरोपों का सीएम ने किया खंडन
मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में कहा है कि उन्हें आयोग की ओर से दो मई को नोटिस मिला, जो कि भाजपा द्वारा उन्हें लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9 ए के तहत अयोग्य बताने के लिये दायर याचिका से संबंधित है। सीएम ने भाजपा के सभी आरोपों का खंडन किया है। उन्होंने अपनी मां के बारे में बताया कि वह पिछले आठ महीने से बीमार हैं। 28 अप्रैल उनका हैदराबाद के एआईजी अस्पताल के आईसीयू में इलाज चल रहा है। ऐसे में उन्हें हैदराबाद में रहना पड़ रहा है। इस परिस्थिति में वह विधि विशेषज्ञों से परामर्श लेकर अपना पक्ष प्रभावी रूप से रखने में सक्षम नहीं हैं। मुख्यमंत्री ने उपरोक्त आधार पर कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श लेकर पक्ष तैयार करके अधिवक्ता के माध्यम से सीधी सुनवाई का आग्रह किया है।
झामुमो ने जस्टिस खरे से लिया खनन लीज मामले में परामर्श
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खनन लीज मामले में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वीएन खरे से विधिक राय ली है। झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने पार्टी मुख्यालय पर मीडिया को बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की ओर से जानकारी दी गई है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9 ए के प्रावधान उस मामले में लागू नहीं होंगे, जहां राज्य विधानसभा के सदस्य को राज्य द्वारा खनन पट्टा प्रदान किया गया है।
उन्होंने आगे मत व्यक्त किया गया है कि राज्य सरकार द्वारा राज्य विधानसभा के सदस्य को दिया गया खनन पट्टा न तो राज्य को माल की आपूर्ति के लिए और ना ही कार्य निष्पादन के लिए एक समझौता या एकरारनामा होगा। जस्टिस वीएन खरे ने अपनी राय के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूर्व के सुनाये गये कुछ फैसलों का हवाला भी दिया है। उन्होंने 1964 में सीवीके राव बनाम दंतु भास्करा राव, 2001 में करतार सिंह भडाना बनाम हरि सिंह नलवा केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख किया गया है।
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