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हिमाचल प्रदेश
आजादी का अमृत महोत्सव: हिमाचल प्रदेश के पथरीली डगर पर विकास का सफर
Deepa Sahu
16 Jan 2022 6:58 AM GMT
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हिमाचल प्रदेश की आर्थिक हालत पर नजर डालें तो पर्यटन, कृषि, सीमेंट सहित उद्योग, बिजली संयंत्र के अलावा करीब पांच हजार करोड़ सालाना का सेब कारोबार ही सरकार की आमदनी के मुख्य स्रोत हैं।
हिमाचल प्रदेश की आर्थिक हालत पर नजर डालें तो पर्यटन, कृषि, सीमेंट सहित उद्योग, बिजली संयंत्र के अलावा करीब पांच हजार करोड़ सालाना का सेब कारोबार ही सरकार की आमदनी के मुख्य स्रोत हैं। हालात यह हैं कि अपना काम चलाने के लिए हर साल सरकार को हजारों करोड़ रुपये का कर्ज लेना पड़ता है। मौजूदा समय में 100 रुपये सरकार की आमदनी मानी जाए तो उसमें से करीब 16.64 रुपये ऋण-ब्याज की अदायगी, 25.31 रुपये वेतन, 14.11 रुपये पेंशन पर खर्च हो जाते हैं। यानी कुल 56.06 रुपये ऋण-ब्याज अदायगी, वेतन और पेंशन पर चले जाते हैं। आमदनी से ज्यादा खर्च होने पर साल दर साल सरकार पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है।
वर्तमान सरकार ने इन्वेस्टर मीट के जरिये 92 हजार करोड़ रुपये के लिए 603 एमओयू साइन तो किए, लेकिन यह सभी धरातल पर कब दिखेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता। प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय अब 1,95,255 रुपये है जबकि वर्ष 2011-12 में यह 87,721 रुपये थी। सकल घरेलू उत्पाद 1,65,472 रुपये है जबकि वर्ष 2011-12 में यह 72,720 था।
सकल घरेलू उत्पाद में से कृषि, बागवानी आदि (प्राथमिक क्षेत्र) से 14.58 फीसदी, उद्योग, निर्माण, विद्युत, गैस व जलापूर्ति आदि (गौण क्षेत्र) से 41.94 फीसदी और पर्यटन, परिवहन, आवासीय आदि (सेवा क्षेत्र) से 43.48 फीसदी आता है। प्रदेश की आर्थिकी में पर्यटन उद्योग का विशेष योगदान है। हिमाचल प्रदेश में सकल घरेलू उत्पाद का 7 फीसदी पर्यटन से ही आता है। यह प्रदेश के रोजगार व स्वरोजगार की रीढ़ बना हुआ है।
पिछले 50 वर्षों में सत्तासीन सरकारों ने प्रदेश में खेती व बागवानी को बढ़ावा दिया है। आज प्रदेश में कुल फसल 36,12,000 मीट्रिक टन और फल उत्पादन 8,45,422 मीट्रिक टन से अधिक हो रहा है। वर्तमान में 5000 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष का योगदान देकर सेब हिमाचल की मुख्य नकदी फसल बन गया है।
पिछले दो साल के बजट पर नजर दौड़ाई जाए तो वर्ष 2021-22 का कुल बजट 50192 करोड़ रखा गया। इसमें राजकोषीय घाटा 7789 करोड़ रुपये व राजस्व घाटा 1463 रुपये का अनुमान है। हालांकि, यह राजस्व घाटा कोरोनाकाल से लॉकडाउन या बाजार प्रभावित रहने के कारण माना जा रहा है।
देश का सबसे बड़ा हाइड्रो पावर स्टेशन भी यहीं
रामपुर शहर के पास वर्ष 1944 में सतलुज नदी पर भाखड़ा बांध के सर्वेक्षण एवं अन्वेषण का कार्य शुरू हो गया था। वर्तमान में यहां 2,918 मेगावाट बिजली बन रही है।
पेपरलेस होंगे सरकारी विभाग
विधानसभा में पूरा कामकाज व सत्र की कार्यवाही अब पेपरलेस हो चुकी है। पुलिस चौकियों को रिपोर्टिंग चौकियों का रूप दे दिया गया है, ताकि लोग वहां शिकायत दर्ज करा सकें। व्हाट्सएप या ईमेल करके भी शिकायत दर्ज कराने की सुविधा मिल गई है।
'बड़ी सरकार' की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला
