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सुप्रीम कोर्ट ने विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा है कि वह शिमला विकास योजना से संबंधित मामले पर 11 अगस्त को सुनवाई करेगा। हिमाचल प्रदेश सरकार ने वहां निर्माण गतिविधियों को विनियमित करने के लिए पिछले महीने शिमला विकास योजना के मसौदे को अधिसूचित किया था।
पीठ ने क्या कुछ कहा?
इस मुद्दे से संबंधित एक याचिका पर शुक्रवार को जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस जेबी पार्डीवाला की पीठ के समक्ष सुनवाई हुई। पीठ ने कहा,
वह इस बात को ध्यान में रखते हुए योजना की पड़ताल करेगी कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखने की जरूरत है।
शीर्ष अदालत राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) के नवंबर 2017 के आदेश से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। एनजीटी ने मुख्य, गैर-प्रमुख, हरित और ग्रामीण क्षेत्रों में अनियोजित और अंधाधुंध विकास पर ध्यान देते हुए कई निर्देश पारित किए थे। इसमें शिमला योजना क्षेत्र को लेकर गंभीर पर्यावरणीय और पारिस्थितिकी संबंधी चिंता जताई गई थी।
NGT ने पारित किया था स्थगन आदेश
इस योजना को पिछली राज्य सरकार ने फरवरी 2022 में मंजूरी दे दी थी, लेकिन यह अमल में नहीं आई, क्योंकि एनजीटी ने इसे अवैध बताते हुए स्थगन आदेश पारित कर दिया था और यह शिमला में अंधाधुंध निर्माण को विनियमित करने के लिए 2017 में पारित पहले के आदेशों के विपरीत था।
इस साल तीन मई को शीर्ष अदालत को सूचित किया गया था कि एनजीटी द्वारा जारी निर्देशों के कारण शिमला विकास योजना से संबंधित फाइनल डेवलपमेंट प्लान के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को प्रकाशित नहीं किया जा सका।
राज्य ने शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि विकास योजना के मसौदे पर 97 आपत्तियां प्राप्त हुई थीं। कोर्ट ने उस समय आदेश दिया था कि सरकार मसौदा विकास योजना पर प्राप्त आपत्तियों पर निर्णय ले और उन पर विचार करने के बाद अंतिम विकास योजना जारी करे।
