झारखंड

सिमडेगा के जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो गया

Renuka Sahu
14 March 2024 6:18 AM GMT
सिमडेगा के जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो गया
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अभी गर्मी की प्रचंडता शुरू भी नहीं हुई है और सिमडेगा के जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो गया है.

सिमडेगा : अभी गर्मी की प्रचंडता शुरू भी नहीं हुई है और सिमडेगा के जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो गया है. जंगल में आग लगने से जंगलों को भारी नुकसान होने लगा है. सिमडेगा की जंगलों में आग की लपटें उठने लगी है. आग से जंगलों के छोटे पौधों और छोटे जीव जन्तु को नुकसान हो रहा है.

जंगलों में आग गर्मी से नहीं, खुद ग्रामीण अपने स्वार्थ पूर्ति में लगा रहे
सिमडेगा के जंगलों से मिलने वाले वनोपाद पर निर्भर रहने वाले ग्रामीण आज खुद लापरवाही बरतते हुए जंगलों में आग लगाने लगे हैं. सिमडेगा के कोलेबिरा घाटी क्षेत्र और बोलबा घाटी के जंगलों में आग जंगलों में फैलने लगे हैं. जंगलो की तरफ जाने पर हमने भी देखा एक ग्रामीण महिला द्वारा आग लगा कर नुकसान पंहुचाया जा रहा है। हमने जब इससे आग लगाने का कारण पूछा तो उसने कहा इससे जंगल का पत्ता साफ होता है और महुआ चुनने में आराम होती है.
आग से जंगलों को हो रहा भारी नुकसान
दरअसल, मार्च के शुरुवात से अप्रैल तक महुआ के पेडों में फुल आते हैं जो एक एक कर जमीन पर गिरते हैं, जिन्हे ग्रामीण चुन कर इक्कठा करते हैं और बाजारों में बेचकर पैसे कमाते हैं. अब सवाल उठता है कि सिर्फ महुआ चुनने के लिए जंगल को आग लगा कर नुकसान पंहुचाना कितना सही है. जंगल में आग लगने से एक तरफ जहाँ बरसात के बाद पैदा हुए छोटे छोटे पौधे जल जाते हैं. वहीं, जंगल में रहने वाले पशु पक्षियों सहित कीट पतंगो को भी काफी नुकसान होती है.
गल में अभी साल पेड जो की झारखंड के जंगलों में बहुतायत पाए जाते हैं इनका प्रजनन का समय होता है. नए पौधों के लिए बीज जमीन पर गिरते हैं. जो पहली बारिश के बाद अंकुरन होते हैं. लेकिन ग्रामीणों द्वारा लगाए आग उन बीजों को नष्ट कर देता है. यही कारण है कि जंगल का घनत्व दिनो दिन कम हो रहा है.
कोलेबिरा विधायक नमन विक्सल कोंगाड़ी ग्रामीणों से महुआ चुनने की विधि बदल कर बिना जंगल में आग लगाए महुआ चुनने की अपील की है. जिससे जंगल सुरक्षित रहे. लेकिन ग्रामीण आग लगाने से बाज नहीं आते हैं.
जंगल को आग से बचाने के लिए एक ठोस पहल कर जमीनी स्तर पर कार्य हो जिससे ग्रामीण भी जागरूक हो और जंगल बच सके. अगर हालात नहीं सुधरे तो एक दिन जंगल खत्म हो जाएगा और सभी हाथ मलते रह जाएगें.


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