झारखंड

विश्व का एकमात्र मंदिर जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान, 51 शक्तीपीठों में से एक है देवघर का बाबा बैद्यनाथ धाम

Gulabi Jagat
8 Aug 2022 2:15 PM GMT
विश्व का एकमात्र मंदिर जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान, 51 शक्तीपीठों में से एक है देवघर का बाबा बैद्यनाथ धाम
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देवघर: देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ (51 Shaktipeeths) का वर्णन है. उसमें से एक है देवघर का बाबा बैद्यनाथ धाम (Baba Baidyanath Dham of Deoghar). शक्तिपीठ के साथ-साथ बाबा बैद्यनाथ धाम को हृदयपीठ के नाम से भी जानते हैं. इसके अलावा इसकी एक और विशेषता यह भी है कि यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शिव और शक्ति दोनों ही एक साथ विराजमान हैं. देवघर का बाबा बैद्यनाथ धाम शिव शक्ति के मिलन के स्थल से भी प्रसिद्ध है.
क्यों कहलाता है हृदयपीठ: देवघर का हृदयपीठ कहलाने के पीछे एक ऐतिहासिक धारना है. धार्मिक साहित्य के आधार पर यह दक्ष यज्ञ से जुड़ी है. सतयुग में जब दक्ष प्रजापति ने शिवजी से अपमानित होकर वृहस्पति नाम का यज्ञ प्रारम्भ किया था. तब प्रजापति ने शिव को छोड़कर सभी देवी देवताओं को निमंत्रण दे दिया. पिता के घर यज्ञ सुनकर सती ने जाने की इच्छा जाहिर की. भगवान शंकर इसके लिए राजी नहीं हुए लेकिन, हट करके माता सती पिता के घर चली गई. जब माता सती वहां पहुंची तो पिता के मुख से पति का अनादर सुन यज्ञ कुंड में कूद गयी. उसके बाद हाहाकार मच गया. क्रोधित शिव वीरभद्र का रूप लेकर वहां पहुंचे और उन्होंने राजा दक्ष का सिर काट दिया. उसके बाद उन्होंने सती के मृत शरीर को उठाया और घूम-घूम कर विलाप करने लगे. इस दौरान जहां जहां माता सती के अंग गिरे वह शक्तपीठ बन गया. उसमें से एक देवघर भी है, जहां माता का हृदय गिरा था. तभी से बाबा बैद्यनाथ धाम 'हृर्दयपीठ' या 'हार्दपीठ' के नाम से जाना जाने लगा.
तीर्थ पुरोहित दुर्लभ मिश्रा
शिव और शक्ति एक साथ विराजमान: बाबा बैद्यनाथ मंदिर विश्व का एकमात्र मंदिर है, जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान हैं. यही कारण है कि इसे शक्तिपीठ और हृर्दयपीठ भी कहते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस नगरी में आने से शिव और शक्ति दोनों का आशीर्वाद मिलता है. पुरोहित बताते है कि यहां पहले शक्ति स्थापित हुईं. उसके बाद शिवलिंग की स्थापना हुई. भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग सती के ऊपर स्थित है इसलिए इसे शिव और शक्ति के मिलन के रूप में भी जाना जाता है. इसके अलावा तांत्रिक ग्रंथों में भी इस स्थल की चर्चा है. देवघर में काली और महाकाल के महत्व की चर्चा तो पद्पुराण के पतालखंड में भी की गई है.
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