हिमाचल प्रदेश

गेयटी थियेटर में अंतरराष्ट्रीय साहित्य सम्मेलन का हुआ आगाज, एक मंच पर दिखी 12 जिलों की संस्कृति

Admin Delhi 1
17 Jun 2022 11:26 AM GMT
गेयटी थियेटर में अंतरराष्ट्रीय साहित्य सम्मेलन का हुआ आगाज, एक मंच पर दिखी 12 जिलों की संस्कृति
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शिमला: आजादी के 75वें अमृत महोत्सव के मौके पर संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं साहित्य अकादमी द्वारा शिमला में अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव 'उन्मेष' का भव्य आगाज किया गया। इस मौके पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बतौर मुख्यतिथि शिरकत की। इनके साथ ही शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर भी मौजूद रहे। सुबह से ही साहित्यकारों ने रंगारग प्रस्तुतियां पेश कर समा बांधा। इस दौरान केंद्रीय राज्यमंत्री मेघवाल ने कहा कि इस साहित्य उत्सव से अमृत निकलेगा। अपनी शायरी से सभी को अपना फैन बनाने वाले गुलजार ने अपनी प्रस्तुति देकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

ऐतिहासिक रिज पर हिमाचल के चंबा, शिमला, लाहुल-स्पीति और कांगड़ा सहित 12 जिला अपनी संस्कृति की झलक दिखाकर समा बांधा। इस मौके पर मुख्यथिति ने कहा कि उन्मेष क्या है इसको अगर देखे तो अर्थ है प्रकट करना, खिलना साहित्यकार खिलेंगे, यह कमल दिवसीय साहित्य उत्सव मे खिलेंगे। उनका कहना था कि 425 लेखक और 15 देशों के लेखक है। इस कार्यक्रम में भारत के लोगों को बुलाया है यहां 60 भाषाओं के लोग है मिनी भारत यहां प्रकट है। उनका कहना था कि हम 75 साल कैसे चले यह भी चिंतन होगा और आगे 25 साल का क्या रोड मैप होगा इस पर भी चिंतन होगा।

ये नामी हस्तियां भी हुई शामिल: साहित्य फेस्टिवल में सोनल एसएल मानसिंह,भैरप्पा, चंद्रशेखर कंबार, किरण बेदी, लिंडा हेस, डेनियल नेगर्स, सुरजीत पातर, नमिता गोखले, कपिल कपूर, आरिफ मोहम्मद खान, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, रघुवीर चौधरी, सितांशु यशचंद्र, विश्वास पाटिल, रंजीत होसकोटे, गीतांजलि, सई परांजपे, दीप्ति नवल, मालाश्री लाल, सुदर्शन वशिष्ठ, प्रत्यूष गुलेरी, एसआर हरनोट, होशांग मर्चेंट, लीलाधर जगूड़ी, अरुण कमल, बलदेव भाई शर्मा, सतीश अलेकर एवं विष्णु दत्त राकेश सहित कई जानी मानी साहित्यिक हस्तियां शामिल हुईं।

फिल्मों का अपना साहित्य होना जरूरी: अब समय आ गया है कि फिल्मों का अपना साहित्य हो। फिल्म निर्देशक गुलजार ने कहा कि आसमान वहीं रहता है, बादल आकर बरस जाते हैं। उन्होंने फिल्म देवदास का उदहारणदेते हुए कहा कि यह फिल्म कई निर्देशकों ने बनाई। अब किसका साहित्य है, ये कहना मुश्किल है। इसलिए निदेशक जो बनाता है, जो फिल्म चलाता है, उसे साहित्य बनाना बहुत जरूरी है।

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