हिमाचल प्रदेश

यूक्रेन से लौट आए, पर कैसे मिलेगी एमबीबीएस की डिग्री, सैकड़ों विद्यार्थियों के सामने खड़ी समस्या

Renuka Sahu
27 Feb 2022 4:22 AM GMT
यूक्रेन से लौट आए, पर कैसे मिलेगी एमबीबीएस की डिग्री, सैकड़ों विद्यार्थियों के सामने खड़ी समस्या
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फाइल फोटो 

रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के बाद आफत में फंसे देश भर के व हिमाचली छात्र-छात्राओं को यूक्रेन से निकालने का सिलसिला जारी है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के बाद आफत में फंसे देश भर के व हिमाचली छात्र-छात्राओं को यूक्रेन से निकालने का सिलसिला जारी है। रोमानिया और पोलेंड के जरिए हिमाचली छात्रों को यूक्रेन से बाहर लाया जा रहा है। शुक्रवार को रोमानिया पहुंचाए गए हिमाचली छात्र अपने वतन पहुंच चुके हैं। यूके्रन से लौटे इन छात्र छात्राओं की जान तो बच गई है, लेकिन अब इन सैकड़ों विद्यार्थियों के सामने एक और बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। युद्ध ग्रसित देश से जिंदा लौटे युवा अपने आप को भाग्यशाली मान रहे हैं, लेकिन अब इनकी एमबीबीएस की डिग्री का क्या होगा, यह चिंता इन्हें सताए जा रही है। युद्ध के कारण छात्रों की न सिर्फ कई महीनों से लेकर वर्षों की मेहनत बर्बाद होने के कगार पर है, बल्कि माता-पिता द्वारा खर्चे गए लाखों रुपए भी डूबने का डर इन विद्यार्थियों को सता रहा है।

दोनों देशों के बीच युद्ध कितना लंबा चलेगा और उसके बाद क्या हालात होंगे, फिर से यूक्रेन की मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ाई शुरू होगी या नहीं, इन सवालों ने यूक्रेन से लौटे छात्र-छात्राओं के चेहरे लटका दिए हैं। यूके्रन से डाक्टरी की पढ़ाई करने के लिए हर वर्ष हिमाचल प्रदेश से ही 200 से अधिक युवा जाते हैं। बीते पांच वर्षो की अगर बात करें, तो यूक्रेन से इस समय 1500 से अधिक हिमाचली युवा विभिन्न मेडिकल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर रहे हैं। यूक्रेन से एमबीबीएस की डिग्री छह वर्ष में मिलती है। इन छह वर्षों में 20 लाख लाख रुपए से अधिक की फीस लगती है और आठ से दस लाख रुपए का अन्य खर्च आता है। यानि यूक्रेन की यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस की डिग्री तीस लाख रुपए में पढ़ती है। छह वर्षों में दो बार ही घर आने का मौका मिलता है, जबकि भारत वर्ष में अगर निजी यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस की पढ़ाई करनी हो, तो एक से डेढ़ करोड़ रुपए तक का खर्च आता है। यही वजह है कि यहां सरकारी क्षेत्र में नंबर न पडऩे पर माता-पिता पिछले कई वर्षों से अपने बच्चों को यूक्रेन भेजते आ रहे हैं। यूक्रेन में इस समय 12 मेडिकल यूनिवर्सिटी हैं, जहां देश से 15 हजार से 20 हजार बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, जबकि हिमाचली छात्र-छात्राओं की संख्या सैकड़ों में हैं। वहीं वुकोविनियन मेडिकल यूनिवर्सिटी के साउथ ईस्ट एशिया के प्रतिनिधि डा. सुनील का कहना है कि हालात सामान्य होने के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा। वहीं किसी को तीन साल तो किसी का यह यूक्रेन में चौथा और किसी का अंतिम वर्ष था, लेकिन सबके सपने बीच में फंस गए। पांचवें व छटे वर्ष में प्रवेश कर चुके विद्यार्थी तो फीस के रूप में 15 से 20 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं, लेकिन जब युद्ध समाप्त होगा, तो ही इनके भविष्य पर से भी संकट हटेगा। (एचडीएम)
जून में मिलनी थी डिग्री
यूक्रेन से लौटी करीना सकुशल अपने घर पहुंच तो गई है, लेकिन उसका मन दुखी है। उसे एमबीबीएस की डिग्री मिलने में चार ही महीने बचे थे। जून में उसने डाक्टर बन जाना था, लेकिन युद्ध ने उसकी तरह ने जाने कितनों के सपनों पर पानी फेर दिया। करीना कहती है कि अब उसकी मेहनत और माता पिता द्वारा खर्चे गए लाखों रुपए का क्या होगा। वहीं इसी तरह से कितने ही ऐसे युवा हैं, जो कि दुखी हैं। वहीं टीहरा की सानिया इसी सत्र में दाखिला लेकर सपने बुनते हुए यूक्रेन गई थी, लेकिन अब उसे भी भविष्य की चिंता सता रही है।
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