जमशेदपुर न्यूज़: जिला परिषद अपने ही मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी को हटाने के लिए अब आर-पार करने को तैयार है. जिला परिषद अध्यक्ष, उपाध्यक्ष सहित सभी 27 पार्षद इस मसले पर एकमत हैं. इसी मसले पर डीसी ऑफिस के सामने होने वाला धरना-प्रदर्शन इस मायने में ऐतिहासिक होगा कि झारखंड गठन के बाद 2008 में हुए पहले चुनाव से लेकर अभी तक कभी पूर्वी सिंहभूम में ऐसी नौबत नहीं आई. यही नहीं, जिला परिषद सदस्य अध्यक्ष के नेतृत्व में 25 जनवरी को मुख्यमंत्री से मिलने रांची जाने वाले हैं. वहां वे अपने साथ हो रहे कथित उपेक्षापूर्ण व्यवहार और अपने अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी से मुख्यमंत्री को अवगत कराएंगे.
लेकिन इस प्रकरण में एक बात यह भी कही जा रही है कि अगर डीडीसी का पद खाली नहीं होता तो यह नौबत ही नहीं आती. चार माह से जिला परिषद के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी सह डीडीसी का पद डीसी को ही संभालना पड़ रहा है. यही नहीं, उन्हें समेकित आदिवासी विकास अभिकरण (आईटीडीए) के परियोजना निदेशक का पद भी संभालना पड़ रहा है. उपायुक्त के रूप में ही काम के बोझ से दबे किसी अधिकारी के लिए ये अतिरिक्त कार्यबोझ होता है. चूंकि दोनों पद संयुक्त सचिव स्तर के हैं, इसलिए डीसी को ही यह अतिरिक्त दायित्व मिला हुआ है. राज्य सेवा के कई अधिकारी भी दबी जुबान इसे स्वीकार करते हैं. सभी का कहना है कि अगर डीडीसी होते तो विवाद की नौबत ही नहीं आती. प्रभार संभालने के बाद से डीसी न तो कभी जिला परिषद कार्यालय गईं हैं, न जिला परिषद की सामान्य बैठक बुलाई हैं. जिप अध्यक्ष बारी मुर्मू का यही तो आरोप है कि वह उन्हें मिलने का समय ही नहीं देती हैं. उनका तो यह भी आरोप है कि वह उनका फोन ही नहीं उठाती हैं. इसलिए सभी पार्षद चाहते हैं कि ऐसे कार्यवाहक की जगह पूर्णकालिक अधिकारी की पोस्टिंग हो, जो उनकी बात सुने.