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- बदलते कश्मीर में खुलने...
भारत सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए कश्मीर में हिंदू नरसंहार के मामलों को फिर से खोल दिया है। दोबारा खुलने वाला पहला मामला जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या का है, जिन्हें यासीन मलिक के नेतृत्व वाले आतंकवादी समूह JKLF ने गोली मार दी थी। न्यायमूर्ति गंजू ने JKLF आतंकवादी मकबूल भट को पुलिस अधिकारी अमर चंद की हत्या और बाद में लंदन में भारतीय राजनयिक रवींद्र महत्रे की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई थी। जस्टिस गंजू को उनकी आस्था के कारण निशाना बनाया गया। 34 साल बाद नीलकंठ गंजू की हत्या के पीछे की बड़ी साजिश का पता लगाने के लिए जम्मू-कश्मीर पुलिस की राज्य जांच एजेंसी ने मामले की दोबारा जांच के लिए आम जनता से जानकारी मांगी है।
बदल रहा कश्मीर
बड़ा सवाल यही है कि यह सब कब हो रहा है? आतंकवाद का दंश झेलने वाले कश्मीर में इस तरह की सकारात्मक परिस्थिति कैसे उत्पन्न हुई। कैसे आतंक को कश्मीर में फैलाने वाले लोगों पर लगातार कार्रवाई की जा रही है। दरअसल, जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए हुए 4 साल पूरे हो गए हैं। इन 4 सालों में जम्मू-कश्मीर ने खुद में बड़ा बदलाव देखा है। जिन हाथों में कभी पत्थर होते थे, अब उन हाथों में लैपटॉप या मोबाइल देखने को मिल जाता है। जिस लाल चौक पर पहले कर्फ्यू जैसी स्थिति रहती थी, वहां अब भारतीय तिरंगा शान से लहराता है। इतना ही नहीं, भारत का राष्ट्रीय ध्वज का विरोध करने वाले हुर्रियत जैसे आतंकवादी संगठनों के कार्यालयों पर भी तिरंगा शान से लहराता दिखाई दे जाता है। यह कश्मीर की बदलती स्थिति है और यही कारण है कि कश्मीर में दहशत फैलाने वालों पर अब कार्रवाई शुरू हो चुकी है।
भाजपा का प्लान
कश्मीर में आतंकवाद को जड़ से मिटाने का एक्शन सुरक्षा बलों की ओर से लगातार चलाया जा रहा है। इसके परिणाम भी दिख रहे हैं। ऐसे में जस्टिस नीलकंठ गंजू के हत्या के मामले को फिर से खोलना कहीं ना कहीं कश्मीर से विस्थापित हिंदुओं को यह संदेश देने की कोशिश है कि आपके खिलाफ जिन लोगों ने भी षड्यंत्र किए, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश हैं। उपराज्यपाल के हाथों में वहां की शक्तियां हैं। ऐसे में जम्मू कश्मीर में नई राजनीतिक संभावनाओं की तलाश में जुटी भाजपा हिंदुओं खास करके कश्मीरी पंडितों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुटी हुई है।
हिन्दुओं को पक्ष में करने की कोशिश
हमने देखा है किस तरीके से कश्मीर के पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है। शारदा पीठ और खीर भवानी मंदिर में अब श्रद्धालुओं का ताता लगा रहता है। कश्मीर में रह रहे हिंदुओं को हर तरह से सुरक्षा प्रदान की जाती है। यह सब कहीं ना कहीं कश्मीर घाटी में एक बार फिर से उन ब्राह्मणों को स्थापित करने की कोशिश है जिन्होंने 90 के दशक में आतंकवाद की वजह से अपने जन्म स्थान को छोड़ दिया था। हालांकि, यह बात भी सच है कि हाल के दिनों में आतंकवादियों ने कुछ हिंदुओं को कश्मीर घाटी में निशाना जरूर बनाया। लेकिन यह उनकी बौखलाहट थी। उन्हें जल्द ही सुरक्षाबलों द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया। ऐसे में एक बार फिर से कश्मीरी पंडितों के बीच सरकार को लेकर एक बार फिर से भरोसा पैदा हो रहा है। कभी राजनीति में भी कश्मीर में हाशिए पर रहने वाले हिंदुओं को अब मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। जम्मू कश्मीर को लेकर जो परिसीमन आयोग बनाया गया था, उसने विधानसभा के 2 सीटें कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव दिया है। ऐसे में विधानसभा में कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा।
लोकतंत्र मजबूत हुआ
यही नहीं, जम्मू-कश्मीर में अब किसी एक परिवार का शासन नहीं चलता बल्कि निचले स्तर तक लोकतंत्र मजबूत हो गया है। पहली बार डीडीसी के चुनाव संपन्न हुए, पहली बार त्रि-स्तरीय पंचायती राज तंत्र जम्मू-कश्मीर में कायम हुआ, इसके तहत 33274 जनप्रतिनिधि चुने गये। जम्मू-कश्मीर के बुनियादी ढांचे का इस तरह विकास किया गया कि यह केंद्र शासित प्रदेश आज बड़े से बड़े अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन कर सकता है। हाल ही में श्रीनगर में जी-20 देशों की बैठक शांतिपूर्वक संपन्न हुई। श्रीनगर में पहला मल्टीप्लेक्स खुला और अब धीरे-धीरे घाटी के कई इलाकों में सिनेमाघर खुल चुके हैं और हाउसफुल भी चल रहे हैं।
खैर चाहे कोई भी बात हो, लेकिन जो दोषी हैं उनके खिलाफ कारवाई होती है तो इसका संदेश अच्छा जाता है। हालांकि, लोकतंत्र में इसका भी राजनीतिक कनेक्शन होता है। जनता को अपने पक्ष में करने की कोशिश में राजनीतिक दलों को यह काफी मदद पहुंचाता है। जनता भी इस स्थिति को अच्छी तरह समझती है। यही तो प्रजातंत्र है।