झारखंड

हीमोफीलिया के मरीजों के लिए हर जिला में डे केयर सेंटर खुलेंगे

Shantanu Roy
25 Nov 2021 12:12 PM GMT
हीमोफीलिया के मरीजों के लिए हर जिला में डे केयर सेंटर खुलेंगे
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जेनेटिक डिसऑर्डर (Genetic Disorder) के चलते होने वाली बीमारी हीमोफीलिया (Hemophilia disease) से ग्रस्त मरीज आज उस महान हस्ती की दिवंगत अशोक बहादुर वर्मा (Ashok Bahadur Verma) की जयंती मना रहे हैं.

जनता से रिश्ता। जेनेटिक डिसऑर्डर (Genetic Disorder) के चलते होने वाली बीमारी हीमोफीलिया (Hemophilia disease) से ग्रस्त मरीज आज उस महान हस्ती की दिवंगत अशोक बहादुर वर्मा (Ashok Bahadur Verma) की जयंती मना रहे हैं. जिन्होंने वर्ष 1983 में हीमोफीलिया के मरीजों का इलाज और उनके हितों की रक्षा के लिए हीमोफीलिया सोसाइटी ऑफ इंडिया (Hemophilia Federation India) की स्थापना की थी. ऐसे में जानना जरूरी है कि झारखंड में हीमोफीलिया (Hemophilia in Jharkhand) से ग्रस्त बच्चे की स्थिति क्या है और उनके इलाज की क्या व्यवस्था राज्य में है.

राज्य में 3500 से 7500 के करीब हीमोफीलिया के मरीज
हीमोफीलिया सोसाइटी ऑफ इंडिया के झारखंड चैप्टर के सचिव संतोष जायसवाल कहते हैं कि वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफिलिया (World Federation of Hemophilia) के अनुसार हर 05 हजार में 01 मरीज इस बीमारी के होते हैं. वहीं भारत सरकार (Indian Government) के अनुसार इसकी संख्या हर दस हजार की आबादी में 01 की होती है. ऐसे में झारखंड की जनसंख्या के अनुसार 3500 से 7500 के करीब मरीज राज्य में होंगे पर अभी तक झारखंड में सिर्फ 650 मरीजों की ही पहचान हो सकी है.
हीमोफीलिया सोसाइटी ऑफ झारखंड, रांची के सचिव जो खुद भी हीमोफीलिया के मरीज हैं. वो बताते हैं कि अभी राज्य के 03 मेडिकल कॉलेज के अलावा सदर अस्पताल रांची, कोडरमा, गिरिडीह, दुमका और डालटनगंज में भी डे केयर सेंटर चल रहा है. अब फैसला यह हुआ है कि सभी जिलों के सदर अस्पताल (Sadar Hospital) में हीमोफीलिया के मरीजों के लिए डे केयर सेंटर खोला जाएगा. जहां थैलसीमिया और सिकल सेल एनीमिया के मरीजों का भी इलाज होगा.
झारखंड में जांच की व्यवस्था नहीं
गर्भावस्था में जांच से पता चल सकता है कि जो बच्चा जन्म लेने वाला है वह हीमोफिलिक होगा या नहीं. लेकिन झारखंड में इसकी जांच के लिए ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं है. भले ही हीमोफीलिया की बीमारी जेनेटिक डिसऑर्डर (Genetic Disorder) और माता-पिता से बच्चों में आता है. लेकिन 08 सप्ताह से 16 सप्ताह के बीच गर्भावस्था के दौरान जांच में यह पता चल सकता है कि जो बच्चा जन्म लेने वाला है उसे हीमोफिलिक होगा या नहीं. लेकिन दुखद पहलू यह है कि झारखंड राज्य में कोई व्यवस्था इस तरह की जांच की नहीं है.
राज्य में एक भी रक्त रोग विशेषज्ञ नहीं
झारखंड में सरकार हीमोफीलिया के मरीजों के जीवन को बेहतर बनाने का दावा करती है. लेकिन हकीकत यह है कि राज्य में पूरे स्वास्थ्य विभाग में एक भी रक्त रोग विशेषज्ञ नहीं है. जिससे ऐसे गंभीर रोग से निपटने का दावा आखिर कैसे किया जा सकता है.
क्या होता है हीमोफीलिया
जेनेटिक गड़बड़ी के चलते बीमार लोगों के रक्त में फैक्टर की कमी होती है. जिसकी वजह से जब मरीज को चोट लगता है तो उस स्थिति में रक्त स्राव नहीं रुकता, कई बार यह इंटरनल होता है और स्थिति घातक हो जाती है. ऐसे में prophylaxis और फैक्टर चढ़ाया जाता है. जिससे मरीज की स्थिति को काबू में किया जा सके और उसकी जान भी बचायी जा सके.


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