जमशेदपुर न्यूज़: पेट की आग के कारण अपने कलेजे के टुकड़े को मां-बाप 300 रुपये मासिक पर बंधक रख दिया गया. तीसरी में पढ़ने वाले इस छात्र के स्कूल नहीं आने पर जब हेडमास्टर ने तहकीकात की तो पूरे मामले का खुलासा हुआ. हेडमास्टर की पहल पर वह छात्र फिर से स्कूल आने लगा है. मामला पोटका के टंगराइन विजयनगर शबर टोला का है.
यहां के शबर दंपति ने अपने नौ साल के बेटे को बंधक रख दिया. उस लड़के से बैल और बकरी को चराने का काम लिया जाता था. उत्क्रमित मध्य विद्यालय टांगराइन पोटका के प्रधानाध्यापक अरविंद तिवारी को जब इस छात्र के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने आदिम जनजाति के इस बालक को बाल श्रम (धांगड़ प्रथा) से मुक्त कराया. इसके बाद उसे पुन स्कूल से जोड़ा.
टांगराइन विजयनगर शबर टोला में रहने वाले एक दंपति ने अपने बेटे को पैंतीस सौ रुपये सालाना पर बंधक( धांगड़) रखा दिया था. कई दिनों तक स्कूल नहीं आने पर जब प्रधानाध्यापक उसके घर पहुंचे तो उन्हें इसकी जानकारी मिली. इसके बाद प्रधानाध्यापक अरविंद तिवारी ने उनके माता-पिता को समझाया और उसे फिर से स्कूल भेजने के लिए तैयार किया. अरविंद तिवारी ने बताया कि वे तीन भाई-बहन हैं. उनके माता-पिता जैसे-तैसे तीनों का लालन-पालन कर रहे हैं. सबसे बड़े बेटे को 3500 सालाना पर किसी और के यहां काम करने के लिए रख दिया था. दो भाई-बहन उससे छोटे हैं. तिवारी ने इससे पूर्व भी आदिम जनजाति के दो बच्चों को बाल श्रम (धांगड़ प्रथा) से मुक्त कराया है. मालूम हो कि बैल और बकरी चराने के लिए गरीब बच्चों को (धांगड़) बाल श्रमिक रखा जाता है. स्कूल लौटकर छात्र के चहेरे की रौनक देखते ही बनती थी.