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हिमाचल प्रदेश
हाईकोर्ट ने कर्मचारी चयन आयोग पर लगाई 10 लाख रुपए की कॉस्ट, जानिए क्यों
Shantanu Roy
8 Aug 2022 9:41 AM GMT
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बड़ी खबर
शिमला। उच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग पर 10 लाख रुपए की कॉस्ट लगाई है। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने यह आदेश कुलविंदर सिंह नाम की याचिका की सुनवाई के बाद पारित किए। प्रार्थी ने याचिका में आरोप लगाया है कि उसे भूमिहीन प्रमाण पत्र देने के बावजूद भी आयोग ने उसे एक अंक नहीं दिया है। आयुर्वेद विभाग में फार्मासिस्ट के पद के लिए चयन प्रक्रिया के दौरान यह कोताही आयोग ने बरती। हाईकोर्ट के समक्ष लंबे समय से चल रहे इस मामले के निपटारे के लिए बेवजह हो रही देरी के लिए हाईकोर्ट ने आयोग से वांछित सहयोग न मिलने के लिए आयोग को जिम्मेदार मानते हुए यह कॉस्ट लगाई है।
आयोग के अनुसार एक हैक्टेयर से कम भूमि बाबत सक्षम राजस्व प्राधिकारी द्वारा जारी नहीं किया गया था। आयोग ने अपने जवाब में तर्क दिया है कि प्रार्थी ने 23 सितम्बर, 2017 को अंकों के मूल्यांकन के लिए पेश किया और पटवारी द्वारा जारी भूमिहीन प्रमाण पत्र, तहसीलदार अम्ब जिला ऊना द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित प्रस्तुत किया, जबकि इसे तहसीलदार द्वारा जारी किया जाना चाहिए था। इस कारण मूल्यांकन टीम द्वारा प्रमाणपत्र पर विचार नहीं किया गया था। उपरोक्त के अलावा प्रमाण पत्र में यह उल्लेख नहीं था कि आवेदक केे परिवार के पास किसी अन्य स्थान पर कोई अन्य भूमि नहीं है। आगे तर्क दिया था कि हालांकि याचिकाकर्ता को 7 दिनों के भीतर आयोग के कार्यालय के साथ एक वैध भूमिहीन प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने का समय दिया गया था।
लेकिन प्रार्थी दिए गए समय के भीतर इसे जमा करने में विफल रहा। इसलिए, वह इस बाबत एक अंक प्राप्त करने का हकदार नहीं था। हालांकि प्रार्थी के अनुसार उसने प्रमाण पत्र समय पर आयोग के कार्यालय में जमा कर दिया था। अदालत ने मामले का रिकॉर्ड तलब किया और पाया कि प्रार्थी ने समय पर प्रमाण पत्र जमा कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि जिस तरीके से आयोग ने इस अदालत में अपना पक्ष रखा है वह वास्तव में अदालत को पीड़ा देता है। आयोग द्वारा कोर्ट के समक्ष झूठ बोलने व वांछित सहयोग न मिलने पर आयोग पर 10 लाख रुपए की कॉस्ट लगाई, जिसे आयोग को 22 अगस्त तक जमा करवाने के आदेश जारी किए हैं।
Shantanu Roy
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