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हिमाचल प्रदेश
क्यों दरक रहे हिमाचल के पहाड़, शिमला क्यों बुरे हाल में पहुंच गया
Manish Sahu
22 Aug 2023 6:54 PM GMT
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हिमांचलप्रदेश: शिमला समेत हिमाचल प्रदेश में हुई भारी बारिश तरह-तरह से कहर बरपा रही है. शिमला में भीषण बारिश के कारण अचानक बाढ़ आई और एक मंदिर ढह गया. इसमें 15 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. भूस्खलन के कारण कृष्णानगर इलाके में कई इमारतें नष्ट हो गईं और दो लोगों की मौत हो गई. शिमला के आसपास के क्षेत्र में बारिश के कारण हुए भूस्खलन में सड़कें क्षतिग्रस्त हो गई हैं. कई जगह पर लोगों को लंबे ट्रैफिक जाम का सामना करना पड़ा. राज्य के कई इलाकों में सामान्य जनजीवन ठप हो गया है. जानते हैं कि शिमला समेत पूरे हिमाचल के पहाड़ आखिर दरक क्यों रहे हैं?
हिमाचल प्रदेश के मौजूदा हालात अचानक नहीं बने हैं. जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि तटीय क्षेत्र और हिमालय प्रदेश चरम जलवायु घटनाओं में बढ़ोतरी तथा बारिश के पैटर्न में बदलाव के लिए तैयार रहें. रिपोर्ट के मुताबिक, हिमालयी क्षेत्र के लिए बनाई जा रहीं विकास रणनीतियों में अनियंत्रित बुनियादी ढांचे के विस्तार के बजाय जलवायु लचीलेपन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. रिपोर्ट में कहा गया है कि शिमला में बुनियादी ढांचे का विकास जलवायु के मुताबिक नहीं हो पाया है.
द हिंदू में प्रकाशित टिकेंददर सिंह पवार के लेख में कहा गया है कि हिमाचल और खासकर शिमला में हुई कई घटनाओं के विश्लेषण से एक खास पैटर्न का पता चलता है. समर हिल में मंदिर का निर्माण एक घाटी के भीतर किया गया था. यह शिमला के उपनगर टोटू के लिए जल आपूर्ति प्रणाली की जगह भी थी. कृष्णानगर में प्राकृतिक झरनों के ऊपर घर बनाए गए थे. साफ है कि जलस्रोत के नजदीक बनाई गई इमारतें आपदाओं के प्रति संवेदनशील हो जाती हैं. शिमला में करीब 25 प्रमुख झरने और 100 से ज्यादा पानी की बावड़ियां हैं.
निर्माण रणनीति में बदलाव से हुआ बंटाधार
भवन निर्माण रणनीतियों में 1990 के दशक के बाद बदलाव शुरू हुआ. हिमालयी क्षेत्र में भवन निर्माण में सीमेंट और कंक्रीट का इस्तेमाल शुरू हो गया. इस बदलाव का प्रमुख उदाहरण न्यू शिमला क्षेत्र है, जो कभी धान की खेती के लिए जाना जाता था. यह क्षेत्र कई जल स्रोतों तक फैला हुआ है. लोगों का मानना था कि सीमेंट और कंक्रीट का इस्तेमाल कर बने मजबूत ढांचों से पानी के बहाव को नियंत्रित किया जा सकता है. इसके बाद लोगों ने खाइयों और जलस्रोतों में जानबूझकर बस्तियां बसाईं. विकास की दौड़ में ये सबसे बड़ी गलती साबित हुई है.
शिमला का मास्टर प्लान होना बेहद जरूरी
शिमला में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट एडवोकेट्स चैंबर, न्यू इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल भवन जैसी कुछ विकास परियोजनाएं सीधे बड़े जल झरनों व नालों के ऊपर हैं. इनका निर्माण उन जलमार्गों पर किया गया है, जो पूरे साल रहते हैं. इनमें मानसून के समय उथल-पुथल होने की पूरी आशंका बनी रहती है. शिमला में हुई भारी बारिश सार्वजनिक संसाधनों के जरिये वित्त पोषित ऐसे कई अहम बुनियादी ढांचों के भाग्य को लेकर चिंता खड़ी करती है. आमतौर पर भूमि के इस्तेमाल से जुड़े मामलों को व्यापक विकास योजना के भीतर संबोधित किया जाना चाहिए, जिसे अक्सर शहर का मास्टर प्लान कहा जाता है. वहीं, शिमला को 1979 से एक अंतरिम विकास योजना के साथ ही चलाया जा रहा है.
कौन करता है शिमला की योजना की देखरेख
शिमला की योजना की देखरेख निर्वाचित शहर सरकार नहीं करती है, बल्कि यह शहर और देश नियोजन विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है, जो बिना किसी लोकतांत्रिक निरीक्षण के संचालित होता है. ये कंप्यूटर-सिम्युलेटेड योजनाओं पर बहुत ज्यादा निर्भर है, जो अक्सर बड़ी तकनीकी परामर्श फर्मों के इनपुट से निर्देशित होते हैं. फिलहाल शिमला विकास योजना यानी एसडीपी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. मौजूदा एसडीपी में जलवायु कार्ययोजना नदारद है, जो आदर्श रूप से होनी ही चाहिए. मौजूदा एसडीपी ‘कोर’ और ‘ओपन हेरिटेज’ जैसे पदनामों के साथ शहरी स्थान बनाने पर केंद्रित है. फिर भी इसमें जलवायु संबंधी चुनौतियों से निपटने पर जोर नहीं दिया गया है.
क्षेत्रों व उपक्षेत्रों को परिभाषित करना जरूरी
शिमला विकास योजना को क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय नजरिये से बांटने की जरूरत है. खास भौगोलिक विशेषताओं वाले शिमला के लिए ज्यादा ही अहम हो जाता है. यह भी जरूरी है कि व्यापक भूवैज्ञानिक डेटा और गहन अध्ययन के आधार पर क्षेत्रों व उप-क्षेत्रों को परिभाषित किया जाए. इसके बाद इस जानकारी को फ्लोर एरिया रेशियो को तय करने में इस्तेमाल किया जाए. क्षेत्रीय रणनीति को उन क्षेत्रों में इस्तेमाल किया जातना चाहिए, जहां शहर आगे की बस्तियों को सपोर्ट नहीं कर सकता है. इसके उलट मजबूत चट्टानी नींव वाले क्षेत्रों को ऊर्ध्वाधर विस्तार से गुजरने की मंजूरी दी जानी चाहिए.
भूवैज्ञानिक डाटा के आधार पर लें फैसले
शिमला में किसी भी निर्माण को मंजूरी दिए जाने से पहले सबसे ज्यादा जरूरी है कि सभी फैसले ठोस भूवैज्ञानिक डाटा के आधार पर लिए जाएं. इस तरह से शहरी विकास और शहर की अद्वितीय भूवैज्ञानिक विशेषताओं के संरक्षण के बीच संतुलन बनाया जा सकता है. वहीं, अब व्यापक जल रूपरेखा शुरू करना प्राथमिकता होनी चाहिए, जिसे उपग्रह से ली गई तस्वीरों और समुदाय की सक्रिय भागीदारी के संयोजन के जरिये पूरा किया जा सकता है. इसे हासिल करने के लिए शिमला के स्थानीय लोगों को भी संघर्ष करना होगा.
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