हिमाचल प्रदेश

परियोजना मंजूर: केंद्रीय विश्वविद्यालय करेगा औषधीय पौधे से स्तन कैंसर के उपचार पर शोध

Renuka Sahu
13 Jan 2022 6:36 AM GMT
परियोजना मंजूर: केंद्रीय विश्वविद्यालय करेगा औषधीय पौधे से स्तन कैंसर के उपचार पर शोध
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फाइल फोटो 

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय औषधीय पौधों के माध्यम से स्तन कैंसर उपचार पर शोध कार्य करने जा रहा है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय औषधीय पौधों के माध्यम से स्तन कैंसर उपचार पर शोध कार्य करने जा रहा है। इससे कैंसर के इलाज के खर्च को कम करने में भी मदद मिलेगी। राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड ने तीन साल के लिए 40 लाख 10 हजार 229 रुपये की 'इन विवो एंड इन विट्रो स्टडी ऑन सिनर्जिस्टिक इफेक्ट ऑफ मेडिसिनल प्लांट्स इन ब्रेस्ट कैंसर ऑफ माइस' नामक परियोजना स्वीकृत की है। यह परियोजना स्कूल ऑफ लाइफ साइंस के लिए मंजूर की गई है। परियोजना टीम में प्रमुख अन्वेषक डॉ. रंजीत कुमार और सह-प्रधान अन्वेषक जंतु विज्ञान विभाग से डॉ सुनील कुमार और डॉ राकेश कुमार शामिल हैं। वहीं, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सत प्रकाश बंसल ने परियोजना टीम को बधाई दी है।

जंतु विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. सुनील कुमार के अनुसार वर्तमान में कई रासायनिक रूप से व्युत्पन्न दवाएं विकसित की गई हैं और अन्य कैंसर उपचार पहले से मौजूद हैं। हालांकि, मानव स्वास्थ्य समस्याओं को आगे बढ़ाने वाले गैर-लक्षित ऊतकों पर उनके विषाक्त प्रभावों के कारण कीमोथैरेपी जैसी वर्तमान विधियों की अपनी सीमाएं हैं। इसलिए प्राकृतिक रूप से व्युत्पन्न एंटी कैंसर एजेंटों के साथ वैकल्पिक उपचार की मांग है, जिसमें पौधे एक वांछित स्रोत हैं। यह परियोजना औषधीय पौधे के प्रभावी संयोजन को खोजने पर आधारित है। इसमें मेटास्टेटिक स्तन कैंसर के लिए उच्च चिकित्सीय क्षमता हो।
डीन स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज प्रो. प्रदीप कुमार के पास औषधीय पौधों में कई वर्षों की विशेषज्ञता है और उनके मार्गदर्शन में स्तन कैंसर के इलाज के लिए औषधीय पौधे के प्रभावी कंसंट्रेशन को खोजने में यह परियोजना निश्चित रूप से सहायक होगी। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सत प्रकाश बंसल ने कहा कि यह अपने आप में इस तरह का पहला प्रयास है। नया शोध कार्य है। इसके लिए परियोजना टीम में प्रमुख अन्वेषक डॉ. रंजीत कुमार और सहप्रधान अन्वेषक जंतु विज्ञान विभाग से डॉ. सुनील कुमार और डॉ. राकेश कुमार बधाई के पात्र हैं। आने वाले समय में विवि में निश्चित रूप से इस तरह के शोध कार्यों को बढ़ावा मिलेगा।
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