हिमाचल प्रदेश

आंदोलन को लेकर बागबानों का सरकार को अल्टीमेटम, दस दिन में 20 मांगें नहीं मानी, तो आर-पार की लड़ाई

Renuka Sahu
7 Aug 2022 3:30 AM GMT
The ultimatum of the gardeners to the government regarding the movement, if 20 demands are not accepted in ten days, then there will be a fight across
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फाइल फोटो 

सचिवालय घेराव के बाद अब बागबानों ने जेल भरो आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सचिवालय घेराव के बाद अब बागबानों ने जेल भरो आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए बागबानों ने रणनीति तैयार करना शुरू कर दिया है। गांव ब्लॉक व पंचायत स्तर पर बागबान रणनीति तैयार कर रहे हैं। 1990 के बाद प्रदेश में बागबानों की ओर से आंदोलन शुरू किया गया है और बागबान इस आंदोलन को निर्णायक बनाने के लिए कोशिश कर रहे हैं। सचिवालय घेराव के बाद बागबानों ने सरकार को दस दिनों का समय दिया गया है। ऐसे में अगर बागबानों की सभी 20 मांगों को नहीं माना जाता है, तो फिर बागबानों की ओर से आर-पार की लड़ाई लड़ी जाएगी। बीते शुक्रवार को हुए प्रदर्शन के दौरान बागबानों की मुख्य सचिव आरडी धीमान के साथ बैठक हुई। इसमें सरकार ने मांगे पूरा करने के लिए दस दिन का समय मांगा है। हालांकि मुख्य सचिव ने सैद्धांतिक तौर पर कुछ मांगे जरूर मान ली है, लेकिन ज्यादातर मांगों पर अभी सहमति नहीं बन पाई है। ऐसे में 16 अगस्त तक मांगे पूरी नहीं होने पर बागबान 17 अगस्त को जेल भरने की बात कह रहे हैं।

सेब उत्पादक संघ के अध्यक्ष सोहन ठाकुर ने बताया कि 1990 के बाद बागबान पहली बार सडक़ों पर आया है। इसके लिए उन्हें मजबूर किया गया है। अब बागबान अपनी मांगे पूरी नहीं होने तक पीछे नहीं हटेगा। इसके लिए चाहे उन्हें कितना भी लंबा आंदोलन न लडऩा पड़े। उन्होंने बताया कि संयुक्त किसान मंच के बैनर तले 27 संगठन जेल भरो आंदोलन की तैयारियों में जुट गए हैं। इसके लिए गांव, पंचायत व ब्लाक स्तर पर बैठकें कर रणनीति बनाई जाएगी। सेब उत्पादक संघ ठियोग के अध्यक्ष महेंद्र वर्मा ने बताया कि हिमाचल सरकार 5000 करोड़ रुपए के सेब उद्योग को लेकर कतई गंभीर नजर नहीं आ रही। यदि सरकार गंभीर होती, तो गत शुक्रवार के सचिवालय के घेराव के दौरान मुख्यमंत्री खुद बागबानों से मिलकर राहत देने की बात करते। उन्होंने कहा कि बागबान एक महीने से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन राज्य के बागबानी मंत्री भूमिगत है। उन्होंने एक बार भी बागबानों से बात करना उचित नहीं समझा है।
बागबानों को हल्के में न ले सरकार
यंग एंड यूनाइटेड ग्रोवर्स एसोसिएशंस के महासचिव प्रशांत सेहटा का कहना है कि सचिवालय घेराव के बाद बागबानों के साथ मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक हुई। वैसे तो इस बैठक में बागबानी मंत्री को शामिल होना चाहिए था, लेकिन वह नहीं आए। वहीं अधिकारी बागबानों के अंादोलन को हल्के में ले रहे हैं। उन्होंने चेताया है कि सरकार व अधिकारी इस आंदोलन का हल्के में न ले। अगर बागबानों की मांगो को दस दिनों में पूरा नहीं किया जाता हैं, तो फिर परिणाम गंभीर हो सकते हैं। उनका कहना है कि पिछले पांच सालों में सेब कार्टन व ट्रे के दाम दो गुने हो गए हैं, लेकिन बागबानों को मिलने वाले रेट में कोई ज्यादा अंतर नहीं है।
सेब तुड़ान छोड़ बागबान सडक़ों पर
संयुक्त किसान मंच के सह-संयोजक संजय चौहान ने बताया कि बागबानों को सडक़ों पर उतरने के लिए मजबूर किया गया है। अब बागबान निर्णायक लड़ाई लड़ेंगे। इसके लिए उन्हें चाहे दिल्ली की तर्ज पर आंदोलन क्यों न शुरू करना पड़े। उन्होंने कहा कि बागबान सेब तुड़ान छोडक़र सडक़ों पर है। सरकार फिर भी उन्हें हल्के में लेने की कोशिश कर रही है।
बागबानों की मांगें
– कश्मीर की तर्ज पर ए,बी और सी ग्रेड के लिए एमआईएस
– 44 देशों से आयात होने वाले सेब पर 100 फीसदी आयात शुल्क
– कार्टन व ट्रे पर जीएसटी पूरी तरह खत्म करने
– एपीएमसी एक्ट को लागू किया जाए
– एपीएमसी के शोघी बैरियर पर अवैध वसूली रोकने
-एमआईएस के तहत बागबानों की बकाया पेमेंट का भुगतान
– सेब बेचने वाले दिन ही बागबानों को पेमेंट दिलाने
– बेमौसम बर्फबारी और ओलावृष्टि से नुकसान का मुआवजा
– सेब पर आयात शुल्क सभी देशों के लिए 100 फीसदी
-एपीएमसी की मंडियों की दुर्दशा सुधारने।
– मंडियों में लोडिंग-अनलोडिंग, स्टेशनरी व डाला के
नाम पर लूट खत्म करने
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