हिमाचल प्रदेश

28 साल से बैड पर लेटकर काव्य संग्रह व गजलें लिख रहा ये शख्स, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली ख्याति

Shantanu Roy
4 Dec 2022 9:58 AM GMT
28 साल से बैड पर लेटकर काव्य संग्रह व गजलें लिख रहा ये शख्स, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली ख्याति
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हरोली। लखां तीर्थां तो बदके, फल मां के इक दीदार दा, दस किवें मैं उतारां माए, कर्जा तेरे प्यार दा। ये भावपूर्ण लाइनें उस शख्स की कलम से लिखी गई हैं, जो किसी जटिल बीमारी के कारण पिछले 28 वर्षों से बैड पर लेटकर हाथ में कागज व कलम थामे हुए है। उसकी सोच के आगे विकलांगता भी रोड़ा नहीं बन सकी और देश ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसे ख्याति मिल रही है। यह कहानी है विधानसभा क्षेत्र हरोली के गांव सलोह निवासी 45 वर्षीय सुभाष पारस की। सुभाष पारस का जन्म 6 फरवरी, 1977 को माता रामआसरी व पिता प्यारा लाल के घर हुआ। सुभाष ने गांव के ही स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। कक्षा 7वीं तक तो सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन 13 वर्ष की उम्र में कक्षा 8वीं में अचानक सुभाष के पांव की अंगुली में कुछ तकलीफ शुरू हुई, जो लगातार बढ़ती चली गई।जैसे-तैसे 8वीं कक्षा पास की और 9वीं कक्षा में दाखिला हुआ लेकिन पांव की समस्या बढ़ती चली गई।
समस्या टांग से लेकर शरीर के ऊपरी हिस्से तक पहुंचनी शुरू हो गई, जिस कारण उसे अपनी पढ़ाई को बीच में ही रोक कर स्कूल छोड़ना पड़ गया। सुभाष पिछले 28 वर्षों से बैड पर है। धीरे-धीरे उसकी समस्या इस कदर बढ़ती चली गई कि उससे न बैठा जाता और न ही चला जाता था। खाना-पीना भी बैड पर ही होता है। सुभाष पारस को उसकी लेखनी के चलते विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मान भी दिया जा रहा है। पंजाब के कपूरथला के सिरंजना केंद्र व पंजाब के ही नवी चेतना पंजाबी लेखक मंच द्वारा स्मृतिचिह्न देकर सम्मानित किया गया है, जबकि अन्य कई संस्थाएं उसे जल्द ही सम्मानित कर रही हैं। सुभाष पारस के इंगलैंड, कनाडा, अमेरिका व पाकिस्तान में उसके लेख छपे हैं जिनमे गजलें, गीत आदि पंजाबी में छपे हैं। यूके में उसके छपे लेख दस केहड़ी कलम नाल लिखदा ए रब्बा, तूं बंदेयां दी तकदीरां व गीत कुदरत तो पंज तत लै के, बुत बच्चे दा घड़दी मां सहित अन्य को लोगों ने खासा सराहा। इसी के साथ सुभाष विदेश में होने वाले सप्ताह में 2 बार कवि दरबार में भी ऑनलाइन शिरकत करते हैं। पिछले 28 वर्षों से लगातार बैड पर लेटे हुए सुभाष की सेवा उसके बुजुर्ग माता-पिता कर रहे हैं। कभी आस-पड़ोस के रिश्तेदार भी मदद को हाथ आगे बढ़ा देते हैं। सुभाष का कहना है कि उन्हें बेटा होने के नाते अपने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा करनी चाहिए थी लेकिन उसके हालातों ने ठीक उससे उलटा ही कर दिया है।
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