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हिमाचल की राजनीतिक परंपराओं को पढऩे के लिए यूं तो कुछ मुख्यमंत्रियों का जिक्र होना लाजिमी है
By: divyahimachal
हिमाचल की राजनीतिक परंपराओं को पढऩे के लिए यूं तो कुछ मुख्यमंत्रियों का जिक्र होना लाजिमी है, लेकिन स्व.जीएस बाली व पंडित सुखराम सरीखे कुछ ऐसे भी नेता रहे हैं जिन्होंने क्षेत्र विशेष की पहचान में खुद को बुलंद किया है। जीएस बाली ने राजनीति के अपने प्रतिमान खड़े किए और हमेशा सियासत के आपात काल को सूंघने की क्षमता पैदा की। ऐसा नहीं है कि वह कांग्रेस की सत्ता में प्रासंगिक रहे, बल्कि भाजपा के दौर में भी उनकी सफलताओं का सेहरा विद्यमान रहा। वह सत्ता के शिखर का स्पर्श पाते रहे और बदले में अपनी ही सत्ता से संघर्ष के मूड में भी दिखे। कम से कम इस योग्यता व दक्षता के बराबर केवल पंडित सुखराम का काफी हद तक आकलन हो सकता है, वरना कांगड़ा की राजनीति में बाली ने दुनिया को कायल ही नहीं किया, बल्कि जहां खतरों को परास्त करना जरूरी था, कई नेताओं के छक्के भी छुड़ाए। नगरोटा बगवां जैसे विधानसभा क्षेत्र जहां केवल ओबीसी राजनीति का शिविर चलता था, उसके बाहुल्य के बावजूद वह निरंतर परवान चढ़े। यही वजह है कि कांगड़ा की सियासत जब पूरी तरह वीरभद्र सिंह की शरण में थी, यह नेता अपनी कमान को दुरुस्त कर रहा था।
बाली ने नगरोटा बगवां में अपनी जिरह की पताका को इस ऊंचाई तक पहुंचा दिया कि कांगड़ा के चौधरी नेता भी बौने हो गए। दूसरी ओर बतौर स्वास्थ्य मंत्री चंद्रेश कुमारी से धर्मशाला की संभावना में मेडिकल कालेज को टांडा के अस्तित्व से जोड़ दिया। इसी प्रदर्शन में उन्होंने किशन कपूर और मेजर विजय सिंह मनकोटिया को भी उनके राजनीतिक दिनों में तारे गिनवा दिए। नगरोटा के परिप्रेक्ष्य में विकास मॉडल की सशक्त पेशकश में दो सामान्य व एक इंजीनियरिंग कालेज, एसडीएम कार्यालय व एचआरटीसी के बस स्टैंड व डिपो स्थापित करके वह अपनी ताकत का इजहार करते रहे। हिमाचल पथ परिवहन निगम की छवि में सुधार की दृष्टि से बाली ने वोल्वो, एसी व अलग-अलग तरह की बसों के अलावा इंटर सिटी सुपरफास्ट टैम्पो जैसे नए कदम लिए। बीओटी आधार पर कुछ नए बस स्टैंड शुरू करके वह निजी पूंजीनिवेश के खाके को मजबूत करते दिखे। भले ही स्की विलेज की परिकल्पना में भाजपा ने उनके सियासी हाथ जलाने की कोशिश की, लेकिन अब तक की इन्वेस्टर मीट में यह साबित हो गया कि नेताओं को अपने प्रभाव के घोड़े दौड़ाने हैं, तो नए विचार, नवाचार और दृष्टिकोण को साबित करना होगा।
आज बाली के ही मॉडल पर कई मंत्री अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों को सर्वश्रेष्ठ बनाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं, लेकिन विभागीय तौर पर ऐसे हस्तक्षेप सामने नहीं आ रहे, जिनसे प्रदेश की तस्वीर भी उज्ज्वल नजऱ आए। यहां एक ही प्रश्र के दो आयाम पूछ रहे हैं कि क्या बाली कांगड़ा के सर्वमान्य नेता बन पाए या उधर पंडित सुखराम मंडी में एकछत्र साम्राज्य बना पाए। सुखराम ने हिमाचल विकास कांग्रेस के परचम तले धूमल सरकार में पैठ बनाई और इस तरह उनकी विरासत ने दोनों कांगे्रस व भाजपा को मन माफिक रसीद किया। दूसरी ओर बाली के सामने कांग्रेस का कोई भी नेता कांगड़ा के वजूद में खुल कर नहीं बोल पाया। आश्चर्य तो यह कि विजय सिंह मनकोटिया तक को बाली की शरण में अपनी आत्मा का परीक्षण कराना पड़ा। निश्चित रूप से बाली के जाने से कांगड़ा की सियासत को धक्का लगा है, लेकिन नगरोटा बगवां एक बार फिर बाल मेले के बहाने उनके बाल यानी आरएस बाली के लिए मंच प्रदान कर रहा है। यह राजनीति से हटकर सामाजिक गठजोड़ भी है, जो चौधरी बाहुल क्षेत्र में इस बार उनके बेटे आरएस बाली के नाम विरासत सौंपता है, यह देखना होगा।

Rani Sahu
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