
बंदोबस्त के समय ही 2106 यानि साढ़े दस हजार बीघा से अधिक जमीन के हिस्सेदार तय कर दिए गए थे। लेकिन, चकबंदी अधिकारियों ने बड़ी चालाकी से न केवल फर्जी हिस्सेदार बनाए, बल्कि जमीनें भी आवंटित कर दीं।
हरियाणा के हथवाला गांव (पानीपत) की चकबंदी में अधिकारियों की बड़ी गड़बड़ी की पोल खुली है। चकबंदी अधिकारियों ने गांव के 1879-80 में हुए स्थायी बंदोबस्त के राजस्व रिकॉर्ड को फारसी से हिंदी में बदलते वक्त मालिकान शामलात देह में फर्जी हिस्सेदार जोड़ दिए। नए हिस्सेदार जमीन के मूल खाताधारक ही नहीं थे, इसलिए रिकॉर्ड का मिलान करने पर लिखावट, अंकों व शब्दों के चयन में की गई गलतियों से गड़बड़ी पकड़ी गई।
बंदोबस्त के समय ही 2106 यानि साढ़े दस हजार बीघा से अधिक जमीन के हिस्सेदार तय कर दिए गए थे। लेकिन, चकबंदी अधिकारियों ने बड़ी चालाकी से न केवल फर्जी हिस्सेदार बनाए, बल्कि जमीनें भी आवंटित कर दीं। 2019 में चकबंदी विभाग ने जैसे ही स्कीम पास की और फर्जीवाड़ा संज्ञान में आया, हथवाला गांव की 40 सदस्यीय मशविरा समिति में से 32 सदस्यों ने शपथ पत्र देते हुए चकबंदी को नियमों के विरुद्घ करार दे दिया।
सरपंच व पंचों के अलावा समिति में शामिल सदस्यों सेंसर त्यागी, रामपाल, वेदप्रकाश, रविदत्त, जयभगवान, अमरीश, देवदत्त, निर्मल और शिव कुमार ने शपथ पत्र में कहा था कि चकबंदी में उनकी राय नहीं ली गई। इसलिए हमें चकबंदी स्वीकार नहीं है। सरकार के आदेश पर गठित जांच समिति को फरवरी 2022 में इन सदस्यों व ग्रामीणों ने मूल रिकार्ड में गड़बड़ी, छेड़छाड़ और नियमों की अवहेलना के सुबूत भी सौंपे हैं, साथ ही वित्तायुक्त और निदेशक चकबंदी को भी पूरे फर्जीवाड़े से अवगत करवाया है।
ऐसे हुआ नियमों का उल्लंघन
चकबंदी स्कीम में टयूबवेल व बगीचों को उन्हीं मालिक को दिया जाना था, जिनका वर्तमान में कब्जा काश्त है, लेकिन ऐसा नहीं किया।
लाल डोरे के नजदीक 60 साल से बनाए गए मकानों का मौका-मुआयना न कर दूसरे लोगों को आवंटित कर दिया गया
कुछ लोगों की मालिकान शामलात देह जमीन की डिग्री व रजिस्ट्री के इंतकाल अमल में नहीं लाए गए
दीवानी अदालत के 1918 में आए फैसले अनुसार निर्धारित क्लेम को पहले तो राजस्व अधिकारियों ने मान लिया, बाद में मशविरा कमेटी ही बदल दी
तकसीम में कुछ रकबा कई मालिकों को एक ही किला नंबर में दे दिया, जो नहीं दे सकते थे
गांव के कुल रकबे में से रास्तों के लिए जमीन काटी गई है, लेकिन जिन्हें गलत फायदा दिया गया उनके खाते से जमीन नहीं काटी
गांव की सहमति अनुसार तय जमीन की कीमतों को बदल दिया गया
बंदोबस्त दस्तावेजों की दोबारा कराई जाए हिंदी
ग्रामीण रामदिया त्यागी, नरेंद्र त्यागी व आकाश त्यागी ने कहा कि 1879-80 के बंदोबस्त दस्तावेजों की दोबारा से हिंदी कराई जाए। अगर चकबंदी दोबारा करनी ही है, तो 1965-66 के रिकॉर्ड अनुसार करें। करनाल की दीवानी अदालत के 1918 के फैसले अनुसार जमीन का टाइटल तय हो कि वास्तव में किसकी कितनी जमीन है। गांव में शांति व भाईचारा बनाए रखने के लिए नियमों के विरुद्ध कोई कदम न उठाया जाए। गलत चकबंदी करने वाले अधिकारियों के खिलाफ सरकार कड़ी कार्रवाई करे। चूंकि, चकबंदी करने वाले अधिकारी के बड़े अफसरों के साथ संबंध हैं, इसलिए रसूख का फायदा उठाकर वह कोई कार्रवाई नहीं होने दे रहे।