हिमाचल प्रदेश

'हिली बास्केट' नाम के ब्रांड से हुई विख्यात, सूरजकुंड मेले में पहाड़ी गुच्छी के स्वाद की धमक

Gulabi Jagat
9 Feb 2023 9:13 AM GMT
हिली बास्केट नाम के ब्रांड से हुई विख्यात, सूरजकुंड मेले में पहाड़ी गुच्छी के स्वाद की धमक
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कुल्लू। हरियाणा के फरीदाबाद में अरावली की वादियों में चल रहे 36वें अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड मेले के फूड स्टॉल्स पर इस बार बड़ी संख्या में लोग पहुंच कर हिमाचल के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में पैदा होने वाली पहाड़ी गुच्छी का आनंद ले रहे है। परंपरा, विरासत और सांस्कृति की त्रिवेणी के रूप में विश्व भर में प्रसिद्ध इस मेले इस बार भारतीय राज्यों के अतिरिक्त शंघाई सहयोग संगठन के 40 देश हिस्सा ले रहे हैं।
कुल्लू के उद्यमी आयुष सूद द्वारा कुल्लू मनाली, धर्मशाला, चंबा, मंडी और कांगड़ा के ऊंचे पर्वतीय स्थलों पर तेज बिजली की चमक से प्रकृतिक रूप में पैदा हो रही पहाड़ी गुच्छी को एकत्र कर संगठित रूप से हिली बास्केट नाम के वशिष्ट ब्रांड के रूप में बेचने की पहल की गई है, ताकि राष्ट्रीय मार्केट में पहाड़ी गुच्छी के विशिष्ट स्वाद, सुगंध के साथ ही सेहत के लिए फायदेमंद पक्ष को भी अनायास उजागर किया जा सके। गुच्छी के प्लांट आधारित फ़ूड, विटामिन डी और फैट कम होने की वजह से दिल की सेहत के लिए उपयोगी मानी जाती है। इसका सेवन कोलेस्ट्रोल को कम कर शरीर में ऊर्जा के संचार को बढ़ाता है। आयुष सूद का कहना है की जंगली गुच्छी हिमालय क्षत्रों के ऊंचे पर्वतीय स्थलों पर सामान्यता समुद्र तल से 2500 मीटर से 3500 मीटर ऊंचाई पर प्रकृतिक रूप से उगती है। नम वातावरण में तेज आसमानी बिजली के चमकने से गुच्छी यकायक जमीन से बाहर आती है और आसमानी बिजली गुच्छी की उपज और स्वाद में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
सामान्यता यह सब्ज़ी बसंत ऋतु में प्रकृतिक रूप में जंगलों में उगती है तथा जंगली गुच्छी को इक_ा करने के लिए स्थानीय लोग निकल जाते हैं। गुच्छी सामान्यता सूखे पेड़ों के नीचे पाई जाती है। इसकी व्यवसायिक खेती अभी तक शुरू नहीं हो सकी है तथा इसकी पैदावार मुख्यता प्रकृतिक या जंगली ही दर्ज की जाती है। यही वजह है कि यह दुनिया में सबसे महंगे व्यंजनों में शुमार है। गुच्छी को जंगलों से इक_ा करने के बाद इन्हें प्रकृतिक धूप में सुखाया जाता है, ताकि इनके वास्तविक स्वरूप को संरक्षित रखा जा सके। इसे जमीन में उगने के एक हफ्ते में ही इकट्ठा करना पड़ता है। अन्यथा यह खराब हो जाती है। इसे प्रकृतिक रूप से सुखा कर पैक किया जाता है तथा दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और बंगलूरु जैसे महानगरों में भेजा जाता है, जहां औसतन 50,000 रुपए प्रति किल्लो की दर से बेचा जाता है। इस समय राज्य में लगभग 20 क्विंटल गुच्छी की पैदावार रिकार्ड की गई है, जिसमे से कुल्लू जिला में औसतन चार क्विंटल पहाड़ी गुच्छी की पैदावार हुई है। आयुष सूद का कहना है की पहाड़ी गुच्छी को एक अलग ब्रांड के रूप में पहली बार बाजार में उतारा गया है तथा स्वाद, सुगंध के साथ ही इसके मेडिसिनल गुणों की बजह से भी यह धनाढ्य वर्ग में पसंद की जाती है।
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