कम बारिश में तेलहन-दलहन और मोटे अनाज की खेती होगी लाभकारी
राँची: झारखंड में मानसून की कमजोर गतिविधि के बीच किसानों में खरीफ फसल की खेती को लेकर चिंता बनी हुई है. अभी तक पर्याप्त बारिश नहीं होने से रांची जिले के खेतों में नमी भी नहीं आई है. कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसी परिस्थिति में किसानों की इस चिंता को दूर करते हुए टांड़ क्षेत्र में खरीफ सीजन में विकल्प के तौर पर अन्य फसलों की खेती कर पैदावार लेने का विकल्प सुझाया है. इसमें कृषि वैज्ञानिकों ने मोटे अनाज के अलावा दलहन-तेलहन की खेती करने में भी कई विकल्प सुझाए हैं. वैज्ञानिकों ने कहा है कि इसके अलावा कम अवधि वाली धान किस्मों की सीधी बुवाई करके भी किसान अच्छी फसल प्राप्त कर सकेंगे. यह तकनीक कम पानी वाले खेतों में बिना कीचड़ व बिना बिचड़ा के ही धान की खेती में उपयोगी साबित होगी. उपज भी रोपाई विधि के समान ही होगी. आईआरआरआई परियोजना अन्वेषक डॉ कृष्णा प्रसाद ने कहा, धान की सीधी बुवाई की एरोबिक विधि में जरूरत के मुताबिक सिंचाई और खेतों में जल जमाव नहीं रखा जाता है. जबकि, दूसरी विधि में खेतों में पानी बांध कर रखा जा सकता है, इससे खर-पतवार में आसानी होती है.
23 दिन पहले लगाई गई फसल लहलहा रही
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के तीन प्रायोगिक शोध प्रक्षेत्रों में सीधी बुवाई विधि से 23 दिन पहले लगाई गई धान की फसल लहलहा रही है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक फसल प्रदर्शन भी काफी बेहतर है. इन शोध प्रक्षेत्रों में इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईआरआरआई) हैदराबाद से प्राप्त देशभर के 150 से अधिक उन्नत धान किस्मों का परीक्षण किया जा रहा है.
कम अवधि वाले धान की सीधी बुवाई देगा लाभ
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के कृषि वैज्ञानिकों ने बिना बिचड़ा ही धान की सीधी बुवाई की सलाह दी है. कुलपति व धान विशेषज्ञ डॉ ओंकारनाथ सिंह ने किसानों को ऊपरी (टांड़) व मध्यम भूमि (दोन-3) में कम अवधि (100-110 दिन) की अवधि वाली सूखारोधी धान किस्मों को लगाने को कहा है. इसमें कई किस्में हैं. यह तकनीक कम पानी वाले खेतों में बिना कीचड़ व बिना बिचड़ा ही धान की खेती में उपयोगी साबित होगी. ऊपज भी रोपाई विधि जैसी होगी.
ऊपरी सतह के खेतों में इन फसलों की हो सकती है बुवाई
मोरहाबादी में रामकृष्ण मिशन आश्रम के दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र के फसल वैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार सिंह ने कहा कि ऊपरी सतह के खेत में मोटे अनाज में मड़ुआ, मक्का, ज्वार, बाजरा बोए जा सकते हैं. दलहन में अरहर, उड़द, सोयाबीन, कुरथी की खेती लाभकारी होगी. तेलहन में मूंगफली, तिल व 15 अगस्त के आसपास सरगुजा-सूर्यमुखी लगा सकते हैं. बताया कि रांची जिले के 18 प्रखंडों में ज्वार, बाजरा व मडुआ की 4660 हेक्टेयर में खेती होनी है. वहीं, तिलहन में मूंगफली, तिल, सोयाबीन व सूर्यमुखी की खेती की ओर भी किसानों का रुझान बढ़ा है. 38 हजार हेक्टेयर में किसान दलहन की पैदावार लेंगे.