शिमला अंग्रेजी हुकूमत यानी 'बड़ी सरकार' की ग्रीष्मकालीन राजधानी रहा है। सन 1864 में शिमला को ग्रीष्मकालीन राजधानी और ब्रिटिश आर्मी का बेस कैंप बनाया गया। इसके बाद अंग्रेजों ने इस क्षेत्र का विकास किया। देश के स्वतंत्र होने के बाद 15 अप्रैल 1948 को छोटी-बड़ी 30 रियासतों को मिलाकर एक केंद्रशासित राज्य के रूप में भारत के नक्शे पर अस्तित्व में आया। इनमें से 26 रियासतों को मिलाकर एक ही महासू जिला बना था।
महासू के अतिरिक्त सिरमौर, मंडी और चंबा तीन जिले बने थे। जुलाई 1954 में पांचवां जिला बिलासपुर नाम से हिमाचल प्रदेश में शामिल हुआ। इसके बाद हिमाचल के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. वाईएस परमार के प्रयास से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शिमला के रिज मैदान से 25 जनवरी 1971 को हिमाचल का पूर्ण राज्य का दर्जा देने की घोषणा की।
82.80% साक्षरता दर के साथ देश में दूसरे स्थान पर
1971 2021
प्राथमिक स्कूल 3,768 10,716
हाई स्कूल 435 934
सीनियर स्कूल 81 (1982) 18,72
सरकारी डिग्री कॉलेज 13 132
निजी डिग्री कॉलेज 0 51
सरकारी विश्वविद्यालय 01 07
निजी विश्वविद्यालय 0 17
सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज 0 05
निजी इंजीनियिरिंग कॉलेज 0 09
नोट : इसके अलावा नाहन में आईआईएम, मंडी में आईआईटी, कांगड़ा में केंद्रीय विश्वविद्यालय, हमीरपुर में तकनीकी विश्वविद्यालय, शिमला में विधि विश्वविद्यालय व मंडी में सरदार वल्लभ भाई पटेल क्लस्टर विश्वविद्यालय भी स्थापित हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय प्रदेश की साक्षरता दर महज 8 फीसदी थी, जबकि प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के समय वर्ष 1971 में साक्षरता दर 31.96 फीसदी हो गई। इसमें शैक्षिक संस्थानों के लगातार बढ़ने का ही नतीजा रहा कि आज 82.80% की अप्रत्याशित साक्षरता दर के साथ प्रदेश देश में दूसरे स्थान पर है। आज अन्य शिक्षण संस्थानों के अलावा प्रदेश में आईआईएम, आईआईटी, एनआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालय, तकनीकी विश्वविद्यालय, विधि विश्वविद्यालय, कृषि विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थान भी अपनी विशेष पहचान बनाए हुए हैं।
शिक्षा क्षेत्र में 75 साल में क्रमवार प्राथमिक शिक्षा संस्थानों से लेकर आईआईएम व आईआईटी जैसे प्रबंधन व प्रौद्योगिकी संस्थानों की स्थापना हुई। वर्तमान में सरकारी व निजी क्षेत्र में शैक्षणिक संस्थानों का एक मजबूत नेटवर्क उपलब्ध है। गुणवत्ता युक्त शिक्षा के आयाम स्थापित होने से ही यहां पर सरकारी व निजी संस्थानों में शिक्षा ग्रहण करने के लिए अन्य राज्यों के विद्यार्थी भी लालायित रहते हैं।
मूलभूत सुविधाओं की कमी... अब तक सड़क से नहीं जुड़ सके 4,714 गांव
मूलभूत सुविधाओं की कमी जैसे प्रदेश की उपलब्धियों को ठेंगा दिखा रही है। आज भी प्रदेश के 4,714 गांवों की आबादी में बीमार होने वाले व्यक्ति को करीब 2 से लेकर 20 किमी दूर स्थित अस्पताल तक पालकी या चारपाई पर ले जाया जाता है। ऐसे गांव प्रदेश में कुल गांवों 17,882 के 26 फीसदी हैं। आजादी के 75 साल में भी लोग सड़क से नहीं जुड़ सके हैं। इनमें 250 से कम आबादी वाले गांव 85 फीसदी हैं।
इनकी संख्या 3,971 है। इन्हें सड़क से जोड़ने की फिलहाल योजना तक तैयार नहीं है। सड़क से न जुड़ने वाले जिलों की स्थिति देखें तो कांगड़ा में सर्वाधिक 766 गांव ऐसे हैं, जबकि सबसे कम किन्नौर जिले में। सड़कों की लंबाई 1971 में 10,617 किमी थी, तो अब 37,808 किमी। स्वास्थ्य संस्थान वर्ष 1948 में जहां 88 थे, उनकी तादाद 4,320 हो गए हैं। प्रदेश के अस्पतालों में 10,285 बेड हैं। इनमें से अधिकांश में चिकित्सा व्यवस्था सरकार के हाथों में ही है।
