जम्मू और कश्मीर

इस खास वजह से लगाया जाता है भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग

Kavita Yadav
25 Aug 2024 7:22 AM GMT
इस खास वजह से लगाया जाता है भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग
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लाइफ स्टाइल Life Style: हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का त्यौहार Janmashtami festival मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्यौहार 26 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में धरती पर अवतार लिया था। ऐसे में हिंदू धर्म को मानने वाले सभी लोग इस दिन को भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। पूरे दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग का महाप्रसाद बनाया जाता है। तो आज जानिए इस छप्पन भोग थाली में किस-किस चीज को शामिल किया गया है। साथ ही ये भी जानेंगे कि भगवान को छप्पन भोग ही क्यों निर्भीक हो जाते हैं।

दुनिया ने पाए हैं 6 तरह के रस यानि स्वाद। मीठा, कड़वा, खट्टा, अम्लीय, चॉकलेट और कसाला। इन 6 स्वाद के मेल से 56 तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं। इन छप्पन भोग में जो शामिल हैं, वो हैं; माखन-मिश्री, खेड, पंजीरी, रसगुल्ला, माली, जलेबी, पुआ, जीरा लोध, काजू-बादाम बर्फी, पेड़ा, घेवर, मूंग दाल हलवा, मोहनभोग, पिस्ता बर्फी, पंचामृत, गाय का घी, शंकर पारा, मठरी, चिप्स, पकौड़े, सागा, दही, चावल, कढ़ी, चीला, आटा, पापड़, मुरब्बा, आम, केला, तेल, आलू बुखारा, सेब, गाजर, साग, टिक्की, पूड़ी, दूधी की सब्जी, बैंगन की सब्जी, शहद, सफेद मक्खन, ताजी क्रीम, कचौरी, रोटी, नारियल का पानी, बादाम का दूध, छाछ, शिकंजी, मीठा चावल, चना, भुजिया, सुपारी, सौंफ, पान और मेवा। क्या आपने कभी सोचा है कि छप्पन भोग ही क्यों? पचपन या वास्तु क्यों नहीं। तो इसके पीछे कुछ खास पौराणिक कारण हैं। मोटे तौर पर इसके पीछे दो कारण बताए गए हैं। तो इन दोनों को संक्षेप में जानें

श्री गोवर्धन पर्वत से भी जुड़ी है 56 भोग की पौराणिक कथा

भगवान श्री कृष्ण Lord Shri Krishna को छप्पन भोग चढ़ाने के पीछे की एक पौराणिक कथा काफी प्रचलित है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सभी बृजवासी, इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए उनकी एक बड़ी पूजा का आयोजन कर रहे थे। नन्हे कान्हा ने जब नंद बाबा से इस आयोजन की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि इससे इंद्रदेव प्रसन्न होंगे और अच्छी वर्षा करेंगे। इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि बरसात करना तो इंद्रदेव का काम है। अगर पूजा करनी ही है तो हमें गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, क्योंकि इस पर्वत की वजह से ही हमें फल और सब्जियां मिलती है और पशुओं को चारा मिलता है।

श्री कृष्ण की यह बात लोगों को समझ में आ गई और लोग गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह बात इंद्रदेव को पसंद नहीं आई और वो क्रोधित हो गए। क्रोधित हो कर इंद्रदेव ने इतनी वर्षा करवाई की ब्रजवासी परेशान होने लगे। तब श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्रदेव के कहर से बचाने के लिए अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और इस पर्वत के नीचे ही बृजवासियों ने शरण ली। लगातार 7 दिन तक श्री कृष्णा इसी मुद्रा में खड़े रहे। जब इंद्रदेव का गुस्सा कुछ शांत हुआ तब 8 वें दिन उन्होंने बारिश बंद करवाई। तब जाकर बृजवासी पर्वत से बाहर आए।

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