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अपनीबात : एक ऐसे समय में जब भारत वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए प्रयासरत है तब इस लक्ष्य पूर्ति की दिशा में ऊर्जा आत्मनिर्भरता बहुत महत्वपूर्ण होगी। ऊर्जा आत्मनिर्भरता टिकाऊ विकास की एक अहम निर्धारक के रूप में उभरी है। अच्छी बात है कि भारत ने इसके लिए आवश्यक प्रयास भी आरंभ कर दिए हैं। अक्षय ऊर्जा और परमाणु बिजली के साथ ही ऊर्जा सक्षमता पर जोर दिया जा रहा है। ऐसा करके भारत भू-राजनीतिक तनावों और वैश्विक आर्थिक मंदी जैसे बाहरी झटकों से जुड़े जोखिमों को कम कर सकता है। ऐसे झटकों से आपूर्ति श्रंखला बिगड़ने के साथ ही एकाएक महंगाई बढ़ने की आशंका होती है।
ऊर्जा आत्मनिर्भरता घरेलू उद्योगों के विकास, रोजगार सृजन और तकनीकी नवाचार में भी उत्प्रेरक की भूमिका निभाती है। इससे देश की आर्थिक क्षमताओं एवं सामरिक स्वायत्तता में भी वृद्धि होती है। ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना न केवल टिकाऊ एवं समावेशी आर्थिक वृद्धि के लिए आवश्यक है, अपितु यह भारत को बाहरी झटकों से बचाए रखने के साथ ही मजबूत आर्थिकी की बुनियाद भी रखता है।
अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए भारत अभी बड़ी हद तक बाहरी स्रोतों पर निर्भर है। अपनी जरूरत का 90 प्रतिशत तेल और 80 प्रतिशत कोयला भारत आयात करता है। इस अत्यधिक निर्भरता का समाधान निकाला जाना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि आयात से देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ता है। ऐसे में ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाना तत्काल आवश्यक हो गया है। ऊर्जा स्वायत्तता में व्यापक आर्थिक लाभ भी निहित हैं। इसमें स्वच्छ ऊर्जा की भूमिका बहुत बढ़ गई है। इसे अपनाने से महंगाई के विरुद्ध भी भारत रक्षा कवच बना सकता है, क्योंकि अक्षय ऊर्जा के स्रोतों, इलेक्ट्रिक वाहनों में काम आने वाली बैटरियों और हाइड्रोजन इन्फ्रास्ट्रक्चर की लागत लगातार घटने पर है। केवल इलेक्ट्रिक परिवहन की दिशा में बढ़कर ही भारत 2047 तक तकरीबन 2.5 ट्रिलियन (लाख करोड़) डालर तक की बचत में सक्षम हो सकता है.
