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हिमाचल प्रदेश
शोध: मधुमेह रोगियों के लिए इंसुलिन टीके का विकल्प बनेगी सस्ती गोली, इलाज में कारगर नया अणु खोजा
Deepa Sahu
2 May 2022 2:16 PM GMT
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देशभर में टाइप-1 और टाइप-2 मधुमेह से जूझ रहे रोगियों को महंगे इंसुलिन टीके पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
देशभर में टाइप-1 और टाइप-2 मधुमेह से जूझ रहे रोगियों को महंगे इंसुलिन टीके पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। सस्ती गोली भी बाजार में आने वाली है। हिमाचल प्रदेश के आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंस के वैज्ञानिकों के शोध से यह संभव होगा। प्रमुख शोधकर्ता डॉ. प्रोसेनजीत मंडल के अनुसार उनकी टीम ने डायबिटीज के इलाज में कारगर एक नया पीके टू नामक अणु (मॉलिक्यूल) खोजा है। यह पैंक्रियाज से इंसुलिन का स्राव शुरू करने में सक्षम है। इससे डायबिटीज के इलाज के लिए सस्ती दवा बनाई जा सकेगी। शोध के निष्कर्ष जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल केमिस्ट्री में प्रकाशित किए गए हैं।
शोधपत्र को पूरा करने में आईसीएमआर-आईएएसआरआई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने अहम भूमिका निभाई है। शोध के सह लेखक आईआईटी मंडी के प्रो. सुब्रत घोष और डॉ. सुनील कुमार हैं। नई दिल्ली पूसा स्थित आईसीएआर-आईएएसआरआई के वैज्ञानिकों डॉ. बुधेश्वर देहुरी, डॉ. ख्याति गिरधर, डॉ. शिल्पा ठाकुर, डॉ. अभिनव चौबे, डॉ. पंकज गौर, सुरभि डोगरा, बिदिशा बिस्वास और क्षेत्रीय आयुर्वेदिक अनुसंधान संस्थान (आरएआरआई) ग्वालियर के डॉ. दुर्गेश कुमार द्विवेदी के सहयोग से यह शोध किया गया है।
स्थिर, सस्ती और असरदार होगी गोली
आईआईटी मंडी के निदेशक लक्ष्मीधर बैहरा के अनुसार टाइप-1 और टाइप-2 मधुमेह के रोगियों को डायबिटीज के इलाज के लिए वर्तमान में एक्सैनाटाइड और लिराग्लूटाइड जैसी दवाओं की सुई दी जाती है। यह महंगी और अस्थिर होती है। हमारा लक्ष्य सरल दवाइयां ढूंढना है। गोली तैयार करने के लिए यह शोध मधुमेह के रोगियों के उपचार के लिए स्थिर, सस्ता और असरदार होगा।
दो साल तक चूहों पर किया शोध
प्रमुख शोधकर्ता ने बताया कि पीके टू अणु ढूंढने के बाद जैविक प्रभावों का असर चूहों में ढूंढा गया। दो साल तक इस पर गहन अध्ययन हुआ। दवा देने के बाद शोधकर्ताओं ने देखा कि पीके 2 गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में तेजी से अवशोषित हो गया। इसका अर्थ यह है कि इससे तैयार दवा की सुई के बदले खाने की गोली इस्तेमाल की जा सकती है। दवा देने के दो घंटे के बाद पाया गया पीके 2 चूहों के लिवर, किडनी और पैंक्रियाज में पहुंच गया। इसका कोई अंश हृदय, फेफड़े और स्प्लीन में नहीं था। बहुत कम मात्रा में यह मस्तिष्क में मौजूद पाया गया। इससे पता चलता है कि यह मॉलिक्यूल रक्त-मस्तिष्क बाधा पार करने में सक्षम हो सकता है। लगभग 10 घंटे में यह रक्तसंचार से बाहर निकल गया।
बढ़ रहा मधुमेह रोग
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में पिछले कुछ वर्षों में डायबिटीज के मरीजों की संख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। टाइप-2 डायबिटीज मेलिटस, डायबिटीज का सबसे सामान्य रूप है। ग्रामीण आबादी में टाइप-2 डायबिटीज 2.4 प्रतिशत और शहरी आबादी में 11.6 प्रतिशत लोगों में है।
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