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हिमाचल प्रदेश
राज्य में खेती कर रहे किसानों की हो रही सर्टिफिकेशन, अब आसान होगी प्राकृतिक खेती से तैयार उत्पादों की पहचान
Gulabi Jagat
7 Jun 2023 9:30 AM GMT
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शिमला: बाजार में अब प्राकृतिक खेती के उत्पादों की आसान से पहचान होगी। सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती राज्य परियोजना इकाई द्वारा इनोवेटिव सेल्फ सर्टिफिकेशन प्रणाली के लिए दुनियाभर में मान्य राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने वाली एक अनूठी स्व प्रमाणीकरण प्रणाली तैयार की गई है। इस प्रणाली के तहत प्राकृतिक खेती कर रहे किसानों-बागबानों की सर्टिफिकेशन की जा रही है। सर्टिफिकेशन प्रक्रिया पूरी होने के बाद किसानों-बागबानों को प्राकृतिक खेती का सर्टिफिकेट प्रदान किया जाता है। किसानों-बागबानों के उत्पादों पर एक क्यूआर कोड लगा होगा, जिसे स्कैन करने पर किसान की सारी जानकारी और प्राकृतिक खेती का प्रमाण पत्र दिख जाएगा। यह प्रणामीकरण प्रणाली पूरी तरह से नि:शुल्क है और इसके तहत किसान को हर वर्ष प्रमाणीकरण की जरूरत नहीं है।
अक्तूबर 2022 से इस प्रमाणीकरण के लिए बेवसाइट 222.ह्यश्चठ्ठद्घद्धश्च.द्बठ्ठ की शुरुआत की गई है जिसके तहत अभी तक प्रदेश भर के 52,000 किसानों का पंजीकरण किया जा चुका है। इनमें से 50,000 किसान-बागबानों को प्रमाणपत्र प्राप्त हो चुके हैं। यह प्रमाणीकरण पूरी तरह से नि:शुल्क है । गौरतलब है कि प्राकृतिक खेती उत्पाद की मार्केटिंग साल के 365 दिन शहरी क्षेत्र के उपभोक्ताओं को प्राकृतिक खेती उत्पाद देने के लिए पायलट आधार पर शिमला शहर में एक आउटलेट खोला गया है। इसकी सफलता के बाद सोलन, चंडीगढ़, दिल्ली सहित प्रदेशभर में प्राकृतिक खेती उत्पाद के आउटलेट खोले जाएंगे। राज्य की दस मंडियों में स्थान चयनित कर आधारभूत ढांचे का निर्माण किया जा रहा है।
डेढ़ लाख किसान कर रहे प्राकृतिक खेती
वर्तमान आंकड़ों के अनुसार अभी तक प्रदेश में 1,59,040 से अधिक किसान-बागवान परिवारों ने इस खेती विधि को पूर्ण या आंशिक भूमि पर अपना लिया है। प्रदेश की 99.8 प्रतिशत पंचायतों में यह विधि पहुंच बना चुकी है और 2,41,500 बीघा (19,320 हेक्टेयर) से अधिक भूमि पर इस विधि से खेती-बागबानी की जा रही है।
21.44 प्रतिशत बढ़ा उत्पादन
प्रदेश के सभी चार जलवायु क्षेत्रों के 325 प्राकृतिक खेती किसानों के उपर किए अध्ययन में खेती के साथ फल उत्पादन कर रहे किसानों का प्रतिशत सबसे अधिक 40.6 प्रतिशत रहा। इस खेती विधि से उनका शुद्ध लाभ भी 21.44 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। इसके साथ ही उनकी लागत में 14.34 से 45.55 प्रतिशत की कमी और कुल आय में 11.8 से 21.55 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। यह दर्शाता है कि प्राकृतिक खेती पारंपरिक खेती की तुलना में ज्यादा कारगर है। गेहूं की खेती करने वाले 254 किसानों के उपर किए गए अध्ययन में इन किसानों की लागत में 28.11 फीसदी की कमी आई है।
56.5 फीसदी घटी लागत
सेब बागबानों के ऊपर किए गए अध्ययन में पारंपरिक खेती के मुकाबले प्राकृतिक खेती में कई मायनों में लागत में कमी आई है। फलोत्पादन और कीमत की श्रेणी में दोनों खेती विधियां बराबर आंकी गई हैं, लेकिन कम लागत होने की वजह से प्राकृतिक खेती विधि में बागबानों के शुद्ध लाभ में 27.41 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अधिकतर बागबानों ने इस बात की पुष्टि की है कि प्राकृतिक खेती में उनकी लागत 56.5 प्रतिशत तक घटी है।
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Gulabi Jagat
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