हिमाचल प्रदेश

सेब को ओलों से बचाने के लिए पहली स्वदेशी एंटी हेलगन स्थापित, दो महीने किया जाएगा ट्रायल

Renuka Sahu
11 April 2022 2:49 AM GMT
सेब को ओलों से बचाने के लिए पहली स्वदेशी एंटी हेलगन स्थापित, दो महीने किया जाएगा ट्रायल
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फाइल फोटो 

आईआईटी मुंबई और बागवानी विश्वविद्यालय नौणी के वैज्ञानिकों की ओर से तैयार स्वदेशी एंटी हेलगन का पहली बार सेब को ओलों से बचाने के लिए ट्रायल करने की तैयारी है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आईआईटी मुंबई और बागवानी विश्वविद्यालय नौणी के वैज्ञानिकों की ओर से तैयार स्वदेशी एंटी हेलगन का पहली बार सेब को ओलों से बचाने के लिए ट्रायल करने की तैयारी है। कंडाघाट में टेस्टिंग के बाद स्वदेशी एंटी हेल गन शिमला जिले में जुब्बल के मंढोल में स्थापित की गई है। टेस्टिंग के दौरान अगले दो महीनों तक वैज्ञानिक सेब की फसल को ओलों से बचाने में एंटी हेल गन कितनी कारगर है, इसका आंकलन करेंगे।

मार्च से मई के बीच ओलावृष्टि से पहाड़ी क्षेत्रों में फलों और सब्जियों को भारी नुकसान होता है। सेब, प्लम, नाशपाती और चेरी को ओलावृष्टि से करोड़ों का नुकसान होता है। ओलों से बचाव के लिए बागवान एंटी हेल नेट इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन इसकी कीमतें बहुत अधिक हैं। इन्हें लगाना और उतारना भी झंझट का काम है। प्रदेश फल उत्पादक संघ के अध्यक्ष हरीश चौहान ने कहा कि सेब फसल को ओलों से बचाने के लिए स्वदेशी एंटी हेल गन ट्रायल के लिए जुब्बल के मंढोल में स्थापित की गई है। मांग की कि बागवानी विभाग प्रदेश के सभी सेब उत्पादक क्षेत्रों में एंटी हेल गन स्थापित करे।
बजट मिले तो 12 और स्थानों पर लगेगी एंटी हेल गन : विशेषज्ञ
आईआईटी मुंबई के डिपार्टमेंट ऑफ एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के वैज्ञानिक प्रो. सुदर्शन कुमार और डॉ. वाईएस परमार यूनिवर्सिटी नौणी के पर्यावरण विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. एसके भारद्वाज ने बताया कि कंडाघाट में टेस्टिंग के बाद एंटी हेल गन को परीक्षण के लिए जुब्बल में स्थापित किया गया है। सेब की फसल को ओलों से बचाने में यह कितनी कारगर है इसका परीक्षण किया जाएगा। प्रदेश में 10 से 12 अन्य स्थानों पर भी एंटी हेल गन लगाने की योजना है। बागवानी विभाग को इसका प्रोजेक्ट भेजा है। अगर बजट मिलता है तो अन्य स्थानों पर भी इसे स्थापित किया जाएगा।
ऐसे काम करती है एंटी हेल गन
वैज्ञानिकों ने स्वदेशी एंटी हेल गन में मिसाइल और लड़ाकू विमान चलाने वाली तकनीक का प्रयोग किया है। हवाई जहाज के गैस टरबाइन इंजन और मिसाइल के रॉकेट इंजन की तर्ज पर इस तकनीक में प्लस डेटोनेशन इंजन का इस्तेमाल किया गया है। इसमें एलपीजी और हवा के मिश्रण को हल्के विस्फोट के साथ दागा जाता है। विस्फोट से शॉक वेव (आघात तरंग) तैयार होकर वायुमंडल में जाती है और बादलों के अंदर का तापमान बढ़ने से ओला बनने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है।
12 लाख में लगेगी, एक किलोमीटर में रहेगा असर
आईआईटी बांबे की एंटी हेल गन करीब एक किलोमीटर क्षेत्र में प्रभाव पैदा करने में सक्षम है। हेल गन को लगाने समेत इस तकनीक का शुरुआती खर्च करीब 12 से 15 लाख रुपये है, एक बार स्थापित हो जाने के बाद एलपीजी का ही खर्चा होता है। एलपीजी गैस का प्रयोग इस तकनीक को सस्ता रखने के लिए किया गया है।
वायुमंडल में ऐसे बनते हैं ओले
बादलों में जब ठंड बढ़ती है तो वायुमंडल में जमा पानी की बूंदे जमकर बर्फ का आकार ले लेती हैं। इसके बाद यह बर्फ छोटे छोटे गोलों के आकार में जमीन पर गिरती है। इन्हें ओला कहते हैं।
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