हिमाचल प्रदेश

श्रद्धालुओं ने कमरुनाग झील में अर्पित किए सोना-चांदी व नकदी

Shantanu Roy
16 Jun 2023 9:54 AM GMT
श्रद्धालुओं ने कमरुनाग झील में अर्पित किए सोना-चांदी व नकदी
x
गोहर। मंडी जनपद के बड़ा देव कमरुनाग का ऐतिहासिक सरानाहुली मेला श्रद्धा और उल्लास के साथ शांतिपूर्वक मनाया गया। देव कमरुनाग के दरबार में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं और पर्यटकों ने शीश नवाया और आशीर्वाद प्राप्त किया। हालांकि वीरवार सुबह बारिश की बौछारों ने श्रद्धालुओं के लिए मुसीबत खड़ी की लेकिन कुछ समय के बाद मौसम सुहावना हो गया। देवता के लाठी कारदारों ने देव पूजा के लिए सुबह से ही तैयारियां कर ली थीं और जैसे ही देव पूजा का समय आया, कमरुनाग देवता के गूर व कटवाल सहित अन्य कारदारों ने धूप-बत्ती कर काहूलियों की ध्वनि के साथ मूर्ति पूजन के बाद देव झील (सर) का पूजन किया। इसके उपरांत देव कमेटी की ओर से सदियों से चली आ रही रीति के अनुसार झील में बड़ा देव कमरुनाग के सुपुर्द सोना-चांदी के जेवर अर्पित किए। इसके बाद मेले में आए श्रद्धालुओं ने भी पवित्र झील में सोना-चांदी, सिक्के और नकदी अर्पित की।
देवता में आस्था रखने वाले अनेक लोगों ने देवता के दरबार में बकरे पहुंचाए और देवता को चढ़ाए, मगर किसी भी प्रकार की कोई पशु बलि नहीं दी गई। कमरुनाग सरानाहुली मेले में मंडी, कुल्लू, बिलासपुर, शिमला, कांगड़ा, हमीरपुर और पड़ोसी राज्यों के हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे थे। श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए मंदिर कमेटी को देवता के दर्शन करवाने के लिए पुलिस की मदद लेनी पड़ी। देव कमरुनाग मेले में सरोआ, रोहांडा, जाच्छ, धंग्यारा, मंडोगलू, शाला और करसोग घाटी के रास्ते देवता के भक्तों के जयकारों से गुंजायमान रहे। देव कमरुनाग के गुर देवी सिंह ठाकुर का कहना है कि वाॢषक सरानाहुली मेला, जोकि देवता के मूल स्थान कमुराह में मनाया जाता है, के लिए देवता का प्रमुख चिह्न सूरजपखा नहीं जाता है। इसके साथ ही न ही देवता का बाजा बजंत्र ले जाया जाता है। मेला स्थल के लिए गुर की माला (कुथली) काहुली और घंटी को लेना सदियों से मान्य है। सरानाहुली मेले के लिए देवता अपने सूरजपखा और बजंत्र के बिना ही रवाना होता है। देवता के कारिंदे व लाठी मूल कोठी से निकलते ही काहुली की ध्वनि व घंटी बजाते हुए मूल स्थान पहुंचते हैं।
Next Story