हिमाचल प्रदेश

हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर प्रदेश में बिछने लगी चुनावी बिसातें

Gulabi Jagat
2 Aug 2022 1:09 PM GMT
हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर प्रदेश में बिछने लगी चुनावी बिसातें
x
हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022
शिमला: हिमाचल विधानसभा चुनाव (Himachal Assembly Elections 2022) को लेकर प्रदेश में चुनावी गतिविधियां चरम पर हैं. बस सभी राजनीतिक दलों को निर्वाचन आयोग के द्वारा बिगुल बजने का इंतजार है. सूबे में एक ओर बीजेपी मिशन रिपीट को लेकर दिन-रात एक करने में जुट गई है. वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी मिशन डिलीट में पुरजोर तरीके से जुटी है. अब सवाल ये उठता है कि प्रदेश में क्या इस साल भाजपा रिवाज बदलने में कामयाब हो पाएगी या फिर कांग्रेस के हाथों में सत्ता का ताज होगा. चुनावी बेला में इस साल किस विधानसभा क्षेत्र में क्या चुनावी समीकरण हैं ये जानने के लिए ETV भारत ने हिमाचल सीट स्कैन (Himachal Seat Scan) सीरीज की शुरुआत की है. आइए जानते हैं आपके विधानसभा क्षेत्र में क्या चुनावी समीकरण हैं...
सिराज विधानसभा सीट मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गृह विधानसभा क्षेत्र है इस लिहाज से यह सबसे हॉट सीट में से एक है. सिराज विधानसभा सीट (पहले चच्योट) भाजपा का गढ़ रहा है, लेकिन इस साल चुनाव की दृष्टि से सिराज विधानसभा क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है. जयराम ठाकुर के सीएम बनने के बाद सिराज ही नहीं बल्कि मंडी जिला वीवीआईपी हो गया और यहां विकास के काम तेज गति से होने लगे. ऐसा नहीं है कि सिराज में सब भला ही भला है, कुछ इलाका ऐसा भी है, जिस पर सरकार की इनायत नहीं हो रही है. माना जाता है कि ये इलाके कांग्रेस समर्थक हैं.
बिलासपुर सदर विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों भाजपा की डबल इंजन सरकार ने जिले की जनता को कई सौगातें दी हैं. तो क्या एम्स और रंगनाथ मंदिर भाजपा को जीता पाएंगे या कांग्रेस भाजपा के मिशन रिपीट को मिशन डिलीट करने में कामयाब होगी. बिलासपुर शहर में सबसे ज्यादा सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की मांग है. क्योंकि बिलासपुर शहर प्रदेश का एकमात्र ऐसा शहर है, जहां पर सब सुविधा होने के बावजूद भी यहां पर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (Bilaspur Sadar Assembly Constituency Issues) नहीं है. यहां का सारा गंदा पानी गोबिंदसागर झील में जाकर मिलता है. लेकिन हैरानी की बात यह है कि अभी तक इसका कोई हल नहीं निकल पाया है.
बंजार विधानसभा क्षेत्र (Banjar Assembly Constituency) में सत्तापक्ष के विधायक सुरेंद्र शौरी लगातार ग्रामीण इलाकों का दौरा कर रहे हैं और बीते सालों में किए गए विकास कार्यों का भी बखान जनता के बीच रख रहे हैं तो वहीं कांग्रेस भी विधायक की नाकामियों के बारे में जागरूकता अभियान चलाए हुए है. स्थानीय लोगों का कहना है कि बंजार विधानसभा क्षेत्र में स्वास्थ्य की हालत बिल्कुल भी ठीक (Banjar Assembly Constituency Issues) नहीं है. तो वहीं शिक्षा का ढांचा भी सरकार पूरी तरह से मजबूत नहीं कर पाई है. लोगों को इस बात से परेशानी है कि यहां पर चुनावों के समय विभिन्न राजनीतिक दल बड़ी-बड़ी घोषणाएं तो कर जाते हैं, लेकिन उसके बाद वह इस क्षेत्र को भूल जाते हैं.
लासपुर जिले की सबसे महत्वपूर्ण सीट घुमारवीं विधानसभा क्षेत्र इन दिनों काफी चर्चा में है. यहां से पहली बार विजेता रहे विधायक राजेंद्र गर्ग को पहली बारी में ही मंत्री का पद भाजपा सरकार में मिल गया. अब मंत्री राजेंद्र गर्ग के लिए वरिष्ठ पदाधिकारियों राकेश चोपड़ा और उनकी सेना को साथ लेकर चलना मुश्किल हो गया है. ऐसे में कहीं न कहीं इन विधानसभा चुनावों में भाजपा को घुमारवीं से सीट (Ghumarwin Assembly Seat) निकालना थोड़ा मुश्किल हो जाएगा. घुमारवीं में स्थानीय जनता की हमेशा मांग (Ghumarwin Assembly Constituency Issues) रही है कि यहां कूड़ा संयंत्र लगाया जाए, लेकिन नगर परिषद के पास अभी तक भी कोई पर्याप्त स्थान नहीं है.
