झारखंड

मानव तस्करी के मामलों पर सख्त हुए CM हेमंत सोरेन

Manish Sahu
29 Sep 2023 5:59 PM GMT
मानव तस्करी के मामलों पर सख्त हुए CM हेमंत सोरेन
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रांची: झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन की मौजूदगी में उच्च स्तरीय बैठक हुई. सीएम हेमंत सोरेन ने बैठक की तस्वीरों को ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा, 'वर्षों से झारखण्ड राज्य मानव तस्करी (ह्यूमन ट्रैफिकिंग) का दंश झेलते आया है. और इसके ज्यादातर पीड़ित वंचित समाज के गरीब बच्चियां, बच्चे और महिलाएं होती हैं. सरकार बनने के पहले दिन से हम इस गंभीर समस्या पर काम कर रहे हैं. पीड़ित लोगों को जरूरी सभी मदद भी पहुँचायी जा रही हैं. हालांकि अभी बहुत कुछ करना बाकी है, जिसे सामाजिक सहयोग के साथ पूरा किया जा सकता है. आज मंत्रालय में मानव तस्करी पर रोक लगाने को लेकर उच्च स्तरीय बैठक में शामिल हुआ तथा अधिकारियों को कई निर्देश दिए.'
झारखंड में लगातार बढ़ रहे मानव तस्करी के मामले
मानव तस्कर का गिरोह झारखंड में दिनों-दिन मजबूत होता जा रहा है. मानव तस्करी के कई मामलों पर कार्रवाई होने के बाद भी प्रशासन इस गिरोह पर पूरी तरह अपना शिकंजा नहीं कस पाई है. हर साल झारखंड से हजारों की संख्या में युवतियों को ले जाकर बड़े शहरों में बेच दिया जाता है या फिर वहां मौजूद प्लेसमेंट सेल एजेंसियों के हवाले कर देते है. इस मामले में कई दलालों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है लेकिन फिर भी ये गिरोह सक्रिय है. ये लोग गरीब घरों को लड़कियों को अपना निशाना सबसे ज्यादा बनाते हैं. खबरों के मुताबिक रांची के खूंटी और नामकुम में पिछले 3 से 4 सालों में करीब 100 से ज्यादा लड़किया गायब हुई हैं.
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मानव तस्करी के खिलाफ लोगों में जागरूकता फैलाने वाली संस्था आशा के पास लड़कियों के गायब होने के करीब 60 मामले दर्ज है. जिसमें 22 लड़कियों को इस चुंगुल से मुक्त करा लिया गया है. लड़कियों के लापता होने से संबंधित आठ प्राथमिकियां संबंधित थानों में हाल ही में दर्ज कराई गई हैं. मानव तस्करी को लेकर भारत के साथ ही नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका तथा पाकिस्तान स्थित अपने कार्यालयों से 47 सहयोगी संस्थाओं के माध्यम कार्यरत गैर सरकारी संगठन एक्शन अगेंस्ट ट्रैफिकिंग एंड सेक्सुअल एक्सप्लायटेशन (एटसेक) की झारखंड से संबंधित रिपोर्ट पेश की है जो कि काफी चौंकाने वाली है. रिपोर्ट के मुताबिक, 9% लड़कियां दलाल, 37% सहेली/दोस्तों, 3% पारिवारिक दबाव और 51% परिवार के अन्य सदस्यों की बातों में आकर शहरों की तरफ रुख कर लेती है. जिसमें 10% लड़किया कभी घर वापस नहीं आ पाती है, वहीं इसमें 67 फीसदी लड़कियां 20 साल से कम उम्र की होती है.
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