सुप्रीम : सुप्रीम कोर्ट ने दी गई छुट्टी से अधिक समय तक रुकने के लिए बर्खास्तगी के खिलाफ एक सैन्यकर्मी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अनुशासन सशस्त्र बलों की अमिट पहचान है और इसमें सेवा की शर्तों से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। अपीलकर्ता ने चार जनवरी, 1983 को मैकेनिकल ट्रांसपोर्ट ड्राइवर के रूप में सेना सेवा कोर में दाखिला लिया। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने कहा कि सैन्य अधिकारी ने अपनी पत्नी के इलाज के मेडिकल सर्टीफिकेट का कोई दस्तावेजी सुबूत नहीं दिया। ताकि यह पता चल सके कि उनकी पत्नी वाकई बेहद गंभीर रूप से बीमार थीं और उनके निरंतर इलाज के लिए उनकी उपस्थिति जरूरी थी। अपीलकर्ता ने इस मामले में अपनी तरफ से पूरी अनुशासनहीनता बरती। इसका किसी भी रूप में समर्थन नहीं किया जा सकता है। वह अतिरिक्त अवकाश लेने के लिए क्षमा प्रार्थी बनकर और 108 दिनों तक ड्यूटी से नदारद रहे। देखने वाली बात यह है कि अगर उनकी क्षमा की गुहार को स्वीकार किया जाता तो यह सैन्य बल में अन्य लोगों के लिए गलत संकेत होता।एक सैन्यकर्मी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अनुशासन सशस्त्र बलों की अमिट पहचान है और इसमें सेवा की शर्तों से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। अपीलकर्ता ने चार जनवरी, 1983 को मैकेनिकल ट्रांसपोर्ट ड्राइवर के रूप में सेना सेवा कोर में दाखिला लिया। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने कहा कि सैन्य अधिकारी ने अपनी पत्नी के इलाज के मेडिकल सर्टीफिकेट का कोई दस्तावेजी सुबूत नहीं दिया। ताकि यह पता चल सके कि उनकी पत्नी वाकई बेहद गंभीर रूप से बीमार थीं और उनके निरंतर इलाज के लिए उनकी उपस्थिति जरूरी थी। अपीलकर्ता ने इस मामले में अपनी तरफ से पूरी अनुशासनहीनता बरती। इसका किसी भी रूप में समर्थन नहीं किया जा सकता है। वह अतिरिक्त अवकाश लेने के लिए क्षमा प्रार्थी बनकर और 108 दिनों तक ड्यूटी से नदारद रहे। देखने वाली बात यह है कि अगर उनकी क्षमा की गुहार को स्वीकार किया जाता तो यह सैन्य बल में अन्य लोगों के लिए गलत संकेत होता।