झारखंड

केंद्र व राज्य के रवैये से झारखंड में बढ़ीं एनीमिक किशोरियां, पोषण अभियान भी बेअसर

Rani Sahu
7 Aug 2022 7:09 AM GMT
केंद्र व राज्य के रवैये से झारखंड में बढ़ीं एनीमिक किशोरियां, पोषण अभियान भी बेअसर
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केंद्र व राज्य के रवैये से झारखंड में बढ़ीं एनीमिक किशोरियां
Ranchi: राज्य में किशोरियों में एनीमिया की शिकायत बढ़ती ही जा रही है. एनएफएचएस-5 के आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं. एनएफएचएस-4 के आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में 65.0 फीसदी किशोरियां (15-19 वर्ष) एनीमिक थीं, पर एनएफएचएस-5 में यह आंकड़ा 65.8 हो गया. मतलब झारखंड में एनीमिक किशोरियों की संख्या घटने की बजाये बढ़ गयी हैं. इसका एक बड़ा कारण आंगनबाड़ी सेवाओं को दुरूस्त किये जाने के मसले पर केंद्र राज्य के बीच तालमेल की कमी को बताया जा रहा है. दोनों एक दूसरे से इसे ठीक किये जाने की अपेक्षा कर रहे हैं. नतीजा यह है कि पोषण अभियान भी एनीमिक किशोरियों के लिये बेअसर साबित हुआ है. केंद्र के स्तर से देश भर में किशोरियों और कुपोषित बच्चों की सेहत सुधारने को शुरू किये गये इस अभियान का आधा अधूरा ही लाभ मिल पाया है.
पोषण अभियान के कारण बच्चों को लाभ
लोकसभा के मॉनसून सत्र में सांसद सुनील कुमार सिंह ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से झारखंड में पोषण अभियान और इसके हासिल किये गये लक्ष्य पर जानाकारी मांगी थी. इस पर विभागीय मंत्री स्मृति ईरानी की ओर से बताया गया कि देश में 6 साल से कम आयु के बच्चों के अलावा किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और अन्य के पोषण स्तर में सुधार को 8 मार्च 2018 को पोषण अभियान शुरू किया गया था. इसके तहत बच्चों में प्रतिवर्ष 2 प्रतिशत की दर से ठिगनेपन और अल्प पोषण को रोकना और कम करना, बच्चों और किशोरियों में 3 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से रक्ताल्पता की दर को कम करने पर जोर दिया गया.
एनएफएचएस-5 (2019-21) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में एनएफएचएस-4 की तुलना में बच्चों के ठिगनेपन में कमी आयी है. एनएफएचएस-4 के मुताबिक 45.3 फीसदी बच्चों में ठिगनेपन की शिकायत थी. एनएफएचएस-5 में यह 39.6 फीसदी हो गया. राष्ट्रीय स्तर पर एनएफएचएस-5 के 38.4 की तुलना में एनएफएचएस-5 में यह 35.5 हो गया.
राज्य के 6-59 माह के बच्चों में एनीमिक केस में कमी आयी है. एनएफएचएस-4 में यह 69.9 फीसदी था जो अब एनएफएचएस-5 में 67.5 हो गया है. हालांकि किशोरियों (15-19 वर्ष) के मामले में ऐसा नहीं हो सका है. एनएफएचएस-5 में यह 65.8 प्रतिशत है जबकि एनएफएचएस-4 में यह 65.0 प्रतिशत ही था.
आंगनबाड़ी केंद्रों के लिये केंद्र से मदद की गुहार
गौरतलब है कि पिछले माह (2 जुलाई को) केंद्रीय महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री डॉ मुजापारा महेंद्र भाई आकांक्षी जिलों की जोनल मीटिंग में शामिल होने रांची आये थे. इस दौरान महिला एवं बाल विकास विभाग (झारखंड सरकार) की मंत्री जोबा मांझी ने उस दौरान भी केंद्र से कहा कि राज्य में बच्चो, किशोरियों में कुपोषण एक गंभीर मसला है. राज्यभर के गांव-गांव में आंगनबाड़ी खोले जावे की जरूरत लगती है. राज्य के 6 जिलों में केंद्र के सहयोग से 10388 पोषण सखियों की नियुक्ति 2017 में की गयी थी. पर अब केंद्र ने उनसे मदद लिये जाने के मामले में हाथ खींच लिये हैं जबकि उनसे सेवा ली जानी चाहिये. केंद्र के पास आंगनबाड़ी केंद्रों के निर्माण का पैसा का मसला अटका पड़ा है. 2020-21, 2021-22 के आंगनबाड़ी केंद्रों के निर्माण का और बाकी कामों का पैसा केंद्र जल्द आवंटित करे. इस पर केंद्रीय मंत्री ने इस पर फिर से जरूरी प्रस्ताव भेजे जाने की बात कही थी.
सोर्स- Newswing
Rani Sahu

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