झारखंड

देश के सबसे गरीब राज्य बने बिहार, झारखंड और उत्तरप्रदेश, ये है वजह

Deepa Sahu
26 Nov 2021 2:08 PM GMT
देश के सबसे गरीब राज्य बने बिहार, झारखंड और उत्तरप्रदेश, ये है वजह
x
नीति आयोग (NITI AYOG) के बहुआयामी गरीबी सूचकांक के मुताबिक, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश (Bihar, Jharkhand and Uttar Pradesh) देश के सबसे गरीब राज्यों (Poorest States of India )के रूप में सामने आए हैं.

नई दिल्लीः नीति आयोग (NITI AYOG) के बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index) के मुताबिक, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश (Bihar, Jharkhand and Uttar Pradesh) देश के सबसे गरीब राज्यों (Poorest States of India )के रूप में सामने आए हैं. सूचकांक के मुताबिक, बिहार की 51.91 प्रतिशत जनसंख्या गरीब है. वहीं झारखंड में 42.16 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 37.79 प्रतिशत आबादी गरीब है. सूचकांक में मध्य प्रदेश (36.65 प्रतिशत) चौथे स्थान पर है, जबकि मेघालय (32.67 प्रतिशत) पांचवें स्थान पर है. केरल (0.71 प्रतिशत), गोवा (3.76 प्रतिशत), सिक्किम (3.82 प्रतिशत), तमिलनाडु (4.89 प्रतिशत) और पंजाब (5.59 प्रतिशत) पूरे देश में सबसे कम गरीब लोग वाले राज्य हैं और सूचकांक में सबसे नीचे हैं.


गरीबी सूचकांक में क्या आंका जाता है ?
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव (OPHI) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा विकसित विश्व स्तर पर स्वीकृत और मजबूत पद्धति का इस्तेमाल कर तैयार किया जाता है. बहुआयामी गरीबी सूचकांक में मुख्य रूप से परिवार की आर्थिक हालात और अभाव की स्थिति को आंका जाता है. राष्ट्रीय एमपीआई को 12 प्रमुख घटकों का उपयोग करके तैयार किया गया है जिसमें स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा और जीवन स्तर जैसे क्षेत्रों को शामिल किया गया है.

12 मानकों पर मापी जाती है गरीबी
रिपोर्ट में कहा गया है, भारत के एमपीआई में तीन समान आयामों- स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर का मूल्यांकन किया जाता है. इसका आकलन पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, प्रसवपूर्व देखभाल, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने के ईंधन, स्वच्छता, पीने के पानी, बिजली, आवास, संपत्ति और बैंक खाते जैसे 12 संकेतकों के जरिये किया जाता है. वर्ष 2015 में 193 देशों द्वारा अपनाए गए सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) रूपरेखा ने दुनिया भर में विकास की प्रगति को मापने के लिए विकास नीतियों और सरकारी प्राथमिकताओं को फिर से परिभाषित किया है.
विकास मापने के पैमाने में किया गया बदलाव
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने सूचकांक की प्रस्तावना में कहा कि भारत के राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक का विकास एक सार्वजनिक नीति उपकरण स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान है. यह बहुआयामी गरीबी की निगरानी करता है, साक्ष्य-आधारित और केंद्रित हस्तक्षेप के बारे में बताता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भी पीछे न छूटे. कुमार ने आगे कहा कि भारत के पहले राष्ट्रीय एमपीआई की यह आधारभूत रिपोर्ट राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) की 2015-16 की संदर्भ अवधि पर आधारित है.


Next Story