हिमाचल प्रदेश

पुरातत्त्व विभाग के म्यूजियम में ब्रेल लिपि की सुविधा, अब मूकवधिर जानेंगे कांगड़ा किले का इतिहास

Gulabi Jagat
20 July 2023 5:40 PM GMT
पुरातत्त्व विभाग के म्यूजियम में ब्रेल लिपि की सुविधा, अब मूकवधिर जानेंगे कांगड़ा किले का इतिहास
x
टीएमसी: ऐतिहासिक कांगड़ा किले का इतिहास अब मूकवधिर लोग भी जान पाएंगे। विश्वविख्यात कांगड़ा किले ने हमेशा ही हर किसी को अपनी ओर आकर्षित किया है, चाहे वह इसकी सुंदरता की बात हो या इसमें गढ़े खजाने की। प्रत्येक व्यक्ति कांगड़ा किले के इतिहास को जानने के लिए उत्सुक रहता है, परंतु जो लोग आंखों से देख नहीं सकते और कानों से सुन नहीं सकते, ऐसे लोगों की कांगड़ा किले की जानकारी जानने की अभिलाषा अभी तक अधूरी ही रही है। अब ऐसा नहीं है, अब वे लोग भी कांगड़ा किले के प्राचीन इतिहास को जानने की इच्छा को पूर्ण कर सकेंगे। कांगडा किले के पुरातत्त्व विभाग के म्यूजियम में अब ब्रेल लिपि की सुविधा उपलब्ध हो गई है ब्रेल लिपि की सहायता से मूक वधिर लोग जो आंखो व कानों की सुविधा से महरूम हैं वह भी ब्रेल लिपि की सहायता से कांगड़ा किले की जानकारी हासिल कर सकेंगे। ब्रेल लिपि की सहायता से प्राचीन इतिहास को जानने की आंतरिक इच्छा को मूक बधिर लोग भी पूरी कर पाएंगे। म्यूजियम में राजाओं के द्वारा चलाए गए सीकों के इतिहास को भी ब्रेल लिपि की सहायता से जान पाएंगे। वहीं अफगानिस्तान से महमूद गजनवी भी अपने आप को नहीं रोक सका ओर कांगड़ा पहुंचा, इसके बाद क्रमवार अकबर, जहांगीर, सिख व अंग्रेज़ भी इसके आकर्षण के चलते यहां आने को मजबूर हो गए तथा कांगड़ा किले को अपने नियंत्रण में लेने के लिए कई बार आक्रमण भी किए।
प्राचीन त्रिगर्त किले का निर्माण कांगड़ा के कटोच वंश के राजपूत परिवार ने करवाया था, जिसका उल्लेख महाभारत, पुराण में वर्णित है ये हिमाचल में मौजूद किलो में सबसे विशाल और भारत में पाए जाने किलो में सबसे पुराना किला है। 1615 में मुग़ल सम्राट अकबर ने इस किले पर घेराबंदी की कोशिश की थी। 1620 में अकबर के पुत्र जहांगीर ने इस किले पर कब्ज़ा किया था और किले में जहांगीरी दरवाजा बनवाया था। महाराजा संसार चंद ने गोरखाओं के साथ कई युद्ध किए थे, जिनमें एक ओर गोरखा और दूसरी ओर सिख राजा महाराजा रंजीत सिंह थे। 1806 में गोरखा सेना ने इस खुले द्वार से किले में प्रवेश किया था। इसके पश्चात 1828 तक ये किला कटोच वंश के अधीन ही रहा, क्योंकि संसार चंद की मृत्यु के पश्चात रंजीत सिंह ने इस किले पर कब्ज़ा कर लिया था। 1846 में सिखों के साथ हुए युद्ध में इस किले पर ब्रिटिशों ने अपना शासन जमा लिया था। रोचक जानकारी से अब मूक वधिर भी रू-ब-रू हो पाएंगे। (एचडीएम)
Next Story