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धनबाद (Dhanbad) जिले में डैम, झील, वाटर फॉल नदी और तालाब तक जानेवालों को आपदा से बचाने के कोई खास उपाय उपलब्ध नहीं हैं. विगत दिनों, मैथन डैम,भटिंडा फॉल, दामोदर नदी या किसी तालाब में डूब कर कई लोगों ने जान गंवाई. परंतु आपदा प्रबंधन की निष्क्रियता या फिर संसाधन की अनुपलब्धता के कारण पीड़ितों को कोई खास मदद नहीं मिल सकी. सिर्फ डूबे लोगों का शव ही निकाला जा सका, वह भी काफी मशक्कत के बाद. इसके लिए भी धनबाद आपदा प्रबंधन विभाग को रांची या देवघर पर निर्भर रहना पड़ता है. पानी में डूबे व्यक्ति को जीवित निकालने की कोई गारंटी नहीं है. टीम सिर्फ शव निकालने के लिए पहुंचती है. ज्यादा से ज्यादा परिजनों को 4 लाख रुपये मुआवजा दे दिया जाता है.
बचाव दल होता तो बच सकती थी दोनों की जान
ताजा मामला रविवार 7 जुलाई का है. सुदामडीह के निकट दामोदर नदी में नहाने के दौरान दो युवक डूब गए. गोताखोरों ने एक युवक का शव निकालने में कामयाबी हासिल की. मगर दूसरे युवक को ढूंढने के लिए रांची से एनडीआरएफ टीम को बुलाना पड़ा. एक दिन बाद सोमवार को टीम पहुंची और दूसरे युवक का शव निकाला गया. अगर कोई बचाव दल जिले में होता तो दोनों की जान बचाई जा सकती थी.
पर्यटक आते हैं मौज-मस्ती करने, गंवा बैठते हैं जिंदगी
कुछ दिन पहले बलियापुर प्रखंड और एग्यारकुंड प्रखंड अंतर्गत पथरी माइंस के तालाब में डूबने से लोगों की मौत हो चुकी है. जिले में मैथन, पंचेत डैम, तोपचांची झील, भटिंडा फॉल में पर्यटक घूमने आते हैं. दामोदर, बराकर नदी के साथ कई कोल माइंस और खुली खदान में जमे पानी अथवा तालाब में प्रतिदिन सैकड़ों लोग नहाने या अन्य काम के लिए जाते है. पानी में डूबने का खतरा बना रहता है. ऐसी स्थिति में बचाव कार्य के लिए जिला प्रशासन असहाय है. राज्य स्तर पर भी कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है. दूसरे राज्यों में एनडीआरएफ की टीम सभी जिलों में ऐसे वक्त के लिए तैनात रहती है. फायर ब्रिगेड के पास भी रेस्क्यू के लिए व्यवस्था होती है, परंतु झारखंड में इन दोनों में से कोई भी व्यवस्था नहीं है. इस संवेदनशील मामले पर कभी कोई गंभीर मंत्रणा भी नहीं होती.
संसाधन के बगैर असहाय आपदा प्रबंधन : संजय झा
धनबाद आपदा प्रबंधन पदाधिकारी संजय कुमार झा ने इस मामले पर गंभीरता प्रकट करते हुए कहा कि उनके पास ना तो राज्य की एनडीआरएफ की सुविधा है ना वैसे गोताखोर उपलब्ध हैं. पर्यटन विभाग की ओर से डैम, झील या फॉल में खतरनाक स्थल चिन्हित कर घेराबंदी की कोई व्यवस्था भी नहीं है. नदी, तालाब या माइंस से बने तालाब में भी उन स्थलों को चिह्नित नहीं किया गया है. किसी के डूबने पर एनडीआरएफ को सूचित किया जाता है, जो रांची या देवघर से आते हैं. परंतु तब तक इतना विलंब हो चुका होता है कि किसी डूबे व्यक्ति को जीवित निकलना लगभग असंभव हो जाता है. हालांकि पानी में डूब कर जान गंवाने वाले व्यक्ति के परिजन को 4 लाख मुआवजा देने का प्रावधान है.
सावधानी ही मात्र सबसे बड़ा उपाय
उन्होंने बताया कि ऐसी आपदा से बचाव के लिए सावधानी ही मात्र बड़ा उपाय है. स्थानीय लोगों को तो पानी की गहराई का पता होता है, फिर भी वे लोग वैसे स्थान पर जाते हैं, सेल्फी लेते हैं और अति उत्साह में गहरे पानी में चले जाते हैं. जिससे उनको बचना चाहिए और दूसरों को भी ऐसे करने से बचाना चाहिए.
Gulabi Jagat
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