हिमाचल प्रदेश

अब बेकार नहीं होगा भांग का डंठल, बनेगा बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक

Shreya
7 Aug 2023 1:22 PM GMT
अब बेकार नहीं होगा भांग का डंठल, बनेगा बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक
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कटौला (मंडी): हिमाचल में अब भांग का डंडा यानी डंठल अब बेकार नहीं होगा। इससे बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक बनेगा। पर्यावरण को संबल मिलेगा। रोजगार के अवसर सृजित होंगे। विदेशों पर बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक की निर्भरता समाप्त होगी। भांग के पत्ते और बीज दवा बनाने के काम आते थे। पौधों के डंडों को फेंका या जलाया जाता था। अब भांग का पूरा पौधा काम आ सकेगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के स्टार्टअप ने डंठल से बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक बनाने की तकनीक विकसित की है। हरियाणा के फरीदाबाद की उखी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को स्टार्टअप के तहत आईआईटी मंडी ने इसी वर्ष 25 लाख रुपए की वित्तीय सहायता दी थी। कई राज्य सरकारें अब भांग की खेती को वैध करने पर काम कर रही है।

ऐसे में इस तकनीक से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। कपास के मुकाबले भांग के पौधे से चार गुना अधिक रेशा निकलता है। इससे कपड़ा बनाने के लिए धीरे-धीरे कपास पर निर्भरता समाप्त होगी। कपास की फसल तैयार होने में छह से आठ माह का समय लगता है। भांग का पौधा चार माह में तैयार हो जाता है। विशाल विवेक, सीइओ एवं संस्थापक उखी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने बताया कि भांग के डंठल में लिपिड और सेलूलोज होता है। मशीन से डंठल के सूक्ष्म कण बनाए जाते हैं। इसमें पालीलेक्टिक एसिड (पीएलए) मिलाकर दाना और उससे बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक तैयार होता है। दाने में मिलाए जाने वाला पीएलए भी कृषि उत्पादों से तैयार किया गया है। भांग से बना बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक 180 दिन के अंदर नष्ट होगा।

कीटनाशक-पानी की नहीं पड़ेगी जरूरत

कपास की तरह भांग के उत्पादन में बीज, खाद, कीटनाशक और पानी की जरूरत नहीं पड़ेगी। भांग देश भर में प्राकृतिक रूप से उगती है। कपास के उत्पादन में बड़े पैमाने पर कीटनाशक का प्रयोग होता है। इससे कई किसानों की मौत होती है। एक किलोग्राम कपास के उत्पादन में 4000 से 5000 लीटर पानी की आवश्यकता रहती है। भूमिगत जलस्तर में पहले ही भारी गिरावट आ चुकी है। भांग की खेती वर्षा के पानी से भी संभव है।

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