प्रदेश में सुपर स्पेशलिटी 7 मेडिकल कॉलेजों सहित दर्जन भर अस्पताल हैं, जबकि 800 लोगों पर अस्पताल का एक बेड है। दो साल पहले शिमला स्थित आईजीएमसी अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू किया गया है। हालांकि लीवर ट्रांसप्लांट सहित कई गंभीर बीमारियों के रोगियों को चंडीगढ़ या दिल्ली उपचार के लिए जाना भी पड़ता है।
वहीं, ब्रितानिया हुकूमत की बिछाई रेल लाइन का अब तक एक फुट भी विस्तार नहीं हो सका है। कालका-शिमला रेल लाइन पर बने पुल, सुरंगें इसे हेरिटेज लाइन का दर्जा दिलाए हुए हैं। अंग्रेजों के शासनकाल में बनाई गईं इमारतें आज भी हेरिटेज का दर्जा प्राप्त हैं।
इन सबके बीच अच्छी बात यह है कि 75 साल में भी प्रदेश की लोक संस्कृति व देवी-देवताओं को पूजने की परंपरा यथावत है। प्रदेश के मंडी में महाशिवरात्रि मेला और कुल्लू का दशहरा मेला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हैं। प्रदेश में आज भी भाषा बोली, रीति-रिवाज, समाज व्यवहार में विविधता नजर आती है। पारंपरिक खान-पान, रहन-सहन, पहनावे आदि क्षेत्रों में पुरानी रियासती क्षेत्रों की छाप नजर आती है।
उपलब्धि...ऊर्जा सरप्लस राज्य लेकिन पहाड़ छलनी भी हुए
ऊर्जा उत्पादन के मामले में हिमाचल प्रदेश को देश के ऊर्जा सरप्लस राज्य का तमगा हासिल है। हालांकि, इसकी एवज में पहाड़ व प्रकृति पर घाव करने के आरोप भी लगे हैं। हिमाचल प्रदेश के इंडस रिवर सिस्टम के तहत यहां बह रहीं नदियों से प्रदेश की जल विद्युत उत्पादन क्षमता 27,436 मेगावाट हो गई है, जो देश की हाइड्रो पावर क्षमता का 25 फीसदी है। पिछले तीन वर्षों में हिमाचल को 3,153 करोड़ रुपये का राजस्व जल विद्युत परियोजनाओं से मिलने वाली मुफ्त व इक्विटी पावर बेचकर हुआ है।
वर्तमान में 168 बिजली परियोजनाओं में 10848 मेगावाट बिजली उत्पादन प्रतिवर्ष हो रहा है। वर्ष 2030 तक 1088 बिजली परियोजनाओं में उत्पादन शुरू करने का लक्ष्य रखा गया है। अभी करीब 920 ऊर्जा संयंत्र प्रदेश में और स्थापित होने हैं।
किन्नौर में 'नो मीन्स नो', 'सेव किन्नौर' अभियान
बिजली उत्पादन के लिए पहाड़ों को काटने अथवा छलनी करने के खिलाफ लोग अब लामबंद होने शुरू हो गए हैं।
कालका-शिमला व पठानकोट जोगिंद्रनगर : अद्भुत ट्रेन ट्रैक
75 सालों में कहां आ गए हम, अगर हिमाचल को लेकर इस पर चर्चा कर रहे हैं और कालका-शिमला हेरिटेज रेल लाइन व पठानकोट-जोगिंद्रनगर रेल लाइन का जिक्र न करें तो यह सही नहीं होगा। अंग्रेजों ने विदेशी व देसी इंजीनियरों की मदद से टॉय ट्रेन के ट्रैक तैयार किए थे। सबसे बड़ी बात यह है कि 112 साल पुराने इस ट्रैक पर आज तक एक भी बड़ी दुर्घटना नहीं हुई है।
दूसरी ओर 1928 में अंग्रेजों ने जोगिंदर नगर में पठानकोट-जोगिन्दरनगर रेल लाइन का निर्माण करवाया था। 180 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन में भी 33 छोटे-बड़े रेलवे स्टेशन हैं। अब इस रेलवे ट्रैक को ब्रॉडगेज करने के बजाए ऐतिहासिक धरोहर के नाम पर संजोने का निर्णय लिया गया है।
1903 : कालका-शिमला ट्रैक को हेरिटेज का दर्जा मिला, 112 सालों में कोई बड़ी दुर्घटना नहीं
1928 : विद्युत परियोजना के लिए भी बनाया 180 किमी लंबा पठानकोट-जोगिन्दरनगर ट्रैक, अब इसे धरोहर के तौर पर संजोया जाएगा
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