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दिन स्कूल पहुंचा राहुल, कमर में रस्सी बांध उफनती खड्ड को पार कर सातवें
न्यूज़क्रेडिट: अमरउजाला
बटोला गांव का आठवीं कक्षा का छात्र राहुल छह दिन तक अपने सिरमौर स्थित शणाई स्कूल नहीं जा सका। सातवें दिन उसने अपनी कमर में रस्सी बांधी और जान जोखिम में डालकर उफनती खड्ड में उतर गया।
देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, लेकिन 75 साल बाद भी हिमाचल में कुछ ऐसे इलाके हैं, जहां जान जोखिम में डालकर खड्ड पार करनी पड़ती है। जिला शिमला के जुन्गा और ठियोग तहसील की सीमा पर बहने वाली नलटड़ी खड्ड बरसात में उफान पर रहती है। इसके चलते बटोला गांव का आठवीं कक्षा का छात्र राहुल छह दिन तक अपने सिरमौर स्थित शणाई स्कूल नहीं जा सका। सातवें दिन उसने अपनी कमर में रस्सी बांधी और जान जोखिम में डालकर उफनती खड्ड में उतर गया। लोगों ने जैसे-तैसे खड्ड पार कर राहुल को स्कूल तक पहुंचाया। अब राहुल सिरमौर में ही अपने रिश्तेदारों के घर रह रहा है।
वहीं, बटोला के रामसा भी खड्ड में बाढ़ आने से करीब 15 दिन तक सिरमौर में रुकने पर मजबूर हो गए थे। बरसात के मौसम में नलटड़ी खड्ड उफान पर रहती है। इस कारण नालटा-बोलटा गांवों का सतोग पंचायत से संपर्क कट जाता है। सिरमौर जिले का भी कुछ हिस्सा इन गांवों से लगता है। बरसात में यहां आना-जाना बंद हो जाता है। खड्ड का जलस्तर बढ़ने पर विशेषकर मशोबरा ब्लॉक की पीरन पंचायत के नालटा, बटोला, बागड़िया और नट गांवों के लोगों को सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। वर्ष 2006 में नलटड़ी खड्ड पर पैदल पुल बनाया गया था, लेकिन बरसात के कारण यह क्षतिग्रस्त हो गया था।
लोगों का कहना है कि कसुम्पटी के विधायक और स्थानीय पंचायत से कई बार आग्रह किया है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। किसान सभा के अध्यक्ष डॉ. कुलदीप तंवर ने कहा कि आजादी के सात दशक बीतने पर भी कसुम्पटी विधानसभा क्षेत्र की हालत दयनीय है। पीरन पंचायत की प्रधान किरण शर्मा ने बताया कि उन्होंने उपायुक्त शिमला और स्थानीय विधायक अनिरुद्ध सिंह से बीते वर्ष यह समस्या उठाई थी, लेकिन अभी तक फुटब्रिज बनाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए हैं।
पुल बनने से सतोग आना जाना होगा आसान
नलटड़ी खड्ड पर पुल बनता है तो मशोबरा ब्लॉक की दूरदराज पीरन और सतलाई पंचायतों को ठियोग की सतोग पंचायत में आना-जाना आसान हो जाएगा। नालटा-बटोला गांव के लोगों की चरागाह और घराट भी खड्ड के पार कांवती में हैं। पुल न होने से लोगों को वाया जघेड होते हुए 15 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। सिरमौर के जघेड़ तक जाने के लिए कोई भी सरकारी परिवहन व्यवस्था नहीं है।