झारखंड

101 करोड़ की हरमू नदी परियोजना पर 93 करोड़ खर्च

Admin Delhi 1
6 Aug 2023 6:30 AM GMT
101 करोड़ की हरमू नदी परियोजना पर 93 करोड़ खर्च
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राँची: रांची में हरमू नदी के जीर्णोद्धार और संरक्षण के लिए शुरू हुआ प्रोजेक्ट फेल हो गया है। 101 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट पर अब तक 93 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। लेकिन अभी भी नदी में सीवरेज का पानी बहता है। झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र के अंतिम दिन शुक्रवार को सदन में पेश सीएजी की वित्तीय वर्ष 2021 की परफार्मेंस ऑडिट रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ। रिपोर्ट में हरमू नदी प्रोजेक्ट के अलावा रांची सीवरेज ड्रेनेज प्रोजेक्ट (मैनहर्ट) की अनियमितताओं का भी विस्तृत उल्लेख है।

रिपोर्ट पेश करने के बाद प्रधान महालेखाकार (पीएजी) उदय शंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने कहा-हरमू नदी प्रोजेक्ट से रांची के लोगों को कोई फायदा नहीं होने वाला है। ऑडिट टीम ने मेकॉन से हरमू नदी की पानी की जांच कराई तो इसमें गंदा पानी बहने की बात सामने आई। प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले हरमू नदी में जितनी गंदगी थी, वही हाल अब भी है। राज्य सरकार ने अपनी कमेटी से जो जांच कराई, उसमें भी पानी की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं मिला। लक्ष्य को पूरा करने में यह प्रोजेक्ट पूरी तरह से विफल रहा।

रिपोर्ट में खुलासा : कैसी-कैसी गड़बड़ियां हुईं

पीएजी के सचिव चंपक राम ने कहा-जून 2014 से मार्च 2022 के दौरान हुए कामों को देखा गया। नदी के लिए 14 प्रमुख इनलेट पॉइंट में नौ पॉइंट ही सीवर नेटवर्क से जुड़ा था। सूखे के दौरान भी सीवरेज का पानी नदी में गिरते दिखा। पांच जगहों पर सीवरेज का पानी सीधे नदी में बह रहा था। इसके अलावा सीवरेज नेटवर्क से जुड़े 50 छोटे इनलेट पाॅइंट से भी सीवरेज का पानी नदी में गिर रहा था।

22.15 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) के लिए ड्राफ्ट तैयार किया गया था। जबकि अनुमानित सीवेज 47 एमएलडी है। इस नदी के 22.59 वर्ग किमी के कुल जल ग्रहण क्षेत्र के मुकाबले केवल 8.49 वर्ग किमी के कम जल ग्रहण क्षेत्र के आधार पर डिजाइन तैयार किया गया था।

नदी के दोनों किनारों पर वर्षा जल विकास प्रणाली के निर्माण का उद्देश्य प्राप्त नहीं हुआ। नालों को गाद, मिट्टी से अवरुद्ध किया गया था और ये नाले नदी में गिरते दिखे। गंदे पानी का ट्रीटमेंट कर साफ पानी नदी में डालना था। इस उद्देश्य को भी अब पूरा नहीं किया जा सकता। ऑडिट टीम ने अप्रैल 2022 में पानी की जांच कराई, जिसमें फैकल कॉलीफॉर्म होने का पता चला।

पंपों के दैनिक मेंटेनेंस के लिए आवंटित 6 लाख रुपए प्रति वर्ष के मुकाबले 33 लाख रुपए सालाना बिजली पर खर्च हो रहा था।

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