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हिमाचल प्रदेश
शिक्षा विभाग से संबंधित कैग की रिपोर्ट में खुलासा, न स्टार प्रोजेक्ट का पूरा बजट खर्चा, न मिड-डे मील का
Gulabi Jagat
8 April 2023 10:53 AM GMT

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शिमला: प्रदेश के स्कूलों में क्वालिटी एजुकेशन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार की ओर से शिक्षा विभाग को विभिन्न मदों में करोड़ों रुपए की ग्रांट मिली है, लेकिन विभाग इस राशि को पूरा खर्च करने में नाकाम रहा है। इस बजट को खर्च न करने के लिए शिक्षा विभाग ने जो तर्क दिए हैं, उसे कैग ने सिरे से खारिज किया है। साल 2021-22 की बात की जाए तो केंद्र से प्रारंभिक शिक्षा विभाग को स्टार प्रोजेक्ट के तहत बीते साल 49.70 करोड़ रुपए मिले थे, लेकिन बीते साल इसमें केवल 33.26 करोड़ रुपए ही खर्च कर पाया। स्टार प्रोजेेक्ट के तहत शिक्षा विभाग स्कूलों में विकास कार्य को बढ़ावा देने, आधुनिक सुविधाएं जैसे क्लासरूम की व्यवस्था, शौचालय निर्माण, पानी व इंटरनेट सुविधा देने पर यह राशि खर्च करता है, लेकिन इसमें से सभी मदों में यह राशि खर्च नहीं हो सकी। इसके साथ ही मिड-डे मील के लिए भी केंद्र सरकार की ओर से बजट जारी किया जाता है। बीते साल केंद्र की ओर से मिड डे मील के लिए 60.38 करोड़ रुपए मिले थे, जिसमें से विभाग केवल 48.59 करोड़ रुपए ही खर्च कर पाया। इसके साथ ही सरकारी कॉलेजों के लिए 342.16 करोड़ रुपए मिले थे, लेकिन इसमें से भी विभाग केवल 300 करोड़ खर्च कर सका।
शिक्षा विभाग का तर्क
शिक्षा विभाग ने केंद्र से मिले बजट को खर्च न कर पाने के कारण बताए हैं। इसमें शिक्षकों की नई नियुक्ति न होना एक बड़ा कारण बताया गया है। इसमें एसएमसी के पदों पर बीते साल कोई भी नई नियुक्ति नहीं हो पाई है। इसके साथ ही कर्मचारियों की सेवानिवृत्त और खाली पदों के चलते भी यह बजट खर्च नहीं हो पाया है। दूसरा कोविड के समय अधिकतर शिक्षण संस्थान बंद रहे। ऐसे में मिड-डे मील भी स्कूलों में नहीं बन पाया। वहीं प्रवासी छात्रों को बैंक के जरिए जो राशि बतौर छात्रवृत्ति दी जानी थी, उनके बैंक खाते वेरिफाई न होने के चलते यह राशि नहीं मिल पाई। हालांकि शिक्षा विभाग के इन तर्कों को कैग ने सिरे से खारिज कर दिया है।
नलकूपों के निर्माण पर फिजूल खर्च कर दिए 92 लाख
कैग रिपोर्ट में जल शक्ति विभाग में अप्रभावी व्यय का खुलासा
स्टाफ रिपोर्टर — शिमला
जल शक्ति विभाग द्वारा नलकूपों के निर्माण पर अनावश्यक तौर 92 लाख की राशि खर्च की गई है। कैग रिपोर्ट में जल शक्ति विभाग द्वारा किए गए निष्फल/अप्रभावी व्यय का खुलासा हुआ है। नलकूप योजनाओं हेतु प्रस्तावित स्थलों पर कार्य प्रारंभ करने से पूर्व जल निकासी का वैज्ञानिक व्यवहार्यता मूल्यांकन न करना परित्यक्त योजनाओं पर 92 लाख के अनावश्यक व्यय एवं सात मामूली रूप से कार्यशील योजनाओं पर अप्रभावी व्यय के रूप में परिणत हुआ। इसके अलावा सात अन्य योजनाएं अनुमोदन के सात वर्ष बीत जाने के बाद भी अपूर्ण रही, जिसके परिणामस्वरूप लाभार्थी सिंचाई सुविधाओं से वंचित रह गए। बताया जा रहा है कि भारतीय मानक ब्यूरो दिशानिर्देश जल शक्ति विभाग, हिमाचल प्रदेश सरकार पर प्रयोज्य हैं। भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा नल (ट्यूब )/बोरवेल की अवस्थिति, संचालन व रखरखाव दिशानिर्देश के परिच्छेद 4.2 एवं 4.2.1 में कहा गया है-कि भौतिक विशेषताओं जैसे घनत्व, लोच, चुंबकीय , विद्युत प्रतिरोधकता, रेडियोधर्मिता का उपयोग करते हुए भूभौतिकीय तरीके जल-भूगर्भीय विशेषताओं को निरूपित कर सकते है। अच्छे जलवाही स्तर भूजल क्षमता वाले क्षेत्रों की पहचान करने में सहायता हेतु बोरहोल की ड्रिलिंग के लिए सटीक स्थान दे सकते हैं। इस प्रकार सर्वेक्षण क्षेत्र में भूजल क्षमता के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। वहीं भूभौतिकीय सर्वेक्षण यद्यपि हाइड्रोजियोलॉजिकल जांच की तुलना में महंगा है। तथापि यह बहुत अधिक महंगी ड्रिलिंग के निष्फल व्यय को, विशेष रूप से कठोर चट्टान क्षेत्रों में कम कर सकता है।
नालागढ़ में नलकूलों पर करोडा़ें रुपए किए खर्च
नाबार्ड ऋण योजना सात के तहत अगस्त, 2009 व मार्च, 2015 में नालागढ़ के गांवों के किसानों को सिंचाई सुविधा प्रदान करने के लिए दो सिंचाई परियोजनाओं से नालागढ़ क्षेत्र में 4.09 करोड़ में छह नलकूप 5.33 करोड़ में सात नलकूपों (राजपुरा, मियांपुर बगलेहर, ग्राम पंचायत गोयल जमाला में कल्याणपुर हरिजन बस्ती, भोगपुर, घरोटी (बाईपास), ग्राम पंचायत खिलियां में नग्गर व प्लासरा कालू) वहीं, परियोजना-1 में 4.09 करोड़ में छह नलकूप व परियोजना दो में 5.33 करोड़ में सात नलकूपों को मंजूरी दी गई थी। विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के अनुसार दो परियोजनाओं के तहत कुल 13 नलकूप ड्रिल किए जाने थे, जिसमें 30 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हेतु प्रत्येक नलकूप में 30 लीटर प्रति सेकंड जल निकासी अनुमानित थी। इसके अलावा सिविल कार्य का निष्पादन किया जाना था तथा उपकरण खरीदे जाने थे। जल शक्ति मंडल, नालागढ़ के अभिलेखों की संवीक्षा (फरवरी, 2018 व माच, 2021 ) से खुलासा हुआ है कि प्रस्तावित ट्यूबवेल कार्य स्थलों (साइटों) पर उपलब्ध भूजल क्षमता (जल-निकासी) का पता लगाने हेतु भारतीय मानक ब्यूरो दिशानिर्देशों में अनुशंसित वैज्ञानिक विधियों का उपयोग नहीं किया गया।
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