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- बारिश से क्षतिग्रस्त...
पिछले दो वर्षों में जम्मू-कश्मीर में भारत-पाकिस्तान सीमा पर गोलीबारी की घटनाएं न के बराबर हुईं हैं, जिससे सीमावर्ती इलाकों में बनाए गए हजारों बंकर बेकार हो गए हैं, लेकिन सांबा में रहने वाले करनैल चंद और उनके परिवार के लिए ऐसी ही एक बंकर वरदान साबित हुआ है। सांबा के रामगढ़ सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास नांगा गांव में रहने वाले करनैल चंद (63) अपने एक मंजिला घर के ढह जाने के बाद आश्रय के रूप में 14 गुणा आठ गुणा सात फुट के भूमिगत बंकर का इस्तेमाल कर रहे हैं। करनैल चंद का घर चार साल पहले क्षतिग्रस्त हो गया था, लेकिन गरीबी के कारण वह उसकी मरम्मत नहीं करा सके थे। सीमावर्ती इलाके में रहने वाले करनैल चंद दर्जी का काम करते थे और उन्हें ज्यादातर काम सुरक्षाबलों के शिविरों से मिलता था।
उनकी परेशानी तब शुरू हुई जब 2018 में उनकी पत्नी वीणा देवी गंभीर रूप से बीमार पड़ गईं। और जब जम्मू में कई महीनों के इलाज के बाद वह ठीक हो गईं, तो चंद को खुद लकवे का दौरा पड़ा, जिसके कारण वह बिस्तर पर पड़े रहे। चंद का बेटा उनकी इकलौती संतान है और वह एक निजी फैक्टरी में काम करता है और उसे बहुत कम वेतन मिलता है। परिवार को गुजारा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और वह अपने टूटे हुए घर को फिर से बनाना चाहते हैं। करनैल चंद ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ हम जीरो लाइन (भारत-पाकिस्तान सीमा) पर रह रहे हैं और सरकार ने सीमा पार से गोलीबारी के दौरान हमारी सुरक्षा के लिए इस बंकर का निर्माण किया है। चूंकि, हम एक कठिन दौर से गुजर रहे हैं, इसलिए हम इसका इस्तेमाल अपने घर के रूप में कर रहे हैं। ’’
गौरतलब है कि दिसंबर 2017 में केंद्र सरकार ने जम्मू, कठुआ और सांबा के पांच जिलों में अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए 14,460 व्यक्तिगत और सामुदायिक बंकरों के निर्माण को मंजूरी दी थी। बाद में सरकार ने अधिक संवेदनशील इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए 4,000 से अधिक बंकरों के निर्माण को मंजूरी दी थी। चंद ने कहा, ‘‘ हम बेहद व्यथित हैं और हमें मदद की आवश्यकता है। ’’ उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन के तहत व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों के निर्माण और प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत मिलने वाले लाभों के विस्तार की मांग भी की है