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हिमाचल प्रदेश
मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने बेटे को सौंपी विरासत तो बेटी ने छोड़ी BJP
Gulabi Jagat
19 Oct 2022 1:22 PM GMT

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शिमला, 19 अक्तूबर : राजनीति के बारे में अंग्रेजी की एक कहावत है कि "पॉलिटिक्स इज द डर्टी गेम, प्लेयड बॉय डर्टी पीप्लस, फॉर डर्टी मीन्स"। वर्तमान राजनीति ने बड़े-बड़े परिवारों के बीच इतना वैमनस्य पैदा कर दिया है कि रिश्ते जीते-जी तार-तार हो रहे हैं।
चाहे गांधी परिवार हो, सिंधिया हो या पासवान परिवार, राष्ट्रीय पटल पर इन तमाम उदाहरणों के अलावा पड़ोसी राज्यों हरियाणा में चौटाला परिवार, पंजाब में बादल परिवार व यूपी का यादव परिवार अपने राजनीतिक हितों के लिए बिखराव के रास्ते पर चला है।
राजनीतिक स्तर इतना गिर चुका है कि आपसी छींटाकशी के अलावा मामले कोर्ट कचहरी तक जा पहुंचे। हिमाचल में कई मामले पहले भी घटित हुए लेकिन ताजा मामला बेहद संवेदनशील है। हिमाचल में संयुक्त परिवार प्रणाली की अहमियत किसी से छिपी नहीं है। मगर यहां किस्सा एक ऐसी सगी बहन का है, जिसकी चित्कार से आप दंग हो जाएंगे।
मामला मंडी के धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र का है। यहां एक शक्तिशाली मंत्री, जो वर्षों से विभिन्न चुनाव चिन्हों पर जीतकर विधानसभा पहुंचे, उनकी राजनीतिक विरासत सौंपने को लेकर मामला इतना बिगड़ा कि बेटी को सोशल मीडिया पर आकर अपने हक़ की लड़ाई की दुहाई देनी पड़ी।
दरअसल, भाजपा के पूर्व मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने अपनी जगह अपने पुत्र रजत ठाकुर को धर्मपुर से भाजपा का टिकट दिलवाया, जो उनकी पुत्री को वंदना गुलेरिया को नागवार गुजरा। उन्होंने फेसबुक पेज पर आकर पार्टी से इस्तीफे का ऐलान कर दिया। साथ ही कैप्शन में लिखा कि "परिवारवाद में हर बार बेटियों की ही बलि क्यों ली जाती है"।
वंदना गुलेरिया ने अपनी इस पोस्ट में न केवल परिवारवाद का उल्लेख कर दिया, बल्कि हमारे सामाजिक परिवेश में पुत्र को अपनी विरासत का हक़दार बनाकर बेटियों के प्रति नजरिए का भी उल्लेख कर दिया। उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर इस्तीफे की कॉपी भी पोस्ट की। उन्होंने प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्षा को दो लाइन के इस्तीफे में अपने दर्जनों साथियों के साथ प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा के महामंत्री पद से इस्तीफे का भी ऐलान किया।
हिमाचल के इतिहास में शायद यह पहला राजनीतिक विरासत को लेकर द्वन्द का मामला सामने आया है। इस्तीफे के साथ दो दर्जन के करीब धर्मपुर भाजपा महिला मोर्चा मंडल की सदस्यों के हस्ताक्षर भी हैं। भले ही बाद में किसी तरीके से परिवार में एकता हो जाए, मगर राजनीतिक महत्वाकांक्षा से खूनी रिश्तों में आई दरार शायद ही कभी मिट पाए।

Gulabi Jagat
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