सोलन विधानसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है, लेकिन चुनाव से पहले ही एक बार फिर से ससुर और दामाद के बीच इस सीट पर जुबानी जंग तेज हो गई है. चुनाव से पहले सोलन विधानसभा सीट पर भाजपा में टिकट की दावेदारी को लेकर इन दिनों चार प्रत्याशी आगे चल रहे हैं. पीएचसी और सीएचसी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी भी लगातार चुनावी मुद्दा बनती है. वैसे तो कांग्रेस यह दावा कर रही है कि कांग्रेस कार्यकाल में ही सोलन में विकास हुआ, लेकिन जमीनी हकीकत पर अभी भी विकास होना बाकी है. इस सीट पर ससुर दामाद की इस लड़ाई (Rajesh Kashyap vs Dhaniram Shandil) में किसकी जीत होगी किसकी हार होगी यह तो समय बताएगा. लेकिन चर्चाओं का माहौल है कि इस बार भी इन दोनों पर ही दोनों पार्टियां किस्मत आजमाने वाली है. इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनावी मैदान में (Himachal Seat Scan) उतर रही है.
करसोग विधानसभा क्षेत्र में पिछले 6 चुनावों में कांग्रेस का दबदबा रहा है और एक बार ही कमल खिला है. इस बार इस सीट पर चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है. चार जिला परिषद वार्ड वाले इस विधानसभा क्षेत्र का इतिहास देखें तो नारी सशक्तिकरण के दावे करने वाले बड़े दल कांग्रेस और भाजपा ने कभी भी महिला को टिकट नहीं दिया है. करसोग में स्थाई सब्जी मंडी न होने से किसान काफी परेशान हैं. क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव (Medical Facilities in Karsog) है. इसके अलावा सिविल अस्पताल करसोग (Civil Hospital Karsog) में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है. करसोग में सरकारी विभागों में स्टाफ की कमी से आए दिन मरीजों को परेशानी पेश आ रही है. विपक्ष इन प्रमुख मुद्दों पर सत्ता पक्ष को घेर सकता है.
हमीरपुर जिले की भोरंज सीट का इतिहास भी बेहद रोचक रहा है. इस सीट पर पिछले तीन दशकों से भाजपा का कब्जा है. विधानसभा क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए इस साल विधानसभा चुनावों में गुटबाजी बड़ी चुनौती (Controversy between BJP and Congress party workers in Bhoranj) होगी. एक तरफ कांग्रेस यहां पर तीन दशक से गुटबाजी की वजह से जीत हासिल नहीं कर पाई है तो वहीं भाजपा की राह भी इस बार मुश्किल नजर आ रही है. भोरंज विधानसभा क्षेत्र में सड़कों का जाल बिछा है, लेकिन गांव देहात की सड़कों की हालत बरसात में खराब हो जाती है. बस स्टैंड का निर्माण का मुद्दा फिर चुनावों में उठ सकता (Bhoranj Assembly Constituency Issues) है.
चुनावी साल में नालागढ़ विधानसभा क्षेत्र (Nalagarh Assembly Constituency) में एक बार फिर सियासी गर्मी तेज हो चुकी है. नालागढ़ में जहां भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होने की उम्मीद है. वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस की आपसी दरार ही यहां कांग्रेस की हार का कारण बनती जा रही है. दरअसल नालागढ़ विधानसभा क्षेत्र से मौजूदा समय में कांग्रेस से लखविंदर राणा विधायक (Nalagarh MLA Lakhwinder Rana) हैं. लेकिन अब उन्हें 2022 के होने वाले विधानसभा चुनावों में अन्य पार्टियों से खतरा कम और कांग्रेस से ही टिकट की दावेदारी ठोक रहे हरदीप सिंह बावा से ज्यादा खतरा हो गया है. नालागढ़ विधानसभा क्षेत्र (Nalagarh Assembly Constituency) में किसानों की फसलों को न मिलने वाला उचित दाम, पानी की असुविधा, नदियों पर पुलों का न होना, लगातार खनन को बढ़ावा मिलना और क्राइम का बढ़ना अहम मुद्दे रहे हैं.
हमीरपुर विधानसभा क्षेत्र का इतिहास बेहद की रोचक रहा है. जीत और हार के साथ ही भौगोलिक परिस्थितियां में बदलाव और विधानसभा डिलिमिटेशन के कारण क्षेत्रों के गठजोड़ भी चर्चा में रहे हैं. साल 1982 से इस सीट पर भाजपा का अधिक दबदबा देखने को मिला है. पिछले 9 विधानसभा चुनावों में से भाजपा ने आठ और कांग्रेस ने एक दफा जीत हासिल की है. भाजपा के दिग्गज नेता रहे पूर्व मंत्री स्वर्गीय जगदेव चंद इस विधानसभा क्षेत्र से 1982 से लेकर 1993 तक चार दफा लगातार भाजपा के टिकट पर विधायक रहे. हमीरपुर विधानसभा क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज हमीरपुर में बेहतर सेवाएं और नए बस स्टैंड का मुद्दा (Hamirpur Assembly Constituency Issues) चर्चा में रहेगा. शहर में बेहतर पार्क न होना, बिजली की लाइनों का जाल, ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल और बिजली की समस्या चर्चा में रहेगी.
चुनाव की दृष्टि से कुल्लू विधानसभा क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है. कुल्लू विधानसभा क्षेत्र (Kullu Assembly Constituency) जहां राजनीतिक चर्चाओं का विषय बना रहता है. वहीं, यह धार्मिक व पर्यटन की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है. कुल्लू विधानसभा की अगर बात करें तो यहां पर लग घाटी, मणिकर्ण घाटी व खराहल घाटी प्रमुख रूप से आती है. यह तीनों ही घटियां धार्मिक पर्यटन के लिए वे काफी मशहूर हैं, लेकिन तीनों ही घाटियों में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की दृष्टि से कोई खास कार्य नहीं हो पाया है. क्षेत्र में 88,957 मतदाता कुल्लू विधानसभा क्षेत्र से राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों की किस्मत को तय करेंगे.
Next Story