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जम्मू और कश्मीर
कश्मीर घाटी में एलओसी पर बसे टीटवाल गांव के मुस्लिम करवा रहे है शारदा मंदिर और गुरुद्वारे का निर्माण
Ritisha Jaiswal
13 April 2022 11:55 AM GMT
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कश्मीर के बारे में लिखा गया है, “गर फिरदौस बर रुए ज़मीं अस्त; हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त” यानी अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है
कश्मीर के बारे में लिखा गया है, "गर फिरदौस बर रुए ज़मीं अस्त; हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त" यानी अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं पर है और सिर्फ यहीं पर है. दशकों से जिस स्वर्ग में हिन्दू मुसलमान के नाम पर खूबसूरत घाटी को नर्क बनाने की कोशिश हुई वो अब नाकाम होती हुई दिखाई दे रही है. इसकी मिसाल पेश की एलओसी पर स्थित टीटवाल गांव ने. 1947 में टीटवाल गांव में जिस शारदा मंदिर और गुरुद्वारे को तोड़ा गया था आज उसी गांव में उसी जगह पर शारदा मां का मंदिर भी बन रहा है और गुरुद्वारा भी. गांव के मुसलमान ही मंदिर और गुरुद्वारे का निर्माण कर पाकिस्तान को ये संदेश देने में लगे हुए हैं कि कश्मीरी कल भी हिंदुस्तानी थे, आज भी हैं और हमेशा रहेंगे.
जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा ज़िले के सीमावर्ती गांव टीटवाल के बाद किशनगंगा नदी बहती है और उस पार हिंदुस्तान के कश्मीर का वो हिस्सा है जिस पर पाकिस्तान ने नापाक तरीक़े से कब्ज़ा कर रखा है. टीटवाल गांव में शारदा मंदिर बनने की ख़बर पाकर एबीपी न्यूज़ ने एलओसी के इस गांव में जाने का फ़ैसला किया ताकि गांव के लोगों का मिजाज़ और यहां की एकता को समझा जा सके.
कबीलाई हमले में टूट गए थे मंदिर और गुरुद्वारे
इस गांव में पहुंचकर ये समझ आया कि जिस गांव में कबीलाई हमले में यहां से हिंदुओं और सिखों को भगा दिया गया और यहां मौजूद शारदा पीठ के मंदिर और एक गुरुद्वारे को तोड़ दिया गया था, वहां कश्मीरियत आज भी ज़िंदा है. असल में जब देश आज़ाद हुआ तो कश्मीर पर कब्ज़े के लिए कबीलाई हमला पाकिस्तान की तरफ से करके कश्मीर का एक हिस्सा कब्ज़ा लिया गया. उस वक़्त कबीलाई हमले में कई मंदिरों और गुरुद्वारों को तोड़कर तबाह कर दिया गया. उन्हीं में से एक मंदिर और गुरुद्वारा इस टीटवाल गांव का भी था.
गांव के मुसलमानों ने जमीन कश्मीरी पंडितों को सौंपी
कश्मीर घाटी में एलओसी पर बसा पीओके से मात्र 500 मीटर दूर स्थित टीटवाल गांव में पिछले साल सितंबर में जब कश्मीरी पंडित वार्षिक शारदा पीठ यात्रा के लिए किशनगंगा नदी के घाट पर पहुंचे तो टीटवाल के मुसलमानों ने उन्हें मंदिर की ज़मीन सौंप दी. अब इस ज़मीन पर मंदिर और गुरिद्वारे का निर्माण कार्य चल रहा है. एज़ाज़ अहमद ने कहा कि उनके गांव टीटवाल के मुसलमानों ने एक मिसाल क़ायम करने का काम किया है. उन्होंने कहा कि उन्हें ख़ुशी है कि हिन्दू और सिख समाज के लोगों ने विश्वास करके मंदिर निर्माण का काम उन्हें सौंपा है. उन्होंने पाकिस्तान से अपील की है कि जैसे करतारपुर कॉरिडोर शुरू हुआ वैसे पंडितों के लिए कॉरिडोर बनाकर मिसाल पेश करनी चाहिए.
