रामनवमी : रामनवमी के अवसर पर उत्पात मचाने का जो सिलसिला महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजी नगर से शुरू हुआ था, वह वडोदरा, हावड़ा, हुगली, सासाराम, बिहारशरीफ तक जारी रहा। देश के कुछ और शहरों में भी रामनवमी पर उपद्रव की खबरें आईं। कहा नहीं जा सकता कि यह सिलसिला कब खत्म होगा, क्योंकि जो शहर रामनवमी की शोभायात्राओं पर पत्थरबाजी और हिंसा का गवाह बने, उन सभी में अभी शांति स्थापित नहीं हो सकी है। रामनवमी पर उत्पात कोई नया काम नहीं है। पिछले वर्ष यह काम और बड़े पैमाने पर कहीं अधिक शहरों में किया गया था। तब रामनवमी की शोभायात्राओं को निशाना बनाने के बाद हनुमान जन्मोत्सव की शोभायात्राओं पर भी पत्थरबाजी की गई थी।
वास्तव में इसका सिलसिला हिंदू नववर्ष पर निकाली गई शोभायात्रा से ही शुरू हो गया था, जो हनुमान जंयती तक चला था। कहना कठिन है कि इस बार हनुमान जन्मोत्सव उत्पात से बचा रहेगा या नहीं? जो भी हो, आसार अच्छे नहीं हैं, क्योंकि ममता बनर्जी ने इसका अंदेशा जता दिया है। पता नहीं उनके इस अंदेशे का आधार क्या है, लेकिन इस नतीजे पर पहुंचने के अच्छे-भले कारण हैं कि शोभायात्राओं को जानबूझकर किसी साजिश और सनक के तहत निशाना बनाया जा रहा है। शोभायात्राओं पर पथराव के लिए अक्सर ऐसे बहाने गढ़ लिए जाते हैं कि शोभायात्रा मुस्लिम इलाके से निकल रही थी अथवा उसमें ‘उत्तेजक’ नारे लग रहे थे या फिर डीजे बज रहा था। कुछ लोगों के लिए तो जयश्रीराम का नारा भी उत्तेजक और आपत्तिजनक होता है। असदुद्दीन ओवैसी और उनके दल के नेता जयश्रीराम का उल्लेख करने से भी कतराते हैं। जब उन्हें इस नारे का जिक्र करना होता है तो वे ‘जेएसआर’ कहकर काम चलाते हैं। इससे समझा जा सकता है कि आपत्ति वास्तव में घृणा में बदल चुकी है।