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पूरी होती मन्नतें, गुरु गोरक्षनाथ के टिल्ला गुरु गोरक्षनाथ मंदिर का जानिए पौराणिक महत्व
Gulabi Jagat
12 July 2022 12:07 PM GMT

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पूरी होती मन्नतें
गुरु गोरक्षनाथ प्राचीनकाल से ही टिल्ला गुरु गोरक्षनाथ मंदिर को भारत में योगियों का पावन तीर्थस्थल माना जाता है। इसी कारण टिल्ला गुरु गोरक्षनाथ मंदिर का पौराणिक महत्व भी है। इसी टिल्ला गुरु गोरक्षनाथ को हिमाचल पर्वत की शाखा माना जाता है। इसे शिवपुरी का टिल्ला भी कहा जाता है।
यह टिल्ला सतयुग में भगवान शिव ने स्थापित किया और इसको भी गुरु गोरक्ष नाथ जी का टिल्ला, टिल्ला बाल गुंदाई और लक्ष्मण का टिल्ला भी कहा जाता है। माना जाता है कि त्रेतायुग में राम अवतार के बाद अंतिम चरण में लक्ष्मण जी भी टिल्ले पर आए। उन्होंने यहां गुरु गोरक्ष नाथ जी का शिष्यत्व भी ग्रहण किया। इसके बाद से यहां पर गुरु पुर्णिमा का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
कई नामों से जाना जाता था
गुरु गोरक्ष नाथ जी का नाम बाल नाथ पड़ा। उन्हें अन्य कई नामों से जाना जाता है। जैसे बाल गुंदाई नाथ, नाग नाथ इत्यादि। अनेक श्रद्धालु आस्थावश इस टीले को टिल्ला भी कहते हैं। नाथ संप्रदाय में धूने का बहुत महत्व है। इस कारण हर योगी के मठ या आश्रम में धूने का स्थान बनाया जाता है। इसे श्रीनाथ जी का धूना कहा जाता है। श्रद्धालुओं को इसी धूने की भभूति प्रसाद के रूप में दी जाती है। टीले के भवन में श्री गुरु गोरक्षनाथ जी धूना स्थापित था।
बन गई ये कहावत
श्रद्धालुओं की धारणा है कि सर्वप्रथम गुरु गोरक्ष नाथ ने टीले के स्थान पर ही धूना प्रज्ज्वलित था और तभी से यह धूना इसी स्थान पर है। जब गुरु गोरक्षनाथ टीले का स्थान छोड़कर जाने लगे तो योगियों ने गुरु गोरक्षनाथ से विनती की कि आपके जाने के बाद इस स्थान का महत्व कैसे प्रतीत होगा तब गुरु गोरक्ष नाथ जी ने जलते धूने में से लकड़ी को निकाली और उसे उस स्थान पर किल्ले के रूप में गाढ़ दिया। बाद में उस लकड़ी ने एक वृक्ष का रूप धारण कर लिया, जिसकी दो बड़ी-बड़ी शाखाएं एक सूखी और दूसरी गीली बन गई। इस विषय में कहावत है कि जब तक किल्ला तब तक टिल्ला, आधा सूखा आधा गीला।
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Gulabi Jagat
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