हिमाचल प्रदेश

उन्नत सेब किस्म का चयन करें बागबान

Shantanu Roy
23 Nov 2022 12:30 PM GMT
उन्नत सेब किस्म का चयन करें बागबान
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पतलीकूहल। हिमाचल में वर्ष 1887 के बाद कैप्टन ली और सैम्युल सत्यानंद स्टोक्स ने सेब की जो प्रजातियां लाईं, उनसे प्रदेश का हर बागबान परिचित है। रॉयल, रेड, रेड गोल्डन, रिचर्ड और गोल्डन नाम की इन प्रजातियों के ही बागीचे इस समय प्रदेश में हैं। इसके बाद बीते दो दशकों में रेड चीफ, वांस, सिल्वर स्पर, गोल्डन स्पर और टाइडमैन जैसी प्रजातियों ने दस्तक दी। वर्ष 2004-05 के बाद हिमाचल सरकार ने कुछ विश्व प्रचलित प्रजातियों को मंगवाया। कुछ प्रगतिशील बागबानों ने अपने स्तर पर भी उन्नत किस्मों को विदेशों से आयात किया है। नई प्रचलित प्रजातियों की चिलिंग जरूरत कम है, ऐसे में यदि मौसम अनुकूल नहीं रहता तब भी बढिय़ा फसल की उम्मीद की जा सकती है। नए बागीचे तैयार करने के लिए पौधे लगाने का कार्य सर्दियों में होता है। बागीचे के ले-आउट और पौधारोपण का यह क्रम मार्च महीने के शुरुआत तक चलता है। जरूरी है कि नए बागान को लगाने के लिए बागबान स्वस्थ पौधों और सही प्रजातियों का चयन करें। किस ऊंचाई पर कौन सी कि स्म ठीक चलेगी और कौन सी नहीं इसका आकलन आवश्यक है। नई सेब प्रजातियों में अब डिलिशियस वर्ग में ही रेड से लेकर रेड विलोक्स तक करीब चार दर्जन से अधिक प्रजातियां हिमाचल में मौजूद हैं। सेब की नई प्रजातियों के अंबार से एक नया ट्रेंड बागबानों खासकर युवा पीढ़ी में तेजी से उपज रहा है, वह है प्रजातियों का संग्रहण करना। आधुनिक बागबानी के लिए और इसमें दिलचस्पी कायम रखने के लिए तो बढिय़ा है, लेकिन पैदावार के लिहाज से इसमें दम कम दिखता है। जबकि सच्चाई यही है कि प्रजातियों के संग्रहण से नहीं हम उत्पादन से बेहतर कल की नींव रख सकते हैं। बागबानी विशेषज्ञों का कहना है कि 20-30 प्रजातियों के संग्रहण से अच्छा यह होगा कि दो-तीन उन्नत किस्मों की पैदावार सैकड़ों या हजारों बॉक्सों में हो। यदि सभी बागबान बागीचों को रिसर्च स्टेशन में तबदील कर देंगे तो पैदावार कैसे होगी।
रॉयल डिलिशियस प्रजाति ने हिमाचल को संवारा है, लेकिन सिर्फ मॉस प्रोडक्शन से इसलिए जरूरी है कि नई प्रजातियों को क्षेत्र परिस्थितियों और ऊंचाई के हिसाब से परखने के बाद मॉस प्रोडक्शन की दिशा में बढ़ा जाए। मॉस प्रोडक्शन न होने का खामियाजा हमारी स्पर और अन्य उन्नत प्रजातियां झेल रही हैं। यह तो बागबान जानते हैं कि मंडियों में लॉट मायने रखता है। उन्नत प्रजातियों के एक-दो या महज कुछ बॉक्स न तो खरीददार को रिझा पाते हैं और न ही उनका वाजिब दाम मिला पाता है। यह भी माना जा रहा है कि स्पर प्रजाति की पैदावार अभी शुरुआती स्टेज में है, लेकिन यदि बागबान अधिक उत्पादन की दिशा में नहीं बढ़ते तो स्पर की मार्केटिंग का संकट आ सकता है। जरूरत इस बात की है कि बागबान स्पर और नई उन्नत प्रजातियों के संग्रहण के बजाय मॉस प्रोडक्शन पैदावार की दिशा में आगे बढ़ें। बागबानी विशेषज्ञों का कहना है कि बागबानों को दर्जनों सेब की प्रजातियों के संग्रहण की बजाय उपयुक्त एक-दो प्रजातियों की पैदावार की दिशा में बढ़ाना होगा। प्रदेश में जितनी भी स्पर और अन्य उन्नत किस्में हैं, वे ज्यादातर सरकारी संस्थाओं जैसे विश्वविद्यालय और बागबानी विभाग ने आयात की हैं। ये वैरायटियां सरकारी फार्मों और रिसर्च स्टेशनों में काफी पहले से लगी हैं, इसलिए बागबान यदि इन प्रजातियों के पौधों लगाने से पहले उनका प्रदर्शन सरकारी फार्मों में देख सकते हैं।
सेब के बागीचे में किसी वैरायटी के पौधे की किसी शाख पर कु छ अलग से नजर आने वाला फल एक नई वैरायटी हो सकती है। बशर्ते उस पौधे में लगे अन्य फलों से गुणवत्ता, रंग, आकार व शैप आदि से भिन्न हो। यह भिन्नता सिर्फ उसी पौध की वैरायटी से नहीं बल्कि अब तक भारत या विश्व में उगाई जाने वाली सेब की सभी पंजीकृत और ज्ञात किस्मों से होनी चाहिए। यदि हिमाचल का कोई बागबान सेब की किसी वैरायटी में नेचुरल म्युटेशन (प्राकृतिक उत्परिवर्तन) से कोई वैरायटी खोजता है तो इस पौधा किस्म को और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम 2001 के तहत पंजीकृत और संरक्षित किया जा सकता है। इससे वैरायटी का नाम तो बागबान के नाम पर पड़ेगा ही, वह इस किस्म की मार्केटिंग के लिहाज से रॉयल्टी का हकदार होगा। पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण ने सेब, चैरी और नाशपाती में इस तरह की नई प्रजातियों की खोज का जिम्मा सेंटरल इंस्टीच्यूट ऑफ टेम्परेट हार्टिकल्चर जम्मू-कश्मीर और बागबानी अनुसंधान केंद्र मशोबरा को सौंपा हैं। प्राधिकरण के इस प्रोजेक्ट के तहत मशोबरा में भी अब तक उगाई जाने वाली सेब, चैरी और नाशपाती की लगभग सभी किस्मों का जीन बैंक स्थापित कर लिया गया है, ताकि यदि कोई बागबान किसी नई वैरायटी को खोजने का दावा करता है तो इसकी पुष्टि जीन इनेलेसीस करके की जा सकती है।

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