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पर्यावरणविद कुलभूषण उपमन्यु -गुमान सिंह ने राष्ट्रपति मुर्मु को लिखा पत्र
चंबा: हिमाचल के ब्यास में बाढ़ का कारण निर्माण कार्यों के दौरान सही तरीके से डंपिंग नहीं होना बताया जा रहा है। बारिश के पानी में कीचड़ और मलबे की मात्रा इसका प्रभाव बढ़ाने का प्रमुख कारक रही है। यह मलबा एनएचएआई के कीरतपुर-मनाली फोरलेन और अन्य पहाड़ी संपर्क मार्गों की निर्माण गतिविधियों के साथ नदी घाटियों में फैली पनबिजली परियोजनाओं से निकला है। पहाडिय़ों को काटने के साथ-साथ नदियों में काफी अधिक मात्रा में मलबा निस्तारण डंपिंग स्थलों के उचित प्रबंधन के बगैर किया जा रहा है। यह खुलासा पर्यावरणविद कुलभूषण उपमन्यु व गुमान सिंह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को लिखे पत्र में किया है। उन्होंने पत्र में यह भी जिक्र किया है कि सडक़ निर्माण की प्रक्रिया पूरी तरह से भारतीय हिमालय की प्रकृति के प्रतिकूल है। विशेष रूप से सडक़ विस्तारीकरण के दौरान कई हिस्सों में खड़ी पहाड़ी काटने की वर्तमान विधि ने भूस्खलन में वृद्धि की है। इस इलाके में एनएचएआई द्वारा वर्तमान में अपनाई गई सडक़ की चौड़ाई भी संदिग्ध है। यहां तक कि इंडियन रोड कांग्रेस के मौजूदा मानदंडों का भी यहां पालन नहीं किया जा रहा है।
इसके अलावा बांधों से असमय बड़ी मात्रा में बिना सूचना के पानी छोड़े जाना नुकसान की एक वजह रहा है। बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सरकार, व्यापारिक ताकतों और आम लोगों द्वारा नदी के किनारे के बड़े पैमाने पर वैध और अवैध अतिक्रमण किए गए हैं। इससे न केवल सार्वजनिक और निजी संपत्ति का नुकसान होता है, बल्कि लोगों का जीवन भी खतरे में पड़ता है। ब्यास नदी घाटी में रेत, पत्थर और ग्रिट के लिए हुआ खनन भी नदी के प्रवाह में बदलाव का कारण बन रहा है। उन्होंने कहा कि नदी घाटियों में इतनी बड़ी संख्या में बनाई गई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं ने बड़े पैमाने पर वनों की कटाई को जन्म दिया है, जो कि मिट्टी के कटाव और भूस्खलन के लिए जिम्मेदार बन गया है। उन्होंने कहा कि रावी, ब्यास और सतलुज नदी घाटियों का विभिन्न बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं के लिए उनकी वहन क्षमता से अधिक दोहन किया जा रहा है। यहां तक कि चिनाब और ऊपरी सतलुज बेसिन के बेहद नाजुक चंद्रभागा बेसिन में बड़े पैमाने पर कई जलविद्युत परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। उन्होंने मांग उठाई है कि इन कारणों का आकलन और सत्यापन करने तथा संबंधित एजेंसियों और प्राधिकारियों की जवाबदेही तय करने के लिए एक कार्यबल गठित किया जाए। इसमें तकनीकी विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों को भी शामिल किया जाए। उन्होंने उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच आयोग की नियुक्ति की मांग भी की है।