झारखंड

बाल एवं युवा साहित्य पुरस्कार की घोषणा झारखंड के दो युवा साहित्यकारों का चयन

Bhumika Sahu
25 Aug 2022 5:55 AM GMT
बाल एवं युवा साहित्य पुरस्कार की घोषणा झारखंड के दो युवा साहित्यकारों का चयन
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झारखंड के दो युवा साहित्यकारों का चयन

रांची (झारखंड): साहित्य अकादमी ने युवा और बाल साहित्य अकादमी पुरस्कार की घोषणा की है। 23 भाषाओं के युवा पुरस्कार कि घोषणा हुई है। इसमें झारखंड के दो लेखकों को भो स्थान दिया गया है। हजारीबाग के मिहिर और जमशेदपुर कि सालगे हांसदा ने पुरस्कार पाया है। हजारीबाग के मिहिर को उनके द्वारा लिखी गई किताब टेल्स ऑफ हजारीबाग के लिए युवा साहित्य अकादमी के पुरस्कार मिला। जबकि सालगे हांसदा को उनकी द्वारा लिखी गई किताब जनम दिसोम उजारोग काना के लिए साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला। झारखंड के दो युवा साहित्यकारों को साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिलने से झारखंड के लोगों ने खुशी की लहर है।

चाकुलिया के डिग्री कॉलेज में गेस्ट टीचर है सालगे हांसदा
युवा साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाली साल के हांसदा पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया में स्थित एसआरएम डिग्री कॉलेज में गेस्ट टीचर के तौर पर अध्यापन का कार्य कर रही है। वह विभिन्न सामाजिक संगठनों और साहित्यिक संगठनों से भी जुड़ी हुई हैं। उनके द्वारा लिखी गई संथाली किताब जनम दोसोम उजारोज काना का हिंदी अर्थ जन्म भूमि विरान हो रहा है। साल के हादसा जमशेदपुर के बारीगोड़ा की रहने वाली है। 23 अक्टूबर 1989 में उनका जन्म हुआ था। उन्होंने कोल्हान विश्वविद्यालय से संथाली भाषा में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। नेट क्वालीफाई करने के साथ संथाली में B.Ed की डिग्री हासिल की। सालगे हांसदा ऑल इंडिया संथाली राइटर एसोसिएशन की आजीवन सदस्य तथा पूर्वी सिंहभूम शाखा की सहायक सचिव और जाहेर थान की कमेटी की कार्यकारिणी सदस्य भी है। सालगे हांसदा ने राइबल कल्चरल सोसाइटी द्वारा संचालित ओलचिकि और संताली भाषा अध्ययन केंद्र में शिक्षिका तथा समन्वयक के रुप के रूप में सेवा की।
रविंद्र नाथ टैगोर को आदर्श मानते हैं मिहिर
टेल्स ऑफ हजारीबाग नामक पुस्तक लिखने वाले मिहिर रविंद्र नाथ टैगोर को अपना आदर्श मानते हैं। मिहिर ने डीएवी स्कूल हजारीबाग से स्कूलिंग करने के बाद दिल्ली के रामजस कॉलेज से पीजी किया। उसके बाद सिदो-कान्हू मुर्मु यूनिवर्सिटी दुमका में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में अपना योगदान दिया। नौकरी छोड़ दे फिलहाल आईआईटी दिल्ली से साहित्य में पीएचडी कर रहे हैं। उनकी पहली काव्य पुस्तक 2014 में प्रकाशित हुई थी।


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