हिमाचल प्रदेश

इस्तेमाल की भूमि का मुआवजा दे सरकार, दो महीने में करें भुगतान: हाई कोर्ट

Shreya
1 July 2023 10:50 AM GMT
इस्तेमाल की भूमि का मुआवजा दे सरकार, दो महीने में करें भुगतान: हाई कोर्ट
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शिमला:प्रदेश हाई कोर्ट ने 28 साल पहले रोहडू-परसा-शेखल सडक़ निर्माण के लिए इस्तेमाल की भूमि का मुआवजा देने के आदेश दिए है। कोर्ट ने कहा कि भूमि का इस्तेमाल करने के बाद सरकार द्वारा मुआवजा देने से मुकरने की कार्रवाई ने अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दिया है। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश सरकार को सडक़ के लिए इस्तेमाल की गई जमीन का मुआवजा याचिकाकर्ता भू-मालिक को भू -अर्जन अधिनियम 1894 के तहत आंकते हुए अदा करना होगा। प्रदेश हाई कोर्ट ने प्रार्थी बलवंत सिंह की याचिका को स्वीकारते हुए कहा कि सरकार देरी से मुआवजे की मांग करने को आधार बनाकर मुआवजा देने से इनकार नहीं कर सकती। कोर्ट ने सरकार पर दस हजार रुपए की कॉस्ट भी लगाई। खंडपीठ ने पाया कि सरकार ने रोहडू-परसा-शेखल सडक़ के लिए इस्तेमाल की गई भूमि का मुआवजा प्रार्थी को नहीं दिया है।

इसलिए याचिकाकर्ता को मुआवजा राशि की मांग को लेकर कोर्ट में आना पड़ा। कोर्ट ने कहा कि संपति का अधिकार मौलिक अधिकार तो नहीं है फिर भी यह अधिकार आर्टिकल 300 ए के तहत संवैधानिक अधिकार है। कोर्ट ने सरकार को आदेश दिए कि वह छह सप्ताह के भीतर प्रार्थी की सडक़ निर्माण में ली गई जमीन की पैमाईश करे और उसके बाद दो माह के भीतर मुआवजा राशि तय करे। मामले के अनुसार लोअर कोटि निवासी प्रार्थी की जमीन से होते हुए वर्ष 1995 में रोहडू परसा शेखल वाया ढारा का निर्माण किया था। प्रार्थी का आरोप था कि सडक़ का निर्माण भू-अधिग्रहण के बाद किया जाना चाहिए था परंतु सरकार ने ऐसा नहीं किया। सरकार का कहना था कि उक्त सडक़ को स्थानीय लोगों की डिमांड पर बनाया गया था और सडक़ निर्माण के दौरान लोगों ने स्वेच्छा से भूमि दी थी। कोर्ट ने सरकार की कार्रवाई को आदलत की अंतरात्मा को झकझोर देने वाली बताते हुए सरकार की सभी दलीलों को नकार दिया।शिमला: प्रदेश हाई कोर्ट ने 28 साल पहले रोहडू-परसा-शेखल सडक़ निर्माण के लिए इस्तेमाल की भूमि का मुआवजा देने के आदेश दिए है। कोर्ट ने कहा कि भूमि का इस्तेमाल करने के बाद सरकार द्वारा मुआवजा देने से मुकरने की कार्रवाई ने अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दिया है। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश सरकार को सडक़ के लिए इस्तेमाल की गई जमीन का मुआवजा याचिकाकर्ता भू-मालिक को भू -अर्जन अधिनियम 1894 के तहत आंकते हुए अदा करना होगा। प्रदेश हाई कोर्ट ने प्रार्थी बलवंत सिंह की याचिका को स्वीकारते हुए कहा कि सरकार देरी से मुआवजे की मांग करने को आधार बनाकर मुआवजा देने से इनकार नहीं कर सकती। कोर्ट ने सरकार पर दस हजार रुपए की कॉस्ट भी लगाई। खंडपीठ ने पाया कि सरकार ने रोहडू-परसा-शेखल सडक़ के लिए इस्तेमाल की गई भूमि का मुआवजा प्रार्थी को नहीं दिया है।

इसलिए याचिकाकर्ता को मुआवजा राशि की मांग को लेकर कोर्ट में आना पड़ा। कोर्ट ने कहा कि संपति का अधिकार मौलिक अधिकार तो नहीं है फिर भी यह अधिकार आर्टिकल 300 ए के तहत संवैधानिक अधिकार है। कोर्ट ने सरकार को आदेश दिए कि वह छह सप्ताह के भीतर प्रार्थी की सडक़ निर्माण में ली गई जमीन की पैमाईश करे और उसके बाद दो माह के भीतर मुआवजा राशि तय करे। मामले के अनुसार लोअर कोटि निवासी प्रार्थी की जमीन से होते हुए वर्ष 1995 में रोहडू परसा शेखल वाया ढारा का निर्माण किया था। प्रार्थी का आरोप था कि सडक़ का निर्माण भू-अधिग्रहण के बाद किया जाना चाहिए था परंतु सरकार ने ऐसा नहीं किया। सरकार का कहना था कि उक्त सडक़ को स्थानीय लोगों की डिमांड पर बनाया गया था और सडक़ निर्माण के दौरान लोगों ने स्वेच्छा से भूमि दी थी। कोर्ट ने सरकार की कार्रवाई को आदलत की अंतरात्मा को झकझोर देने वाली बताते हुए सरकार की सभी दलीलों को नकार दिया।

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