हिमाचल प्रदेश

जिला के बड़े प्रोजेक्ट हर बार चढ़ रहे राजनीति की भेंट, सरकार बनाने वाले कांगड़ा की झोली खाली

Gulabi Jagat
12 Dec 2022 7:49 AM GMT
जिला के बड़े प्रोजेक्ट हर बार चढ़ रहे राजनीति की भेंट, सरकार बनाने वाले कांगड़ा की झोली खाली
x
धर्मशाला
पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाने वाले सबसे बड़े जिला कांगड़ा की झोली हर बार खाली ही रह रही है। मात्र जिला के कैबिनेट मंत्री के कोटे से ही खानापूर्ति की जा रही है। जबकि जिस पार्टी को कांगड़ा में नौ से 11 सीटें मिली हैं, उसी की राज्य में सरकार बन रही है। बावजूद इसके कांगड़ा घाटी को हर बार दरकिनार ही किया जा रहा है। मात्र 1977 व 1990 में कांगड़ा से शांता कुमार को मुख्यमंत्री पद मिला, उसके बाद कोई भी सीएम नहीं मिल पाया है, जिसके कारण पिछले दो से अढ़ाई दशकों से कांगड़ा के बड़े प्रोजेक्ट हर बार राजनीति की भेंट चढ़ रहे हैं। इसमें हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा एयरपोर्ट कांगड़ा गगल हो, पठानकोट-जोगेंद्रनगर रेलवे लाइन हो, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र या पीजी कालेज धर्मशाला, पर्यटन स्थलों व पौंग जलाशय को पर्यटन स्थल पर विकसित करने, मकलोडगंज नड्डी डल झील का अस्तिव का कार्य, कांगड़ा की कनेक्टिविटी, स्मार्ट सिटी धर्मशाला सही अर्थों में धरातल पर उतरने, पौंग बांध विस्थापितों का मसला सहित कई महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्टों को अधर में ही लटके रहना पड़ रहा है। हिमाचल की सियासत में सबसे बड़े जिला कांगड़ा ही राजनीतिक दलों के लिए सत्ता की राह तैयार करता रहा है। कांगड़ा से जिस दल को नौ से 11 सीटें मिल जाती हैं, उसकी राज्य में सरकार बनना लगभग तय हो जाता है।
पिछले इतिहास के पन्नों पर नज़र दौड़ाए, तो जिला कांगड़ा की राह से शिमला में सरकार बनाने का रास्ता हर विधानसभा चुनाव में आम सा देखने को मिलता है। वर्ष 1985 से हिमाचल सरकार में लगातार बदलने का ट्रेंड चल रहा है। इसके तहत ही कांगड़ा की इस रिवाज को बनाए रखने में बड़ी भूमिका निभाता नज़र आता है। वर्ष 1985 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 16 में से 11 सीटें मिली थी, जबकि भाजपा को तीन, एक लोकदल व आजाद रहे थे, जिसमें प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी। वहीं 1990 में कांगड़ा की 16 सीटों में से भाजपा को 15 सीटें मिली थी, कांग्रेस को मात्र एक से ही संतोष करना पड़ा, इस दौरान राज्य में भाजपा की सरकार बनी। वहीं 1993 में एक बार फिर से कांग्रेस को 12, भाजपा को तीन और एक आजाद रहे थे, जिससे राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी थी। वर्ष 1998 से विधानसभा चुनाव में कांगड़ा जिला से भाजपा ने 10 सीटों के साथ बड़ी जीत दर्ज की। कांग्रेस पार्टी को पांच सीटें मिली थीं। एक निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली थी। कांगड़ा ने सत्ता की राह तैयार की और प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में कांगड़ा से कांग्रेस को 11 और भाजपा को चार सीटों पर विजय मिली, एक निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। कांगड़ा में आगे रहने वाली कांग्रेस के पास सत्ता की चाबी आ गई।
2007 में भाजपा के नौ और कांग्रेस के चार प्रत्याशी जीते। बसपा का एक और एक निर्दलीय जीतकर विधानसभा पहुंचे थे, तब सरकार भाजपा की बनी। गौरतलब है कि पहले जिला कांगड़ा में 16 विधानसभा क्षेत्र होते थे। वर्ष 2012 में पुनर्सीमांकन के बाद थुरल विधानसभा क्षेत्र खत्म हो गया। थुरल सीट के इलाकों को आसपास की विधानसभा में समायोजित किया गया। तबसे जिला कांगड़ा में 15 सीटें हैं। 2012 में फिर कांग्रेस की सरकार बनी, उस दौरान भी कांगड़ा जिला से 10 सीटें कांग्रेस, भाजपा की तीन और दो निर्दलीय की रहीं। 2017 के विधानसभा चुनाव में 11 सीटें भाजपा, चार कांग्रेस को मिलीं। एक निर्दलीय उम्मीदवार जीता। ऐसे में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। वहीं अब वर्ष 2022 चुनाव में कांग्रेस को जिला कांगड़ा से दस सीटें मिली हैं, भाजपा को चार व एक आजाद उम्मीदवार जीते हैं। ऐसे में प्रदेश में कांगड़ा की राह से हिमाचल में कांग्रेस की सरकार बन गई है। लेकिन मुख्यमंत्री व राज्य के इतिहास में पहली बार उप-मुख्यमंत्री का पद हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के हाथ लगा है।
आज दिन तक नहीं हुए ये काम
सबसे बड़ा एयरपोर्ट कांगड़ा गगल, पठानकोट-जोगेंद्रनगर रेलवे लाइन, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र या पीजी कालेज धर्मशाला, पर्यटन स्थलों व पौंग जलाशय को पर्यटन स्थल पर विकसित करने, मकलोडगंज नड्डी डल झील का अस्तिव का कार्य, कांगड़ा की कनेक्टिविटी, स्मार्ट सिटी धर्मशाला सही अर्थों में धरातल पर उतरने, पौंग बांध विस्थापितों का मसला सहित कई प्रोजेक्टों अधूरे
कांगड़ा की अनदेखी पर उठने लगे सवाल
1983 के बाद पहली बार 2022 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के बाद चेहरा बदला, जिसमें भी कांगड़ा का कहीं नाम तक देखने को नहीं मिला, जो कि कई बड़े सवाल उठा रहा है। प्रदेश के सबसे बड़े और सबसे ज्यादा विधानसभा सीटों वाले जिला कांगड़ा से एक ही बार मुख्यमंत्री बना है। वर्ष 1977 व 1990 में शांता कुमार मुख्यमंत्री बने थे। प्रदेश की राजनीति में बड़ी भूमिका होने के बावजूद कांगड़ा को शांता कुमार के बाद दूसरा मुख्यमंत्री नहीं मिला है। जबकि गैर-भाजपा यानि कांग्रेस की तरफ से तो कभी उप-मुख्यमंत्री का पद तक कांगड़ा को नसीब नहीं हो पाया।
Next Story