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हिमाचल प्रदेश
प्रदेश के सरकारी स्कूलों में चौथी कक्षा तक के बच्चों को नहीं वर्णमाला का ज्ञान
Shantanu Roy
15 Aug 2022 11:00 AM GMT

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बड़ी खबर
शिमला। प्रदेश में सरकारी स्कूलों में चौथी कक्षा तक बच्चों को वर्णमाला का ज्ञान नहीं है। स्कूलों में छात्रों की हालत ऐसी है कि विद्यार्थी अपना नाम तक नहीं लिख पा रहे हैं। प्राकलन समिति की रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों के ज्ञान का खुलासा हुआ है। प्रदेश सरकार शिक्षा पर अपने कुल बजट का लगभग प्रतिवर्ष 17 प्रतिशत व्यय करती है। प्राकलन समिति का मत है कि इतना अधिक बजट खर्च करने का कोई औचित्य नहीं है यदि परिणाम संतोषजनक न हो। प्रतिवर्ष एक ओर सरकारी स्कूलों में संख्या कम हो रही है जबकि दूसरी ओर इन स्कूलों के वार्षिक परिणाम में प्रतिवर्ष पास दर में कमी आ रही है तीसरी व चौथी कक्षा के छात्रों को बुनयादी वर्णमाला का ज्ञान तक नहीं है और वे अपना नाम तक नहीं लिख सकते हैं, जो कि चिंता का विषय है।
प्राकलन समिति के ध्यान में ऐसे कई मामले हैं जहां स्कूलों में छात्र है लेकिन वहां अध्यापक की व्यवस्था नहीं है। इसी प्रकार जिन स्कूलों में छात्रों की संख्या बहुत कम है वहां पर अध्यापकों को आवश्यकता से अधिक संख्या में तैनात किया गया है। प्राकलन समिति ने हैरानी व्यक्त की है कि भरमौर विधानसभा क्षेत्र के तीन सीनियर सेकेंडरी स्कूल कौर, गाण और मांदा में एक भी अध्यापक नहीं है। जबकि शिमला शहरी विधानसभा क्षेत्र के गवाही मिडल स्कूल में पिछले चार वर्षों से छात्रों की संख्या तीन है और जबकि वहां पर चार अध्यापक हंै। इसी तरह ज्वालामुखी चुनाव क्षेत्र के पढोली स्कूल में 122 छात्रों पर मात्र एक ही अध्यापक है।
प्राकलन समिति का मानना है कि यह तो सिर्फ कुछ ही मामले है जो समिति के ध्यान में आए है जबकि पूरे प्रदेश में विशेषकर जन जातीय, कठिन एवं ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग स्थिति ऐसी ही है, लेकिन इस प्रकार की व्यवस्था से प्रदेश की शिक्षा प्रणाली में कभी भी सुधार नहीं हो सकता। प्राकलन समिति ने सिफारिश की है कि उपरोक्त स्कूलों में छात्रों की संख्या के अनुसार अध्यापकों/ प्रवक्ता की व्यवस्था की जाए। इसके अलावा प्राकलन समीति ने ये भी सिफारिश है कि जिन स्कूलों में छात्रों की संख्या शून्य से 20 से तक है उनको निकटवर्ती स्कूलों में मर्ज किया जाए औरभविष्य में स्कूलों को नियमों के आधार पर खोला/स्तरोन्नत जाएं।
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