झारखंड

अमेरिका को समझ आई भारत की महत्ता, मोदी सरकार की कारगर विदेश नीति

Rani Sahu
22 July 2022 9:56 AM GMT
अमेरिका को समझ आई भारत की महत्ता, मोदी सरकार की कारगर विदेश नीति
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अमेरिका को समझ आई भारत की महत्ता

सोर्स- जागरण

डा. तुलसी भारद्वाज : हाल में अमेरिकी संसद के निचले सदन ने उस प्रस्ताव को बड़े बहुमत से स्वीकृत किया, जिसके तहत भारत को 'काटसा' प्रतिबंधों से छूट मिलेगी। 'काटसा' यानी काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट वह कानून है, जिसके तहत अमेरिका तीन देशों- उत्तर कोरिया, ईरान और रूस से लेनदेन करने वाले देशों पर अमेरिका प्रतिबंध लगाता है। चूंकि उक्त प्रस्ताव बहुमत से पारित हुआ और पक्ष-विपक्ष के अधिकांश प्रतिनिधियों ने उसके पक्ष में मतदान किया, इसलिए यह लगभग तय है कि उच्च सदन यानी सीनेट से भी उसे मंजूरी मिलेगी। 'काटसा' से छूट मिलने से भारत को रूस से हथियार और विशेष रूप से मिसाइल एस-400 प्रणाली लेने में कोई कठिनाई नहीं होगी। यह पहल अमेरिका की नजरों में भारत के बढ़ते महत्व को दर्शाती है। अमेरिका ने 2017 में 'काटसा' को मुख्य रूप से रूस के विरुद्ध बनाया था। वर्तमान में यह उन देशों के विरुद्ध खास तौर पर लागू होता है, जो रूस से रक्षा सामग्री लेते हैं

चूंकि भारत अपनी रक्षा आवश्यकताओं के लिए रूस पर निर्भर है, इसलिए उसने 'काटसा' की अनदेखी कर 2018 में रूस से पांच एस-400 एंटी मिसाइल सिस्टम खरीदने का सौदा किया था। वर्तमान में यह दुनिया की सबसे अत्याधुनिक वायु रक्षा प्रणाली है। यह भारत की सुरक्षा के लिए अति आवश्यक है। इस सौदे के बाद से ही भारत पर अमेरिकी प्रतिबंधों की तलवार लटक रही थी। इसके बाद भी विदेश मंत्री एस. जयशंकर बार-बार यह स्पष्ट करते रहे कि भारत किसी भी तरह के विदेशी दबाव में अपनी सुरक्षा के साथ समझौता नहीं कर सकता।
यह अच्छी बात है कि अमेरिका ने भारत की भू-राजनीतिक परिस्थितियों और चुनौतियों को समझा। यही वजह है कि जहां उसने 'काटसा' के तहत उत्तर कोरिया, ईरान, रूस, तुर्किये, इंडोनेशिया, आर्मीनिया जैसे देशों पर प्रतिबंध लगाए, वहीं भारत को प्रतिबंधों में छूट देने का फैसला किया। वह भारत से संबंधों को और प्रगाढ़ करने के लिए अन्य क्षेत्रों में भी साझेदारी के लिए कानूनी प्रविधान कर रहा है। भारत चीन को साधने के लिए बनाए गए क्वाड का एक बहुत ही अहम हिस्सा है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत से साझेदारी अमेरिका के लिए एक बड़ी प्राथमिकता है। हाल के वर्षों में रणनीतिक भागीदार के रूप में भी दोनों देशों की पारस्परिक हितों के लिए प्रतिबद्धता लगातार बढ़ी है। इस सबके बावजूद भारत-अमेरिका संबंधों में प्रतिबंधों की तलवार और सख्त बयानबाजी लगातार भ्रम की स्थिति बनाए हुई थी, लेकिन अब 'काटसा' में भारत के पक्ष में संशोधन से दोनों देशों के कूटनीतिक समीकरण हल होते नजर आ रहे हैं। इस संशोधन से अमेरिका-भारत के रिश्तों को और अधिक मजबूती मिलेगी। इसका एक उद्देश्य रूस पर भारत की निर्भरता को कम करना भी है।
इन प्रतिबंधों से छूट की प्रासंगिकता इसलिए और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि पिछले कुछ समय से भारत के प्रति अमेरिकी नाराजगी दिख रही थी। यूक्रेन-रूस युद्ध में भारत के निर्णय ने अमेरिका को न केवल निराश किया, बल्कि अपने तल्ख वक्तव्यों के बदले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीखी प्रतिक्रिया का भी सामना किया। चाहे वह टू प्लस टू वार्ता के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर का पलटवार हो या फिर रियायती दरों पर रूस से तेल की खरीदारी के मुद्दे पर दो टूक जवाब।
आज अन्य देशों के साथ-साथ अमेरिका भी यह समझ चुका है कि वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत उस मुकाम पर पहुंच चुका है जहां उसकी विदेश नीति के निर्धारण का आधार केवल अपना हित है। देखा जाए तो विभिन्न विषयों पर विपरीत विचारधारा वाले पश्चिमी देशों के साथ सामंजस्य बनाने की यह दृढ़ता भारत को विरासत में नहीं मिली। एक समय अमेरिका सहित सभी पश्चिमी देश भारत के खिलाफ पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद की अनदेखी करते थे। 1971 के बांग्लादेश युद्ध के समय भी अमेरिका ने पाकिस्तान का खुला समर्थन किया था, परंतु 9-11 के आतंकी हमले के बाद अमेरिका की आंखें खुलीं। 26-11 यानी मुंबई हमले के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान पर दबाव बनाया।
इससे पहले भारत ने पश्चिमी नीतियों को अपने प्रति उदार बनाने के प्रयास शुरू कर दिए थे। जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे, तब उन्होंने कांग्रेस के विरोध के बाद भी खाड़ी युद्ध के दौरान भारत की गुटनिरपेक्ष नीति पर कायम रहते हुए भी अमेरिकी लड़ाकू विमानों को ईंधन भरने की इजाजत दी। फिर पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव की आर्थिक उदारीकरण की नीतियों ने अमेरिका के साथ-साथ पश्चिमी पूंजीपतियों को भारत के और करीब लाने के गंभीर प्रयास किए। जब वाजपेयी सरकार ने परमाणु परीक्षण किए तो अमेरिका ने कई प्रतिबंध लगा दिए। इसके बाद दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने विभिन्न देशों में कम से कम 14 बार मुलाकात की। इन प्रयासों का नतीजा मनमोहन सिंह के कार्यकाल में परमाणु समझौते के रूप में हासिल हुआ। इसके बाद दोनों देशों के बीच एक नए युग की शुरुआत हुई। अमेरिका ने भारत की परमाणु आवश्यकताओं को समझते हुए प्रतिबंधों को भी हटाया।
यह मोदी सरकार की कुशल विदेश नीति के कारण दोनों देशों के संबंधों में आई अप्रत्याशित घनिष्ठता का ही नतीजा है कि 'काटसा' से भारत को छूट मिल रही है। वर्तमान में अमेरिका भी जानता है कि चीन की चुनौती से निपटने में भारत की भूमिका निर्णायक रहने वाली है। कोरोना त्रासदी और फिर यूक्रेन संकट के कारण अन्य देशों के मुकाबले भारत पर दुनिया का विश्वास और अधिक बढ़ा है। आज यह कहा जा सकता है कि भारत का बढ़ता वैश्विक कद उसे संयुक्त राष्ट्र की स्थायी सदस्यता दिलाने में मददगार साबित होगा।
Rani Sahu

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