एज़ाज़ ने कहा कि वो एक ऐसे आज़ाद मुल्क में रहते हैं जिसपर उन्हें गर्व है. एज़ाज़ ने कहा कि जब मंदिर, गुरुद्वारा और मस्ज़िद बनकर तैयार होगा तो पूरा गांव जश्न मनाएगा. हिन्दू, मुस्लिम और सिख साथ बैठकर पाकिस्तान को दिखाएंगे कि वो मुसलमानों पर जो ज़ुल्म की बात करते हैं वो ग़लत है. हमें हिंदुस्तान में धार्मिक आज़ादी है लेकिन पाकिस्तान ने ग़लतफ़हमी फैलाने का काम किया है.
शारदा मंदिर का कॉरिडोर खोलने की मांग
गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के सदस्य जोगिंदर सिंह ने बताया कि 1947 से पहले गुरुद्वारा टीटवाल में था और तब श्रद्धालू बड़ी संख्या में यहां आकर ठहरते हैं. उन्होंने कहा कि करतार पुर साहेब की तरह शारदा मंदिर का कॉरिडोर भी खुलना चाहिए जिससे दोनों मुल्कों में अमन क़ायम हो सके. जोगिंदर सिंह ने बताया कि टीटवाल के मुसलमान बढ़ चढ़कर मंदिर और गुरुद्वारा बनाने में मदद करने में लगे हैं.
शारदा मंदिर समिति के सदस्य सुरेंद्र मिर्ज़ा ने कहा कि आज की पीढ़ी के लोग शारदा मां के मन्दिर के बारे में भूलने लगे थे. ऐसे में उनके जैसे कुछ हिंदुओं ने 2 साल पहले यात्रा निकालने का प्लान किया. पिछले साल जब यात्रा टीटवाल तक पहुंची तो टीटवाल और तंगधार के लोग उनके स्वागत के लिए आए. उस वक्त टीटवाल के मुसलमानों ने मंदिर और गुरुद्वारे की ज़मीन सौंपने की पेशकश की. इसके बाद अब मंदिर, गुरुद्वारा और धर्मशाला बनाने का फैसला किया.शारदा पीठ के अंतर्गत आने वाला शारदा माता का एक मंदिर पीओके में पड़ता है. इस मंदिर से 1947 तक छड़ी मुबारक जाया करती थी. यात्रा में शामिल श्रद्धालु टीटवाल गांव में स्थित शारदा मंदिर आकर ठहरते थे. इसके लिए मंदिर के बगल में एक धर्मशाला भी बनी थी. मुख्य मंदिर में महंत के तौर पर नंदलाल जी साल 1948 तक शारदा पीठ में रह रहे थे. इसके बाद वह कुपवाड़ा के टिकर आ गए.
मजूदरी कर रहे लोगों ने कही ये बात
टीटवाल में बन रहे मंदिर और गुरुद्वारे में मजदूरी करने वाले सलीम और परवेज़ ने कहा कि उन्हें ख़ुशी है कि वो मुसलमान होकर भी मंदिर बनाने का काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि वो चाहते हैं कि कश्मीर में अमन और शांति का माहौल पैदा हो और हिन्दू मुस्लिम सब मिलकर रहें. इसलिए मंदिर और गुरुद्वारे के निर्माण में वो लगे हैं और ख़ुशी ख़ुशी काम कर रहे हैं.
टीटवाल गांव ने जो संदेश पूरे कश्मीर और देश को दिया है, वो संदेश असल में पाकिस्तान के लिए है जो 75 सालों से इस भ्रम में जी रहा है कि कश्मीर के आवाम का मन हिंदुस्तान नहीं बल्कि पाकिस्तान के प्रति लगता है. टीटवाल गांव के लोगों ने सामने बसे पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियों को ये बता दिया है कि अब कश्मीर बदल रहा है और ये बदला हुआ कश्मीर ही असल कश्मीर है.
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